यूपी की राजनीति के बदलते समीकरण, ओवैसी से लेकर अखिलेश तक लुभाने में लगे
यूपी की राजनीति में कई कई नए प्रयोग देखे हैं 2007 से 2012 मायावती की बहुमत की सरकार थी और जीत का रास्ता सोशल इंजीनियरिंग बना। बहन जी हमेशा गठबंधन की सरकार बनाई लेकिन सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला बनाते ही उन्होंने बहुमत पा लिया ।आज के समय में देखें तो 2022 के लिए छोटी पार्टियों पर सब ने अपनी निगाह लगाई हुई है। यह छोटी पार्टियां जो कि बदनाम हुआ करती थी वोट कटवा पार्टी के रूप में आज इन्हीं छोटी पार्टियों के इर्द-गिर्द कई विपक्षी पार्टियां अपने खेमे में लेकर के या अपने खेमे में जुटाने की भरसक कोशिश कर रही हैं।
एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश में छोटी पार्टियों को लेकर के आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं भासपा के साथ उनका समझौता हो चुका है और दोनों ही पार्टियां साथ में चुनाव लड़ने जा रही हैं। भासपा मैं पिछला लोकसभा चुनाव और विधानसभा में वह बीजेपी के साथ थे लेकिन इस बार के 2019 के चुनाव में वह अलग हो गए। 2017 के चुनाव में ओम प्रकाश राजभर जीत कर आए कैबिनेट में मंत्री भी बने लेकिन कुछ मतभेद के कारण उन्होंने गठबंधन से नाता तोड़ दिया लेकिन यह सच है कि पूर्वांचल में भासपा का एक अपना समीकरण है बात करें।
अपना दल कि वह एनडीए के घटक दल है लेकिन बीच-बीच में चेतावनी अनुप्रिया पटेल देती रहती हैं कुर्मी वोट बैंक को लेकर के 2014 में बीजेपी ने अपनी तरफ किया था क्योंकि न सिर्फ बनारस बल्कि आसपास का क्षेत्र मिर्जापुर ,सोनभद्र , इलाहाबाद , प्रतापगढ़ यह सब ऐसे इलाके हैं जहां पर कुर्मी होने की वजह से बीजेपी को लगातार फायदा होता रहा है। छोटी पार्टी होने के बावजूद भी अनुप्रिया पटेल 2014 में मंत्री बनी थी लेकिन इस बार नहीं बनाई गई पर गठबंधन में शामिल है।
अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी छोटी पार्टियों का महत्व जान गए हैं। उन्होंने देखा कि जब उपचुनाव हुआ था तो कैसे छोटी पार्टी के प्रत्याशी समर्थन देने के बाद जीत करके आ गए थे। पीस पार्टी की बात करें छोटी पार्टियों में अब राष्ट्रीय लोक दल भी कहीं जाने लगी है एक समय था कि पश्चिमी यूपी में जाट वोट बैंक को लेकर के लोकदल मजबूत पार्टी मानी जाती थी लेकिन अब पश्चिमी यूपी में कमजोर जरूर हुई है, जाट बेल्ट पर मजबूत माना जाता है। और उसके सपा के साथ लगातार गठबंधन में है। सवाल यही है कि यह वोट कटवा पार्टी छोटे-छोटे क्षेत्रों में अपने प्रभाव के कारण विपक्ष उन्हें अपने गठबंधन के मंच पर रखना चाहता है ।
अब दिल्ली की आप पार्टी जिसने समय-समय पर पंजाब में भी अपना दमखम दिखाया था वह भी यूपी में आ रही है और पहले से ही मौजूद थे छोटी पार्टियां समय को नए परिवर्तन और नई राजनीति के समीकरण के लिए मजबूर भी कर रही हैं। उन्हें पता है कि महज एक सीट पर हजार वोट की छोटी पार्टियां भी उनको और मजबूत कर सकती हैं और जीत में मदद कर सकती हैं बल्कि उसके फैसले को खत्म कर सीट जीती में बदल सकती हैं। तो आजकल उत्तर प्रदेश में छोटी पार्टियों का स्वर्णिम काल चल रहा है ।विपक्ष का हर खेमा उन्हें अपनी तरफ लेने के लिए व्याकुल नजर आ रहा है।