हरियाणाः कुर्सी कलाबाजी की मिसाल
सत्ता की कुर्सी की नायाब कलाबाजी हरियाणा के सिवा और कहीं नहीं मिलती। पहली नवंबर 1966 को पंजाब से टूट कर बने नए राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी की जंग ऐसी रही है कि करीब ढाई दशक तक प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल रहा। एकदम शुरुआत में सत्तर के दशक में ही इस प्रदेश की राजनैतिक शब्दावली में एक नया मुहावरा ‘आयाराम, गयाराम’ जुड़ गया। दलबदल की मिसाल गढ़ने वाले हरियाणा में कई सरकारों के मुखिया के हाल भी आया-गया जैसे ही रहे। राज्य के पहले कार्यवाहक मुख्यमंत्री बने कांग्रेस के भगवत दयाल शर्मा का दो बार का कुल कार्यकाल सिर्फ 142 दिन का रहा। दूसरा कार्यकाल तो मात्र एक हफ्ते का था। पहले पांच महीने में ही हरियाणा में दो मुख्यमंत्री बने। कई ‘आयाराम गयाराम’ जैसी जोड़-तोड़ से दूसरे मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह (केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के पिता) एक साल भी पूरा नहीं कर पाए।
राज्य गठन के तीन महीने बाद हरियाणा में फरवरी 1967 में पहली बार 81 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ 48 सीटें कांग्रेस, 12 भारतीय जनसंघ, तीन स्वतंत्र पार्टी, दो रिपब्लिकन पार्टी और 16 सीटों पर निर्दलीय जीते। तब रोहतक जिले की झज्जर सीट से चुनाव जीतने वाले भगवत दयाल शर्मा ने पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली लेकिन एक हफ्ते बाद ही कांग्रेस के 12 विधायकों के दलबदल से सरकार गिर गई। 16 निर्दलीय विधायकों के नए मोर्चे संयुक्त विधायक दल की अगुआई कर रहे पटौदी से विधायक राव बीरेंद्र ने पाला बदलने वाले कई विधायकों और छोटे दलों के गठबंधन के जरिए 48 विधायकों के समर्थन से दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
भजनलाल
राजनैतिक अस्थिरता के आलम में राज्य गठन के साल भर के भीतर ही राष्ट्रपति शासन लागू करने की नौबत आ गई थी। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए तब कांग्रेस में रहे तीन लालों बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल के बीच भिड़ंत के चलते नब्बे के दशक तक राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंसे हरियाणा को तीन बार राष्ट्रपति शासन से गुजरना पड़ा। पहली बार 2 नवंबर 1967 से 22 मई 1968 तक राष्ट्रपति शासन रहा। उसके बाद 30 अप्रैल 1977 से 21 जून 1977 तक राष्ट्रपति शासन रहा। तीसरी बार 6 अप्रैल 1991 से 29 जुलाई 1991 तक राष्ट्रपति शासन के बीच हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत सरकार के मुखिया भजनलाल बने। इस तरह हरियाणा ने हिंदुस्तान की सियासत में आयाराम गयाराम की मिसाल कायम की।
राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में हसनपुर सीट से जीते निर्दलीय उम्मीदवार गया लाल (मौजूदा हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान के पिता) कांग्रेस में शामिल हो गए। हफ्ते भर बाद ही कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार गिर गई। संयुक्त विधायक दल की सरकार बनते देख गया लाल मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र के शपथ समारोह से एक दिन पहले कांग्रेस छोड़ संयुक्त मोर्चे में शामिल हो गए, लेकिन कुछ घंटे बाद ही वे वापस कांग्रेस में चले गए। उसके बाद वे दोबारा संयुक्त विधायक मोर्चे में आ गए। कुछ ही घंटों के अंतराल में पार्टियां बदलने के घटनाक्रम को संयुक्त विधायक दल नेता राव बीरेंद्र ने चंडीगढ़ में एक प्रेस कांफ्रेंस दौरान गया लाल को संयुक्त मोर्चे में दूसरी बार शामिल करने के मौके पर कहा था,“गयाराम अब आयाराम है।” ऐसे ‘आयाराम गयाराम’ जैसे विधायकों की बदौलत ही राव बीरेंद्र सरकार नौ महीने में गिर गई। उसके बाद हरियाणा विधानसभा भंग कर दी गई।
पहले चुनाव के सवा साल के भीतर मई 1968 में हुए मध्यावधि चुनाव में तीन गुटों भगवत दयाल शर्मा, देवीलाल और रामकृष्ण में बंटी कांग्रेस ने गुटबाजी खत्म करने के लिए इन तीनों को चुनाव में नहीं उतारा। बावजूद इसके कांग्रेस को दोबारा पूर्ण बहुमत के साथ 48 सीटों पर जीत मिली। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र की विशाल हरियाणा पार्टी को 16 सीटें, जनसंघ को सात, स्वतंत्र पार्टी को दो, रिपब्लिकन पार्टी और भारतीय क्रांति दल को एक-एक सीटें मिलीं। ये पार्टियां हाशिये पर चली गईं। उधर, बहुमत मिलने पर कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में राज्य के पहले मुख्यमंत्री भगवत दयाल शर्मा का पलड़ा सबसे भारी था लेकिन देवीलाल और बंसीलाल भी दावेदार थे। कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के लिए नया मुख्यमंत्री तय करना मुश्किल था। दिल्ली में विधायकों की बैठक में 48 में से 32 विधायक ही पहुंचे। उन्होंने भगवत दयाल शर्मा को अपना नेता चुना, लेकिन पार्टी नेतृत्व भगवत दयाल शर्मा के नाम पर राजी नहीं हुआ।
मुख्यमंत्री पद के बाकी दो बड़े दावेदारों में बंसीलाल और देवीलाल थे। गुलजारी लाल नंदा ने मुख्यमंत्री के लिए भिवानी जिले के तोशाम से विधायक बंसीलाल का नाम आगे बढ़ाया। विधायक ब्रिगेडियर रण सिंह ने बंसीलाल के नाम का प्रस्ताव रखा जिस पर भगवत दयाल शर्मा को भी अपना समर्थन देना पड़ा। अगले दिन तब के कांग्रेस अध्यक्ष के. निजलिंगप्पा की अध्यक्षता में हुई विधायकों की बैठक में बंसीलाल विधायक दल के नेता चुने गए। बंसीलाल 21 मई 1968 से 30 नवंबर 1975 तक लगातार 7 साल 193 दिन तक मुख्यमंत्री रहे। फिर, 1 दिसंबर 1975 से 30 अप्रैल 1977 तक बनारसी दास गुप्ता का पहली बार बतौर मुख्यमंत्री 150 दिन तक का शासनकाल खत्म हुआ। गुप्ता को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद 52 दिन के राष्ट्रपति शासन के बाद हुए चुनाव में 21 जून 1977 से 28 जून 1979 तक दो साल सात दिन जनता पार्टी की सरकार में देवीलाल पहली बार मुख्यमंत्री बने। जनता पार्टी की सरकार गिरने पर भजनलाल 28 जून 1979 से लेकर 4 जून 1986 (6 साल 341 दिन) तक कांग्रेस सरकार के मुखिया रहे। अगला दांव कांग्रेस ने फिर से बंसीलाल पर खेला, लेकिन उनकी दूसरी पारी 5 जून 1986 से 20 जून 1987 तक केवल एक साल 15 दिन की रही। अलग-अलग अवधि में तीन बार मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल ने 11 साल से भी अधिक समय तक हरियाणा की सत्ता संभाली। इसमें एक बार वे कांग्रेस से टूट कर अपने अलग दल हरियाणा विकास पार्टी की सरकार के मुखिया भी रहे।
दरअसल 1968 के मध्यावधि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में गुटबंदी के चलते देवीलाल को टिकट नहीं मिला था लेकिन वे अपने बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला को गृह जिले सिरसा के ऐलनाबाद से टिकट दिलवाने में कामयाब रहे थे। तब चौटाला विशाल हरियाणा पार्टी के लालचंद खेड़ा से हार गए। अपनी हार के खिलाफ चौटाला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने ऐलानाबाद चुनाव खारिज कर दिया। फिर, 1970 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में चौटाला पहली बार विधायक बने।
कुर्सी के लिए बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल की तिकड़ी के तिकड़म में बनारसी दास गुप्ता कांग्रेस और जनता दल दोनों ही सरकारों में दो बार बतौर ‘डमी मुख्यमंत्री’ बनने का जोड़-जुगाड़ करने में कामयाब रहे। लोकदल के कार्यकाल में मास्टर हुकुम सिंह और ओमप्रकाश चौटाला की भूमिका भी चार बार बतौर ‘डमी मुख्यमंत्री’ की रही।
बंसीलाल
गृह जिले सिरसा से 250 किलोमीटर दूर जाटलैंड रोहतक के महम को सियासी अखाड़ा बनाने वाले देवीलाल दूसरी बार 20 जून 1987 से लेकर 2 दिसंबर 1989 तक दो साल 165 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। दिसंबर 1989 से लेकर मार्च 2005 तक अलग-अलग अवधि में पांच बार के मुख्यमंत्री रहे ओमप्रकाश चौटाला का पहला कार्यकाल पांच महीने, दूसरा कार्यकाल मात्र छह दिन का रहा। उनके बाद 52 दिन तक बनारसी दास गुप्त मुख्यमंत्री रहे। चौटाला का तीसरा कार्यकाल 16 दिन का रहा। चौथे कार्यकाल में चौटाला लगभग साढ़े सात महीने मुख्यमंत्री रहे। चौटाला अपने आखिरी कार्यकाल में जाकर पांच साल पूरे कर पाए।