महबूबा मुफ्ती की राह की अड़चनें, अटकलें बलवती
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में फिर कोई बड़ी हलचल हो सकती है। राज्य के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती का मुख्यमंत्री बनना तकरीबन तय है। लेकिन इस प्रक्रिया में जो देर लग रही है और इस दरम्यान राष्ट्रपति शासन लगाने की जरूरत पड़ने से आशंकाएं और अटकलों का दौर शुरू हो गया है।
महबूबा मुफ्ती का जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बनना अपने आप में ऐतिहासिक महत्व रखता है। वह इस पद को संभालने वाली पहली कश्मीरी महिला होंगी। अभी एक दिक्कत यह भी है कि खुद पीडीपी में महबूबा के नेतृत्व को लेकर सवाल है। मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के बाद भाजपा की भी प्रतिक्रिया महबूबा मुफ्ती को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं थी। भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार चला रही पीडीपी के लिए भी यह गठबंधन मजबूरी का समझौता है और इस बारे में महबूबा अपने संकोच पहले भी जाहिर कर चुकी है।
इस तरह से, बाहर से महबूबा का मुख्यमंत्री पद संभालना जितना निश्चित दिख रहा है, उतना भीतर से नहीं है। सबसे पहली चुनौती महबूबा मुफ्ती के सामने अपनी पार्टी के समर्थकों को साधने की है। पीडीपी समर्थकों में इस सरकार को लेकर असंतोष है। भाजपा के बढ़ते दबाव से वे आक्रांत हैं और दूसरे महबूबा की कमान को लेकर भी दुविधा है। हालांकि मुफ्ती की मौत के बाद पीडीपी के सभी 28 विधायकों ने राज्यपाल एनएन वोहरा को यह लिखकर दिया था कि वे 56 वर्षीय महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करते हैं और उन्हें हर तरह
का समर्थन देते हैं। भाजपा नेता और जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने भी महबूबा मुफ्ती के साथ बैठक की। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की महबूबा से मुलाकात होने के बाद से राजनीतिक कयासों का सिलसिला तेज हो गया।
एक अंदेशा ये भी जताया जा रहा है कि सोनिया गांधी ने महबूबा मुफ्ती को यह ऑफर दिया है कि कांग्रेस –एनसी के साथ मिलकर पीडीपी की सरकार को समर्थन दे देगी। महबूब वैसे भी भीतर से भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर बहुत सहज नहीं महसूस कर रही थी। अलगाववादियों के प्रति केंद्र के सख्त रवैये और पाक से वार्ता बाधित होने पर वह नाराज बताई जाती थी। ऐसे में कांग्रेस के साथ उनका हाथ मिलना बहुत अस्वाभाविक नहीं हो सकता। हालांकि इस गठबंधन का कोई मजबूत भविष्य नहीं है। खासतौर से तब जब केंद्र में भाजपा की सरकार है और बिना केंद्र की मदद के राज्य सरकारों का गुजारा मुश्किल होता जा रहा है। इस बात से महबूबा मुफ्ती भली-भांति वाकिफ हैं।