उत्तर प्रदेश: बहुत पहले पड़ गए थे मुलायम परिवार में दरार के बीज
विधानसभा चुनाव जीतने पर पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह ने छोटे भाई शिवपाल पर पुत्र अखिलेश को जिस तरह तरजीह दी उसने भी इस दरार को चौड़ा किया। उन दिनों माना जा रहा था कि मुलायम दिल्ली देखेंगे और लखनऊ की गद्दी शिवपाल को सौंपेंगे मगर ऐसा हुआ नहीं। इसके बाद से चाचा-भतीजे में शह मात का जो खेल शुरू हुआ वह आज तक जारी है। माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय के मामले में चाचा ने भतीजे को नहीं पूछा तो भतीजे ने भी इसका बदला तुरंत इस विलय का काम देख रहे बलराम सिंह यादव को बर्खास्त कर ले लिया। हालांकि बाद में पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह ने दोनों ही पक्षों को खुश कर फैसला करा दिया और बलराम यादव की भी वापसी करा दी। मगर समय-समय पर चाचा की पसंद के मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने से अखिलेश कभी नहीं चूके। वह अब तक पंद्रह मंत्रियों को बाहर कर चुके हैं। उधर अखिलेश की नापसंदगी के बावजूद शिवपाल अपने खास अफसरों को महत्वपूर्ण पदों से नवाजते रहे हैं। दीपक सिंघल की तैनाती भी कुछ ऐसी ही थी।
वैसे तो दोनों ही पक्ष अपने फैसले मनवाने में पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह का सहारा लेते हैं मगर चुनाव की बेला ने उनकी आक्रामकता अब इस कदर बढ़ा दी है कि लड़ाई अब खुलकर सामने आ गई है। इस बार हटाए गए मंत्रियों के बाबत अखिलेश ने पिता मुलायम को भी विश्वास में नहीं लिया और सीधे कार्रवाई कर दी। जबकि मंत्री राजकिशोर सिंह मुलायम सिंह की नाक के बाल माने जाते हैं। वहीं दूसरे मंत्री गायत्री प्रजापति मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता और उनके पुत्र प्रतीक यादव के करीबी हैं। मुख्य सचिव पद से हटाए गए दीपक सिंघल शिवपाल के साथ-साथ गुप्ता परिवार के भी विश्वास पात्र थे। दीपक सिंघल आजकल अमर सिंह से भी नजदीकियां बढ़ा रहे थे और दो दिन पूर्व उनकी एक दावत में भी शामिल हुए थे। मंत्रियों और मुख्य सचिव के खिलाफ उठाए गए कदम ने अखिलेश के सभी विरोधियों को एक कर दिया और उसी का नतीजा हुआ कि सत्ता संतुलन बनाने को मुलायम सिंह ने उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा कर कमान शिवपाल को सौंप दी ।
हालांकि अखिलेश यादव इसे परिवार की नहीं सरकार की लड़ाई बता रहे हैं मगर देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे में अब सब कुछ इस कदर गडमड हो चला है कि पता ही नहीं चल रहा कि कब परिवार भिड़ा और कब राजनीतिक हित। कुछ भी हो चुनाव की इस वेला में समाजवादी परिवार का अंतर्कलह जैसे-जैसे बढ़ रहा है वैसे-वैसे पार्टी की सत्ता में वापसी की संभावनाएं भी क्षीण होती जा रही हैं। मुस्लिमों की चहेती सपा ने ईद के दिन जिस तरह पार्टी की कुर्बानी ली उससे तो अखिलेश यादव की साढ़े चार साल की मेहनत पर ही पानी फिरता नजर आ रहा है।