बंगाल के बिजली नियामक आयोग के चेयरमैन की नियुक्ति पर भी गरमा सकती है राजनीति
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। विधानसभा का चुनावी समर छिड़ा हुआ है और इसी के साथ उनकी सरकार और नेताओं पर अलग-अलग भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। इस रस्साकसी के दौर में एक गंभीर प्रशासनिक चूक का मामला सामने आया है। यह जुड़ा हुआ है पश्चिम बंगाल बिजली नियामक आयोग के चेरमैन, आरएन सेन की नियुक्ति से। विपक्षी दल इसे अब चुनावी मुद्दा बनाने पर भी विचार कर रहे हैं।
इनकी नियुक्ति में कई नियमों का उल्लंघन करने की बात सामने आई है। इसके साथ ही यह भी आरोप लग रहा है कि आरएन सेन ने निजी बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाला फैसला किया और फ्यूल चार्ज परप्रति यूनिट २५ पैसा अधिक फायदा पहुंचाया गया। अगर यह मामला आगे बढ़ता है तो एक बड़े घोटाले पर से पर्दाफाश हो सकता है।
उधर उनकी नियुक्ति को लेकर विवाद चला ही जा रहा है। एक साल तक इस अहम पद को खाली रखने के बाद पिछले साल ममता बनर्जी ने जब आरएन सेन को चेयरमैन बनाया। आरएनसेन पर केंद्रीय सतर्कता आयोग के आठ मामले लंबित थे, जब उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया। इस मसले पर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी हासिल करने वाले व्हिसल ब्लोवर ए.के. जैन ने बताया कि नियमों के अनुसार अगर सीवीसी का क्लीयरेंस नहीं है तो उन्हें ये पद नहीं दिया जाना चाहिए। हालांकि सेन का कहना है कि डीवीसी के कुछ अधिकारी नहीं चाहते थे कि वह इस पद पर काम करें, इसलिए वे ये अडंगा लगा रहे हैं।
लेकिन बिजली नियामक आयोग का पद चूंकि क्वासी ज्यूडिशियल है इसलिए इस पद पर नियुक्ति के लिए तमाम तरह के नियमों के पालन की बात बनती है। इस बाबत ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने कोलकाता केराज्यपाल को भी जो पत्र लिका था, उसमें ये सारे मुद्दे उठाए गए थे।