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06 December 2024

विधानसभा चुनाव 2024 महाराष्ट्रः कब मुद्दा बनेगी किसानों की आत्महत्या

चुनाव दर चुनाव होते जा रहे हैं, किसान फांसी पर चढ़ते जा रहे हैं या जहर खा रहे हैं, कृषि संकट से कट चुकी है चुनावी राजनीति

महाराष्ट्र के अमरावती शहर से 25 किलोमीटर दूर सलोरा गांव के प्रवीण मधुकरराव पाटील के पिता ने दो साल पहले खुदकशी की थी। उनके ऊपर पांच लाख रुपये का कर्ज था जो उन्होंने चना उगाने के लिए लिया था। पिता की मौत के बाद परिवार में बचे पाटील, उनकी पत्नी, और मां को राज्य सरकार ने 70,000 रुपया देने का वादा किया था, जो आज तक नहीं मिला है। बात इतनी ही नहीं है। पाटील कहते हैं, ‘‘हमसे कहा गया है कि इसमें सात साल और लगेगा अभी। पता नहीं इतना समय क्यों लगता है, हमें समझ नहीं आ रहा।’’ कागज पर तो महाराष्ट्र सरकार अपनी योजना के तहत आत्महत्या करने वाले किसान के परिजनों को एक लाख रुपया देती है।

महाराष्ट्र में 2014 से 2022 के बीच कुल 57,160 किसानों ने खुदकशी की है। यह राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का आंकड़ा है। अमरावती के प्रखंड आयुक्त के मुताबिक इस साल के जून तक यानी छह माह में विदर्भ क्षेत्र में 557 किसान अपनी जान ले चुके हैं। इनमें अमरावती में सबसे ज्यादा 170, फिर यवतमाल में 150, बुलढाणा में 111, अकोला में 92 और वाशिम में 34 हैं। इनमें सलोरा के खाते में बीते तीन साल में कुल दस मौतें आई हैं और हरेक मरने वाला किसान अपने परिवार के लिए रोटी कमाने वाला इकलौता शख्स था।

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उन्हीं में से एक के पिता अस्सी पार के बुजुर्ग सेषराज तायड़े हैं जिनका सबसे छोटा बेटा गिरिधर 2022 के अप्रैल में घर के भीतर फांसी से लटक कर मर गया था। वे बताते हैं, ‘‘उस समय मेरी पत्नी बहुत बीमार थी। गिरिधर के पास दवा के पैसे नहीं थे और पत्नी का ऑपरेशन भी होना तय था। कहीं जाकर उसने पांच हजार रुपये का इंतजाम किया और मां को दवा के लिए दे दिया। तब तक उसके ऊपर बीस हजार का कर्ज चढ़ चुका था।’’

तायड़े बताते हैं कि वे और उनकी पत्नी घर के बाहर बैठे हुए थे और गिरिधर भीतर ही थे। ‘‘जब वह बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो हम देखने गए। दरवाजा भीतर से बंद था। हमने खिड़की से झांका। वह पंखे से लटक रहा था। मेरी पत्नी तो देखते ही बेहोश हो गई,’’ यह कहते हुए तायड़े बताते हैं कि उनके बेटे को कर्जा लेना बिलकुल पसंद नहीं था। वे कहते हैं कि नेताओं के लिए उनके बेटे की मौत बस एक संख्या है, ‘‘मैंने 12 लोकसभा और विधानसभा चुनावों में आज तक वोट किया होगा, लेकिन इससे कुछ नहीं होता। आज भी मैं कष्ट में जी रहा हूं।’’

लोकसभा चुनाव के दौरान विदर्भ में हुई रैलियों में नेता किसानों की खुदकशी पर बात करने से बचते रहे थे। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 14 अप्रैल को रामटेक में अपनी पहली रैली में किसानों की आत्महत्या पर एक शब्द तक नहीं कहा था। इस चुनाव में भी यही हाल है, हालांकि विपक्ष के नेता रह-रह कर शिंदे सरकार की ओर कृषि नीतियों के मामले में उंगली जरूर उठा रहे हैं जिसके चलते किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

बीते 7 अक्टूबर को कांग्रेस के नेता जयराम रमेश ने किसानों की खुदकशी पर सवाल उठाया था। फिर 21 अक्टूबर को कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भाजपा को ‘किसानों का सबसे बड़ा दुश्मन’ करार देते हुए कहा कि किसानों को तभी लाभ होगा जब वे सत्ता से ‘डबल इंजन की सरकार’ को हटा देंगे। सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म एक्स पर खड़गे ने लिखा कि ‘‘राज्य को अकालमुक्त बनाने का वादा केवल जुमला था। बीस हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं। बीस हजार करोड़ रुपये के वाटर ग्रिड का वादा झूठा निकल गया।’’

सत्ताधारी महायुति गठबंधन ने अपने घोषणापत्र में किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा की। इसके अलावा शेतकरी सम्मान योजना के तहत किसानों को सहयोग राशि 12,000 रुपये से बढ़ा 15,000 रुपये करने की बात लिखी है तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 20 फीसदी सब्सिडी की पेशकश की है। दूसरी ओर महा विकास अघाड़ी ने किसानों का तीन लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने की बात कही है और 50,000 रुपये का नियमित सहयोग देने का वादा किया है।

मुंबई की एसएनडीटी विमेंस युनिवर्सिटी में राजनीतिशास्‍त्र विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर मनीषा माधव के अनुसार जनता से जुड़े मुद्दे अब पीछे चले गए हैं और लोकलुभावन मुद्दों का ही बोलबाला है। वे कहती हैं, ‘‘चुनाव अब बहुत स्थानीय हो चुके हैं, हर पार्टी का नेता अपना गढ़ बचाने में जुटा हुआ है इसलिए जनमुद्दे सामने नहीं आ पा रहे।’’

बीते बीस साल से विदर्भ में किसानों की आत्महत्या पर बहसें चलती रही हैं लेकिन राज्य और केंद्र सरकार के दिए राहत पैकेज भी इन मौतों को रोक नहीं पाए हैं। उलटे, दिसंबर 2023 से मार्च 2024 के बीच प्याज के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध का महाराष्ट्र के किसानों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। केंद्र सरकार ने घरेलू आपूर्ति में कमी के चलते यह रोक लगाई थी। महाराष्ट्र में प्याज खूब होता है और राष्ट्रीय उत्पादन में उसकी 30 से 35 फीसदी की हिस्सेदारी है। प्याज की खेती के मामले में नासिक बहुत आगे है। यहां के किसान शिवाजी निकम की पूरी फसल पिछले साल अगस्त-सितंबर में बारिश के चलते चौपट हो गई।

निकम बताते हैं, ‘‘करीब आधी फसल जड़ तक चौपट हो गई थी। बेच पाना मुश्किल था। अंदाजे से कह सकता हूं कि शुरू में मुझे दस हजार रुपये का घाटा हुआ था लेकिन अंत में कुल मिलाकर 80,000 रुपये का घाटा निकला।’’ आखिरकार, लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सरकार ने निर्यात पर से प्रतिबंध हटा दिया लेकिन तब तक उससे जो नुकसान होना था हो चुका था।

आज नासिक और अमरावती के किसानों को ऐसी सरकार की उम्मीद है जो उनकी समस्याओं को सुन सके और कुछ कर सके। इस मामले में एक युवा किसान विनायक शिंदे के पास सरकारों के लिए कुछ सुझाव हैं। वे कहते हैं, ‘‘मैं पिछले छह-सात साल के दौरान देवेंद्र फड़नवीस जैसे नेताओं से मिला हूं और मैंने उन्हें समाधान का एक नुस्खा भी बताया है। उन्होंने वादा किया था, पर कुछ नहीं हुआ।’’

शिंदे सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। उन्होंने नासिक और उसके आसपास सैकड़ों किसानों से बात की है कि कैसे अपनी उपज का सही दाम उन्हें मिल सके। वे कहते हैं, ‘‘हमें सही दाम देने से कई मसले हल हो सकते हैं।’’ दो साल पहले अपने पिता को खो चुके वीरेंद्र और रवींद्र लांगड़े भी सही कीमत की मांग उठा रहे हैं। शिंदे बताते हैं, ‘‘अपनी जमीन के बदले सही मुआवजा नहीं मिलने के तनाव में ही उनकी मौत हुई थी, इसीलिए हम लोग अपनी उपज का सबसे अच्छा दाम मांग रहे हैं। इस साल सोयाबीन की फसल पर हमें 50,000 रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है जबकि हमारे सिर पर पहले से कर्ज चढ़ा हुआ है।’’

ऐसा लगता है ‌कि इन किसानों की आवाज चुनाव में व्यस्त दलों तक नहीं पहुंच पा रही है।

 

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TAGS: Maharashtra Election results, Maharashtra, Farmers Suicide
OUTLOOK 06 December, 2024
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