भोजशाला सर्वे रिपोर्ट कब पेश होगी? ASI ने मांगा चार हफ्ते का समय
मध्यप्रदेश में धार के भोजशाला-कमाल मौला मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश करने के लिए चार हफ्तों की मोहलत की मांग करते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में मंगलवार को अर्जी दायर की। अर्जी में मुख्य तौर पर यह दलील दी गई है कि हैदराबाद के राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) ने इस विवादित परिसर के ‘ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर)-ज्योग्राफिक इन्फर्मेशन सिस्टम (जीआईएस)’ सर्वेक्षण के दौरान जमा किए गए विशाल डेटा का अध्ययन करके अंतिम रिपोर्ट पेश करने के लिए एएसआई से तीन हफ्ते का समय मांगा है।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के आदेश के मुताबिक एएसआई को भोजशाला परिसर के सर्वेक्षण की संपूर्ण रिपोर्ट दो जुलाई (मंगलवार) तक पेश करनी थी। एएसआई की मंगलवार को पेश ताजा अर्जी पर उच्च न्यायालय में बृहस्पतिवार (चार जुलाई) को सुनवाई हो सकती है।
अर्जी में उच्च न्यायालय को बताया गया कि एएसआई ने रह-रहकर होने वाली बारिश के बावजूद बिना किसी छुट्टी के भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण पूरा कर लिया है। आवेदन के मुताबिक एनजीआरआई ने भी विवादित परिसर का जीपीआर-जीआईएस सर्वेक्षण पूरा कर लिया है और इस सर्वेक्षण के 600 से अधिक प्रोफाइल वाले डेटा के विस्तृत अध्ययन, विश्लेषण और व्याख्या के जरिये अंतिम रिपोर्ट पेश करने के लिए हैदराबाद के इस संस्थान ने एएसआई से तीन हफ्ते का समय मांगा है।
भोजशाला को हिंदू समुदाय वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष 11वीं सदी के इस स्मारक को कमाल मौला मस्जिद बताता है। यह परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।
"हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस" नामक संगठन की अर्जी पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को एएसआई को भोजशाला-कमाल मौला मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसके बाद एएसआई ने 22 मार्च से इस विवादित परिसर का सर्वेक्षण शुरू किया था जो हाल में खत्म हुआ है।
भोजशाला को लेकर विवाद शुरू होने के बाद एएसआई ने सात अप्रैल 2003 को एक आदेश जारी किया था। इस आदेश के अनुसार पिछले 21 साल से चली आ रही व्यवस्था के तहत हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार भोजशाला में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुस्लिमों को हर शुक्रवार इस जगह नमाज अदा करने की इजाजत दी गई है। "हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’’ ने अपनी याचिका में इस व्यवस्था को चुनौती दी है।