ताज की लड़ाई/ कोहली बनाम रोहित: क्या तेंदुलकर की राह पर चलेंगे विराट
जिसके सिर पर ताज होता है, वह कभी चैन से नहीं रह पाता। भारतीय क्रिकेट इस बात का बहुत ही अच्छा उदाहरण है। इसमें एक नया अध्याय तब जुड़ गया, जब विराट कोहली ने अक्टूबर-नवंबर में खेले जाने वाले आइसीसी वर्ल्ड कप ट्वेंटी-20 के बाद भारतीय ट्वेंटी-20 टीम की कप्तानी छोड़ने की घोषणा की। सितंबर की शुरुआत में कोहली ने इंग्लैंड सीरीज खत्म होने के बाद इस बात का ऐलान किया तो क्रिकेट जगत के बड़े-बड़े सितारे भी चकित रह गए। उनका आश्चर्य तब और बढ़ गया जब कोहली ने मौजूदा आइपीएल के 17 अक्टूबर को खत्म होने के बाद रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू टीम की भी कप्तानी छोड़ने की घोषणा कर दी। इन दोनों घोषणाओं को ‘काम के बोझ’ से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन जो कुछ दिख रहा है पीछे की कहानी निश्चित ही उससे बहुत अलग है।
आइपीएल टूर्नामेंट में 26 सितंबर को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू और मुंबई इंडियंस के बीच दुबई अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम में जो मैच खेला गया, वह दुनिया के सबसे अमीर ट्वेंटी-20 टूर्नामेंट के सामान्य मैचों से अलग था। इसे दो ‘बॉस की लड़ाई’ के तौर पर देखा जा रहा था। इसमें कोहली का मुकाबला रोहित शर्मा से था, जिनकी अगुआई में मुंबई इंडियंस रिकॉर्ड पांच बार टूर्नामेंट जीत चुकी है। वर्ल्ड कप के बाद भारत की ट्वेंटी-20 टीम की कप्तानी रोहित शर्मा को ही सौंपे जाने की चर्चा है।
कोहली स्वभाव से आक्रामक हैं और किसी भी मैच से पहले काफी उत्साहित नजर आते हैं। उनका यह हाव-भाव होटल का कमरा छोड़ने से लेकर स्टेडियम पहुंचने तक नजर आता है। जिस तरह वे मैच से पहले वार्मअप होते हैं और पिच का निरीक्षण करते हैं, उससे लगता है कि वे प्रतिस्पर्धी टीम को एक इंच जमीन भी देने को तैयार नहीं। रविवार, 26 सितंबर को भी कोहली अति-उत्साहित थे। दोनों कप्तानों के बीच टॉस हुआ। मुंबई इंडियंस के कप्तान रोहित शर्मा ने टॉस जीतकर रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू टीम को पहले बैटिंग करने के लिए कहा। इस पर कोहली ने रोहित शर्मा को आंखें तरेरते हुए देखा और ड्रेसिंग रूम की ओर बढ़ गए।
रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूरू और मुंबई इंडियंस के बीच मैच को इस नजरिए से भी देखा जा रहा था कि ट्वेंटी-20 में बेहतर कप्तान कौन है। कोहली को इस मायने में अपने आप को साबित करने की जरूरत है, क्योंकि 2013 में बेंगलूरू टीम की कप्तानी मिलने के बाद वे एक बार भी आइपीएल ट्रॉफी जीतने में कामयाब नहीं हुए। अब जब उन्होंने भारतीय ट्वेंटी-20 टीम की कप्तानी छोड़ने की घोषणा कर दी है, तो आने वाले हर मैच में कप्तान के रूप में उनकी क्षमता को आंका जाएगा।
आलोचकों ने सीमित ओवरों के मैच में कोहली की कप्तानी की क्षमता पर बार-बार सवाल उठाए हैं, तो इसकी वजह भी है। आइपीएल ही नहीं, उनकी कप्तानी में भारत आइसीसी ट्रॉफी भी जीतने में नाकाम रहा है। जबकि उनके मेंटर महेंद्र सिंह धोनी ऐसा कर चुके हैं। बहरहाल, 26 सितंबर के उस मैच में बेंगलूरू की टीम ने मुंबई इंडियंस पर 54 रनों की अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की। उसमें ऑस्ट्रेलियाई हरफनमौला ग्लेन मैक्सवेल और तेज गेंदबाज हर्षल पटेल का योगदान अहम था, जिन्होंने हैट्रिक ली। कोहली की टीम ने आइपीएल के इस सीजन में लगातार दूसरे मैच में पिछले चैंपियन को हराया है।
इस तरह की छोटी-छोटी चीज विराट कोहली के लिए सांत्वना पुरस्कार ही हो सकती है, क्योंकि सफेद गेंद से खेली जाने वाली क्रिकेट में उनका रिकॉर्ड धोनी या रोहित शर्मा जैसा नहीं है। ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप के लिए धोनी को मेंटर नियुक्त किया जाना स्पष्ट संकेत है कि कोहली को बड़े मैच के लिए कोचिंग की जरूरत है। रिटायर्ड धोनी ड्रेसिंग रूम में बैठकर किस तरह मदद करेंगे, यह देखना बाकी है। कोहली भले ही इस बात से सहमत न हों, लेकिन महान सचिन तेंडुलकर के साथ तुलना किए जाने वाले इस खिलाड़ी का फॉर्म पिछले दो सीजन में चिंता का विषय रहा है। कोहली ने अंतरराष्ट्रीय मैचों में जितनी तेजी से 70 शतक बनाए, उससे लग रहा था कि वे आसानी से तेंडुलकर के 100 अंतरराष्ट्रीय शतकों का रिकॉर्ड तोड़ देंगे। लेकिन उसके बाद दो साल से उनके खाते में एक भी शतक नहीं है। इसलिए तेंडुलकर के उस मील के पत्थर तक कोहली को पहुंचने में अब जाहिर है ज्यादा समय लगेगा।
क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में कोहली का पूर्ण प्रभुत्व भी खतरे में नजर आ रहा है। जहां तक नेतृत्व की बात है तो कोहली को रोहित शर्मा से टक्कर मिलेगी। मुंबई के इस बल्लेबाज ने साबित किया है कि क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में वे अच्छा खेल सकते हैं और टेस्ट, एकदिवसीय तथा ट्वेंटी-20 में स्थायी सलामी बल्लेबाज की भूमिका निभा सकते हैं। बीते दो वर्षों में रोहित का रिकॉर्ड कोहली से बेहतर रहा है। इंग्लैंड के हालिया चुनौतीपूर्ण दौरे में भी रोहित शर्मा ने दिखाया कि वे सीम और स्विंग का सामना करने में सक्षम हैं। ऐसे समय जब कोहली समेत भारत के शीर्ष क्रम के बल्लेबाज इंग्लैंड के तेज गेंदबाजों के सामने ध्वस्त हो रहे थे, तब रोहित शर्मा ने पैर जमाया और ओवल टेस्ट में 127 रनों की पारी खेली। उनकी इसी पारी की बदौलत भारत 1971 के बाद ओवल के मैदान में दूसरी बार इंग्लैंड को शिकस्त दे सका। वह भारत और इंग्लैंड के बीच चौथा टेस्ट मैच था। उससे पहले लॉर्ड्स में खेले गए दूसरे टेस्ट में रोहित ने 83 रनों की पारी खेली। उन्होंने 145 गेंदें खेलकर ये रन बनाए, जिससे पता चलता है कि इस बल्लेबाज के पास श्रेष्ठ स्तर का पेशेवर मिजाज और तकनीक है।
इसके विपरीत कोहली के नाम बीते दो वर्षों में एक भी शतक नहीं है। उन्होंने आखिरी शतक नवंबर 2019 में बांग्लादेश के खिलाफ कोलकाता में खेले गए पिंक बॉल टेस्ट में लगाया था। उस मैच में उन्होंने 136 रन बनाए थे। हालिया इंग्लैंड सीरीज में वे दो बार अर्धशतक को शतक में बदलने में नाकाम रहे, जिससे पता चलता है कि उन पर दबाव हावी होने लगा है। टेस्ट और एकदिवसीय मैचों में रोहित का प्रदर्शन बीते दो वर्षों में कोहली से बेहतर है। जनवरी 2020 से रोहित ने 11 टेस्ट मैचों में 47.68 के औसत से 906 रन बनाए। इसमें दो शतक शामिल हैं। इस दौरान कोहली ने 12 टेस्ट मैच में 26.80 के औसत से 563 रन बनाए। उनके नाम कोई शतक भी नहीं है। एकदिवसीय मैचों की भी यही कहानी है। रोहित ने नौ मैचों में 57.66 के औसत से 519 रन बनाए, जिसमें दो शतक हैं। तुलनात्मक रूप से कोहली के आंकड़े हल्के हैं। उन्होंने 15 मैचों में बिना किसी शतक के 43.26 की औसत से 649 रन बनाए।
लोग भले ही कहें कि रैंकिंग कोई मायने नहीं रखती और आंकड़े सिर्फ स्टैटिसटिशियन के मतलब की चीज हैं, लेकिन हर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी का स्वार्थ होता है। ऐसे समय जब हर परफॉर्मेंस को मैनेजर और एजेंट पैसे की नजर से देखते हैं, यह जरूरी हो जाता है कि खिलाड़ी का फॉर्म लगातार बना रहे क्योंकि हर रन से उन्हें कुछ न कुछ आर्थिक फायदा होगा। विराट कोहली जैसे खिलाड़ी के लिए दो साल तक कोई शतक न होना बड़ी चिंता का विषय है। सिर्फ क्रिकेट के नजरिए से नहीं, बल्कि ब्रांड वैल्यू के नजरिए से भी।
कोहली 5 नवंबर को 33 साल के हो जाएंगे। यहां इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, सुरेश रैना और युवराज सिंह जैसे कई शीर्ष स्तर के खिलाड़ी 30 की उम्र के बाद शारीरिक परेशानियां झेल चुके हैं। भारतीय क्रिकेटर पूरे साल जितनी क्रिकेट खेलते हैं, उसे देखते हुए यह बर्नआउट अप्रत्याशित नहीं है। कोहली दुनिया के सबसे फिट क्रिकेटरों में हैं और वे बर्नआउट या चोट के कारण किनारे कर दिया जाना झेल नहीं सकते। हाल ही में कोहली ने एक वेलनेस स्टार्टअप हाइपराइस में निवेश किया है। वे इसके ग्लोबल एंबेसडर भी बनाए गए हैं, ताकि भारत में उसकी मार्केटिंग आसानी से की जा सके। इससे कोहली, टेनिस ग्रैंड स्लैम चैंपियन नाओमी ओसाका (सबसे अधिक पैसे पाने वाली महिला एथलीट), एनबीए स्टार जा मोरेंट और पीजीए टूर चैंपियन रिकी फाउलर जैसे एलीट एथलीट-निवेशक श्रेणी में शुमार हो गए हैं। कोहली की नेटवर्थ 638 करोड़ रुपये है। यह नेटवर्थ इसी तथ्य पर बनी है कि वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में शुमार हैं और उनकी छवि आक्रामक और अपने आप पर भरोसा करने वाले खिलाड़ी की है।
लेकिन कोहली तेंडुलकर नहीं हैं। अभी तक तो नहीं। लिटिल मास्टर अभी दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेटर हैं। उनकी नेटवर्थ 1090 करोड़ रुपये है। महेंद्र सिंह धोनी 767 करोड़ रुपये के साथ दूसरे और कोहली तीसरे नंबर पर हैं। यह वैलुएशन इस बात पर भी निर्भर है कि इन खिलाड़ियों का क्रिकेट जीवन कितना लंबा रहा। तेंडुलकर का करिअर करीब 25 साल का था और इस दौरान उन्हें ‘क्रिकेट के भगवान’ की उपाधि मिली। लेकिन अपने कवरड्राइव की तरह उन्हें यह भी मालूम था कि कप्तानी कब छोड़नी है। तेंडुलकर ने दो बार भारतीय टीम की कप्तानी छोड़ी। उन्हें 1996 और 1999 में कप्तान बनाया गया था, लेकिन दोनों बार टीम के खराब प्रदर्शन के चलते उन्हें कप्तानी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।
तेंडुलकर ने 25 टेस्ट मैचों में भारत का नेतृत्व किया। इनमें से सिर्फ चार टेस्ट में जीत मिली और नौ में हार का सामना करना पड़ा, 12 मैच बेनतीजा रहे। तेंडुलकर ने 73 एकदिवसीय मैचों में भारतीय टीम की कप्तानी की जबकि जीत सिर्फ 23 में मिली। मुंबई इंडियंस के कप्तान के रूप में तेंडुलकर कभी आइपीएल ट्रॉफी नहीं जीत सके। उन्होंने बाद में बताया कि व्यक्तिगत जीवन प्रभावित होने के चलते उन्होंने कप्तानी छोड़ने का फैसला किया था।
उन्होंने कहा था, “यह मुझे व्यक्तिगत रूप से प्रभावित करने लगा था। हर एक हार मैदान पर और उससे बाहर भी मुझे आहत करने लगी थी। जब मैं अपने परिवार के साथ होता तब भी लगातार उसी हार के बारे में सोचता रहता था। मैंने हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की और दिया भी। फिर भी हमने ऐसे मैच गंवाए, जिन्हें हमें जीतना चाहिए था। उन मैचों से निराशा हुई और मैं आहत भी हुआ। मैं यह सोच कर परेशान रहता था कि जो मैच हमारी जेब में थे, उन्हें भी हमसे छीन लिया गया।”
तेंडुलकर के नेतृत्व में भारतीय टीम का प्रदर्शन भले ही अच्छा न रहा हो, लिटिल मास्टर के लिए 1996 से 2000 का समय बहुत अच्छा था। इस दौरान उन्होंने 39 अंतरराष्ट्रीय शतक लगाए, जिनमें 13 कप्तान के रूप में थे। कप्तानी छोड़ने के बाद तेंडुलकर ने 13 वर्षों तक क्रिकेट खेली। इस दौरान उन्होंने 49 शतक लगाए, 27 टेस्ट मैचों में और 22 एकदिवसीय मैच में।
1996-97 के दौरान भारतीय टीम के कोच रहे पूर्व हरफनमौला खिलाड़ी मदनलाल के अनुसार तेंडुलकर अपने खेल में इतना अधिक रम जाते थे कि कप्तान के रूप में विफल हो गए। उन्होंने कहा था, “मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं कि वे अच्छे कप्तान नहीं थे, लेकिन वे अपने प्रदर्शन को लेकर इतना अधिक मशगूल रहते थे कि उनके लिए टीम को देखना मुश्किल हो गया। बतौर कप्तान आपको न सिर्फ अपनी परफॉर्मेंस पर ध्यान देना पड़ता है, बल्कि टीम के बाकी 10 खिलाड़ियों से भी बेहतर प्रदर्शन करवाना पड़ता है। यह बड़ा ही महत्वपूर्ण है कि आप उन्हें कैसे मैनेज करते हैं।”
कोच ग्रेग चैपल के साथ खराब रिश्ते के कारण सौरभ गांगुली का करिअर प्रभावित हुआ
कोहली का भविष्य भी कुछ वैसा ही हो सकता है। अगर वे तेंडुलकर की तरह बनना चाहते हैं तो काम के बोझ का मैनेजमेंट बेहद जरूरी है। ट्वेंटी-20 की कप्तानी छोड़ना शायद इसी दिशा में पहला कदम है। और वे ऐसा क्यों न करें। कोहली टेस्ट क्रिकेट के प्रशंसक हैं। उनके दो लक्ष्य हो सकते हैं- 100 का औसत या 100 अंतरराष्ट्रीय शतक। डॉन ब्रैडमैन भी 100 का औसत हासिल नहीं कर पाए, लेकिन तेंडुलकर की तरह कोहली के लिए शतकों का शतक लगाना असंभव नहीं होगा।
दो साल पहले शतकों पर विराम लगने से पहले कोहली ने रिकी पोंटिंग से एक कम, 70 अंतरराष्ट्रीय शतक लगाए थे। करिअर के चरम पर दो साल तक एक भी शतक न लगा पाने का मतलब है कि कोहली के पास शतकों का शतक लगाने के लिए पांच से छह साल हैं। बशर्ते वे टेस्ट और एकदिवसीय खेलने के लिए फिट रहते हैं, उन्हें कोई चोट नहीं लगती और चयनकर्ता उन्हें मौका देते हैं। करिअर के आखिरी दिनों में जब तेंडुलकर फॉर्म में नहीं रह गए थे, तब चयनकर्ताओं से उन्हें काफी सहयोग मिला। तेंडुलकर ने वेस्टइंडीज के खिलाफ नवंबर 2013 में वानखेड़े स्टेडियम में अपनी आखिरी पारी में 74 रन बनाए थे। उन्होंने आखिरी सेंचुरी (146) जनवरी 2011 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ केपटाउन में लगाई थी।
रोहित शर्मा का करिअर आने वाले दिनों में और अच्छा हो सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट (टेस्ट और एकदिवसीय) में विराट कोहली ही भारत के मुख्य बल्लेबाज होंगे। भारत की ट्वेंटी-20 टीम की कप्तानी सहज रूप से रोहित को मिलनी चाहिए, लेकिन 34 साल का यह खिलाड़ी भी अब युवा नहीं रहा। रोहित अक्सर चोटिल होते रहे हैं और फिटनेस बरकरार रखना उनके लिए चुनौतीपूर्ण होगा। इसके बावजूद मुंबई इंडियंस के कप्तान सफेद गेंदों के खेल में स्पष्ट रूप से आगे हैं। लेकिन कोहली को इस बात की फिक्र नहीं होगी। उनका फोकस टेस्ट और एकदिवसीय मैचों पर होगा, जहां शतक लगाने की संभावना अधिक होगी। तेंडुलकर की बराबरी करने के लिए कोहली को अगले पांच वर्षों तक हर साल कम से कम छह शतक लगाने होंगे, जो काफी चुनौतीपूर्ण है।
स्टार स्पोर्ट्स के एक शो में महान भारतीय बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने टीम इंडिया के अगले कप्तान और उप-कप्तान पर अपनी पसंद बताई, “रोहित शर्मा को अगले दो वर्ल्ड कप के लिए कप्तान बनाया जाना चाहिए। दोनों वर्ल्ड कप एक के बाद एक हैं। पहला तो एक महीने के भीतर ही होने जा रहा है और दूसरा एक साल बाद। इसलिए इस अहम मौके पर आप बार-बार कप्तान नहीं बदलना चाहेंगे। इन दोनों ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप के लिए रोहित शर्मा भारतीय टीम के कप्तान के रूप में मेरी पसंद होंगे। उप-कप्तान के रूप में मैं के.एल. राहुल को देखना चाहूंगा। मैं ऋषभ पंत को भी ध्यान में रखूंगा, क्योंकि उन्होंने स्टार खिलाड़ियों से भरी दिल्ली की टीम का उम्दा नेतृत्व किया है। नोरजे और रबाडा जैसे गेंदबाजों के साथ उन्होंने गेंदबाजी में जिस तरह बदलाव किए, वह उन्हें स्मार्ट बनाता है। हालात को पढ़ने और तत्काल फैसला करने के लिए आपको ऐसे ही स्मार्ट कप्तान की जरूरत है। इसलिए उप-कप्तान के रूप में मेरी नजर राहुल और पंत पर होगी।”
गावस्कर के रिश्ते भी कपिल देव से बिगड़ गए थे
अगले दो वर्षों के दौरान भारत का अंतरराष्ट्रीय मैचों का कैलेंडर ट्वेंटी-20 से भरा पड़ा है। अक्टूबर-नवंबर 2022 में ऑस्ट्रेलिया में ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप का आयोजन होगा। (कोविड के कारण टूर्नामेंट एक साल टला) इसके अलावा भारत को सात टेस्ट, छह एकदिवसीय और 20 से ज्यादा ट्वेंटी-20 मैच खेलने हैं। दस टीमों वाले आइपीएल टूर्नामेंट में कम से कम 18 मैच खेले जाएंगे। कोहली बल्लेबाज के रूप में खेलना तो पसंद करेंगे ही, वे 2023 में 50 ओवर वाले वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में भारत का नेतृत्व भी करना चाहेंगे। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सारी बातें उनके पक्ष में हों और उनका फॉर्म इतना अच्छा हो कि चयनकर्ता और प्रशंसक दोनों उन पर भरोसा कर सकें।
किसी भी टीम के आगे बढ़ने और खिलाड़ियों के फलने-फूलने के लिए कप्तान, वरिष्ठ खिलाड़ियों और मुख्य कोच के बीच अच्छा समीकरण होना जरूरी है। तेंडुलकर और सौरभ गांगुली को अपने कोच से समस्या थी। कोच ग्रेग चैपल के साथ खराब रिश्तों के कारण गांगुली का करिअर प्रभावित हुआ। तेंडुलकर की कप्तानी के समय कपिलदेव मुख्य कोच बनाए गए थे। तेंडुलकर हमेशा इस बात को लेकर आशंकित रहते थे कि उनके साथी खिलाड़ी कैसा खेलेंगे।
अपनी आत्मकथा प्लेइंग इट माय वे में तेंडुलकर ने लिखा है कि नवंबर 1999-जनवरी 2000 के समय ऑस्ट्रेलिया दौरे में वे कपिलदेव से क्यों निराश थे। अध्याय ट्युमुल्टस टाइम्स (उथल-पुथल का समय) मैं उन्होंने लिखा है, “जब मैं दूसरी बार कप्तान बना तो कपिलदेव हमारे कोच थे। वे भारत के लिए खेलने वाले सबसे अच्छे क्रिकेटरों में एक हैं और सर्वकालिक महान ऑलराउंडर भी हैं। ऑस्ट्रेलिया में मुझे उनसे बहुत उम्मीदें थीं।”
उन्होंने आगे लिखा है, “मेरा हमेशा यह मानना रहा है कि कोच की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। वह टीम के लिए रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाता है। ऑस्ट्रेलिया के कठिन दौरे के समय कपिलदेव से बेहतर और कौन होता, जो मेरे लिए तमाम विकल्प लेकर आता। लेकिन उनके सोचने का तरीका अलग था। टीम को कैसे चलना है, यह उन्होंने पूरी तरह कप्तान पर छोड़ दिया। इसलिए वे हमारे साथ किसी रणनीतिक चर्चा में हिस्सा नहीं लेते थे, जिसका हमें मैदान पर फायदा मिले।”
अनिल कुंबले को कोच पद से हटाकर शास्त्री को जिम्मेदारी दी गई
रवि शास्त्री के बाद कोहली को नए कोच के साथ अच्छे संबंध बनाने होंगे। अगर नए कोच अनिल कुंबले हुए तो समस्याएं आ सकती हैं। इंग्लैंड में 2017 की आइसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बाद कोहली के कारण ही अनिल कुंबले ने मुख्य कोच का पद छोड़ा था। चार साल पहले कोहली सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त प्रशासक समिति पर भी भारी पड़े और रवि शास्त्री को मुख्य कोच बनवाने में सफल रहे थे। बीसीसीआइ क्रिकेट सलाहकार समिति का समर्थन होने के बावजूद कोच के रूप में कुंबले की पारी एक साल ही चली। अपने इस्तीफे में उन्होंने आश्चर्य जताते हुए लिखा, “मुझे बताया गया कि कोहली को मेरी शैली से आपत्ति थी। पेशेवर रवैया, अनुशासन, प्रतिबद्धता, ईमानदारी और अलग-अलग मत ही वे बातें हैं, जिन्हें मैं सबके सामने रखता हूं। खिलाड़ियों के बीच बेहतर सामंजस्य के लिए इन बातों को महत्व देना जरूरी है। मेरे विचार से कोच की भूमिका आईना दिखाने की होती है, ताकि टीम हित में खिलाड़ी खुद को सुधार सकें।” जाहिर है, भारतीय क्रिकेट के लिए यह कौतूहल भरा समय है। रोहित शर्मा भले अपनी बारी का इंतजार कर रहे हों, सुर्खियों में तो विराट कोहली ही रहेंगे।
‘‘दो ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप में कप्तान के लिए रोहित शर्मा, उपकप्तान के लिए के.एल. राहुल और ऋषभ पंत मेरी पसंद’’
सुनील गावस्कर