भारतीय गेंदबाजी: तूफानी तिकड़ी
यकीनन विश्व कप 2023 आखिर में खट्टे अनुभव दे गया, मगर मीठे अनुभव भी जोरदार हैं। फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने भले वह कर दिखाया जो उसके कप्तान पैट कमिंस ने मैच की पूर्व संध्या पर कहा था, कि- हम दर्शकों का जोश-जज्बा शांत कर देंगे। लेकिन उसके पहले सेमीफाइनल तक अविजित रही भारतीय टीम ने कई ऐसे कीर्तिमान स्थापित किए जो लंबे समय तक क्रिकेट इतिहास का हिस्सा बने रहेंगे। विराट कोहली का 50वां वनडे शतक, रोहित शर्मा और कई बल्लेबाजों की आक्रामक तथा सधी बल्लेबाजी का कीर्तिमान तो है ही, मगर वाकई ऐतिहासिक 150 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से सही लाइन-लेंथ की हैरतअंगेज तूफानी गेंदबाजी है, जिसके लिए भारत कभी जाना नहीं जाता था। उसमें भी मोहम्मद शमी, जसप्रीत बुमराह, मोहम्मद सिराज की वह लाजवाब तिकड़ी है जो दुनिया के आला बल्लेबाजों में दहशत पैदा कर रही है और भारत को पहली बार तेज गेंदबाजी के शिखर पर बैठा दिया है। अब से पहले भारत अपने स्पिनरों या फिरकी गेंदबाजों के जादू के लिए जाना जाता था। दशकों पहले भारत की स्पिनर चौकड़ी (बिशन सिंह बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर, वेंकट राघवन) दुनिया भर के आला बल्लेबाजों में दहशत भर देती थी। 1972-73 में कलकत्ता के ईडेन गार्डेन में वेस्ट इंडीज टीम की हार का वह नजारा पुराने लोगों को याद होगा, जब चंद्रशेखर ने सात विकेट चटका दिए थे। तब वेस्ट इंडीज के बेहद नाराज कप्तान क्लाइव लॉयड यह तक कह गए थे कि यह कैसी गेंदबाजी है! लेकिन भारत में तेज गेंदबाजों का टोटा रहा है। पड़ोसी देश पाकिस्तान के तेज गेंदबाज शोएब अख्तर अक्सर कहते थे कि भारत में एक भी ऐसा गेंदबाज नहीं हुआ जिसे 10 सर्वकालिक महान तेज गेंदबाजों की सूची में जगह दी जाए। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व तेज गेंदबाज भारत के तेज गेंदबाजों पर हंसी-ठिठोली किया करते थे और कहते थे कि भारत में मीडियम पेसर होते हैं, तेज गेंदबाज नहीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसी तमाम आलोचनाओं को करारा जवाब दिया है मौजूदा पेसर तिकड़ी ने। अपनी रफ्तार और जादू से सभी को उसने चौंकाया है। इस अविश्वसनीय प्रदर्शन के पीछे बेशक कड़ी मेहनत, टीम वर्क और बारीक विश्लेषण है।
तेज तिकड़ी का सफर
इस विश्व कप मुकाबले में भारतीय गेंदबाजों के इरादे और उनकी सटीक योजनाएं पहले गेम से ही स्पष्ट थीं। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहला मैच, तीसरा ओवर और जसप्रीत बुमराह की शानदार गेंद पर मिचेल मार्श आउट हो गए। 110 रन के स्कोर पर दो विकेट खोने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम को भारत ने 198 रन पर ऑल आउट कर दिया। यह सिलसिला इसी तरह आगे बढ़ता रहा। अफगानिस्तान के सामने बुमराह ने चार विकेट झटके। अगले मैच में पाकिस्तान को भारत ने 191 पर ढेर कर दिया। भारतीय गेंदबाजी क्रम को बांग्लादेश के खिलाफ मैच में तब बड़ा झटका लगा जब इन-फॉर्म हार्दिक पंड्या चोटिल हो गए और अंततः टूर्नामेंट से बाहर हो गए।
पंड्या की चोट टीम इंडिया के लिए गंभीर चिंता का विषय बन सकती थी, मगर दल के सबसे सीनियर तेज गेंदबाज ने ऐसा नहीं होने दिया। दरअसल, हार्दिक बाहर हुए तो वापस आए मोहम्मद शमी। शमी ने पहले ही मैच में न्यूजीलैंड के खिलाफ पांच विकेट झटके और वापसी का शंखनाद कर दिया। शमी ने अगले दो मैचों में और नौ विकेट चटकाए। इंग्लैंड के सामने बुमराह ने दम दिखाया तो श्रीलंका के सामने सिराज ने खलबली मचा दी। कोलकाता में दक्षिण अफ्रीका को 84 रनों पर ढेर करने का जिम्मा रवींद्र जडेजा ने उठाया, जिन्होंने इस मैच में पांच विकेट झटके। कुलदीप यादव ने भी जरूरत पड़ने पर पूरा सहयोग किया। सेमीफाइनल में मोहम्मद शमी के सात विकेटों को शायद ही कोई भारतीय कभी भूल पाएगा। और तो और, यह स्पेल तब आया था जब भारत जीत से दूर जाता दिख रहा था। कुल मिलाकर भारत ने 11 में से 10 मुकाबले जीते और गेंदबाजों ने 8 मौकों पर विरोधी टीम को ऑल आउट किया।
भारत द्वारा टूर्नामेंट में लिए गए कुल 100 विकेटों में पेसरों ने 65 विकेट अपने नाम किए। शमी ने 24, बुमराह ने 20 और सिराज ने 14 विकेट हासिल किए। लेकिन, यह सफर जितना आसान दिखा, क्या यह उतना ही आसान था? जवाब है, ‘नहीं’। इस गेंदबाजी क्रम की रीढ़ रहे जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी। बुमराह ने विरोधी टीमों को शुरुआती झटके दिए तो शमी ने कभी पावरप्ले तो कभी मिडिल ओवरों का जिम्मा संभाला।
अतीत और अनुभव एक दूसरे का पर्याय हैं। अतीत जैसा भी हो, देकर अनुभव ही जाता है। एक समय था जब बुमराह को उनके चोटिल होने के कारण फैंस से खरी-खोटी सुननी पड़ी थी। मोहम्मद शमी की प्रतिभा पर भी कई बार फैंस ने शक किया। सिराज को भी सोशल मीडिया पर गालियां मिलीं। लेकिन, आज तीनों भारत की आंखों के तारे हैं। भारत के पास गेंदबाज पहले भी अच्छे रहे हैं, लेकिन एक ही प्लेइंग 11 में तीन-चार अच्छे गेंदबाज होना एक अलग ही बात है। पहले 11 में केवल एक खिलाड़ी 140 किमी प्रतिघंटा की गति से गेंद फेंकता था और दूसरे छोर से वही 130 की घिसी-पिटी गति। मगर आज विपक्षी बल्लेबाजों के लिए कोई राहत नहीं। अब दोनों छोर से लगातार 145 किमी प्रतिघंटा की गति भारत के सामने विरोधी बल्लेबाजों को सांस लेने तक का समय नहीं देती।
जाना-पहचाना वातावरण
इस वर्ल्ड कप में गेंदबाजी के लिहाज से टीम इंडिया श्रेष्ठ रही- न केवल आंकड़े, बल्कि प्रभाव के स्तर पर भारतीय दल का जवाब नहीं रहा। एक कारण यह भी था कि भारत अपने घर में खेल रहा था। भारतीय सरजमीं पर खेलने का अच्छा अनुभव और यहां के सभी मैदानों की सतह की अच्छी समझ खिलाड़ियों के पक्ष में रही। वानखेड़े में रात में गेंद स्विंग होगी, चेन्नै में पिच धीमी होगी, ईडेन गार्डेन में गेंद घूमेगी, इस तरह की बातें दर्शक और भारतीय टीम से जुड़ा हर व्यक्ति लगभग जानता ही था। यह बात अलग है कि सब कुछ जान लेना भी बहुत बार जीतने के काम नहीं आता। मगर, जिस तरह पेस बैटरी ने अपने अनुभव का इस्तेमाल किया, वह देखने लायक था।
द ‘कोहली’ इफेक्ट
आज केवल भारतीय दल में नहीं, बल्कि पूरे देश में अच्छे तेज गेंदबाजों की खेप तैयार है। तेज गेंदबाजी की इस क्रांति के पीछे बड़ा हाथ विराट कोहली का रहा है। देश में अगर आज ‘फिटनेस कल्चर’ आया है तो श्रेय विराट कोहली को जाता है। 2014 के अंत में रेड बॉल और 2017 में व्हाइट बॉल कप्तान बने विराट के नेतृत्व में भारत ने तेज गेंदबाजी पर जोर दिया। स्विंग, सीम आदि को छोड़कर सबसे पहले पेस की खोज की गई। यो यो टेस्ट सुर्खियों में आया। शारीरिक रूप से फिट विराट कोहली की पसीना बहाने की खूबी ने बल्लेबाजों के साथ-साथ गेंदबाजों को अपनी बॉडी पर काम करने का नुस्खा दिया। सिराज, नवदीप सैनी, खलील अहमद आदि अनेक खिलाड़ियों को विराट का समर्थन मिला। इसके बाद तो मानो एक के बाद एक तेज गेंदबाज आते चले गए।
‘फिट’ खिलाड़ी मतलब ‘हिट’ खिलाड़ी
कहते हैं कि जैसी संगत वैसी पंगत और जैसी पंगत वैसा जीवन। भारतीय क्रिकेट में आज के युग को गेंदबाजों के युग का नाम दिया जाए तो गलत नहीं होगा। इसमें संगत का बड़ा असर रहा है। यह सभी जानते हैं कि 140 करोड़ देशवासियों के बीच में केवल 11 सदस्यों की टीम का हिस्सा बनने का मौका ढेर सारी प्रतिस्पर्धाओं के बाद आता है। फिटनेस संस्कृति के प्रति खिलाड़ियों के बीच लगी होड़ ने भारत को लाभ पहुंचाया है। आज हर कोई एक-दूसरे को देखकर फिटनेस फ्रीक बन गया है। लाजमी है कि खिलाड़ी शारीरिक रूप से जितना अधिक मजबूत होगा, उसे मैदान पर पसीना बहाने में उतनी ही आसानी होगी। शारीरिक और मानसिक क्षमता की डोर भी एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। ऐसे में तकनीकी रूप से बेहतर होना एक फिट खिलाड़ी के लिए ज्यादा आसान होता है।
घरेलू पिच
फिटनेस संस्कृति और आक्रामक तेवर आने के बाद एक बड़ा बदलाव घरेलू पिचों में भी देखने को मिला। घरेलू क्रिकेट अनेक राज्यों के मैदानों में खेला जाता है। ऐसे में कई जगह तेज पिचें भी देखने को मिलती हैं ताकि बल्लेबाज निचले स्तर से ही दूसरे देशों में खेलने हेतु काबिल बन सकें। इसका फायदा कहीं न कहीं घरेलू क्रिकेट के गेंदबाजों को भी हुआ है। उन्हें ऐसी पिचों पर खेलते-खेलते लाइन लेंथ परखने में सहायता मिली। इंडिया ए और अंडर 19 टीमों के विदेशी दौरे भी भारतीय गेंदबाजी के सुधार में सहायक तत्व बने हैं।
प्रबंधन का सहयोग
जुलाई 2017 में रवि शास्त्री की बतौर हेड कोच नियुक्ति हुई। यह वही साल था जब विराट कोहली को सभी फॉर्मेट का कप्तान बना दिया गया था। रवि शास्त्री के नेतृत्व में टीम के साथ जुड़े बॉलिंग कोच भरत अरुण। कहा जाता है कि भरत अरुण की देखरेख में भारत की गेंदबाजी ने काफी सुधार किया। भरत अरुण और वर्तमान में भारत के गेंदबाजी कोच पारस म्हांब्रे को बहुत श्रेय इसलिए भी जाता है क्योंकि उन्होंने ही गेंदबाजों की फिटनेस, मानसिकता, लाइन-लेंथ आदि तकनीकी चीजों पर काम किया। अरुण और म्हांब्रे का खेल करियर उतना लंबा भले न रहा हो, लेकिन टीम इंडिया के लिए गेंदबाजों पर की गई उनकी मेहनत प्रदर्शन में साफ नजर आती है। खिलाड़ियों के रिहैब और ट्रेनिंग के लिए नेशनल क्रिकेट एकेडमी में काम करने वाले स्टाफ को भी इसका श्रेय जाता है।
चल गए भारतीय तेज गेंदबाज
भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कई तेज गेंदबाज आए हैं। मोहम्मद निसार से लेकर बलविंदर संधु या कपिल देव से लेकर जवागल श्रीनाथ, जहीर खान, श्रीसंत और आशीष नेहरा आदि कई खिलाड़ियों ने भारत का प्रतिनिधित्व किया, फिर भी आज से पहले कभी भारत को अच्छे गेंदबाजों के देश की श्रेणी में नहीं रखा गया। भारत हमेशा बल्लेबाजों या स्पिन गेंदबाजों की भूमि के रूप में ही जाना पहचाना गया है। आज विश्व कप में भारत की हार जरूर हुई है लेकिन भारत के प्रति विश्व का नजरिया बदला है। आज दुनिया हमें हर क्षेत्र में एक शक्ति के रूप में देख रही है। हार के पीछे छुपी इस जीत को देखना, इसका अभिवादन करना जरूरी है।
भारतीय तेज गेंदबाजों के अलावा भारत के विश्व कप 2003 फाइनल तक के शानदार सफर में कई और पहलू रहे। भारतीय कप्तान और सलामी बल्लेबाज रोहित शर्मा ने जिस तरह की शुरुआत दी, उसने भारतीय टीम के प्रदर्शन को उच्च स्तर पर पहुंचाया। रोहित अपनी धुआंधार बल्लेबाजी से दूसरी टीम को ऐसा झटका देते थे कि उससे उबरने में दूसरी टीम को समय लग जाता था और तब तक विराट कोहली, श्रेयस अय्यर मैच को भारत के पाले में ले आते थे। इस रवैये के कारण ही भारत को फाइनल में छोटे स्कोर पर सिमटना पड़ा, लेकिन रोहित ने अपने अंदाज से सभी को प्रभावित किया। रोहित शर्मा और श्रेयस अय्यर की बेधड़क बल्लेबाजी के कारण ही विराट कोहली थोड़ा शांत और स्थिर रहकर बल्लेबाजी कर सके और उनके 50 शतक का कीर्तिमान बन सका।
बल्लेबाजी के साथ भारतीय क्रिकेट टीम की फील्डिंग ने भी अभियान को मजबूती दी। हर मैच में शानदार प्रदर्शन करने वाले फील्डर को मेडल देने की परंपरा कोचिंग स्टाफ द्वारा शुरु की गई और इसने टीम को एक सूत्र में पिरोने का काम किया।
हर हार कुछ सिखा कर जाती है। फाइनल की हार ने सिखाया है कि भारतीय टीम को अभी बड़े मौकों पर दबाव से निपटना सीखना होगा। बाकी, तेज गेंदबाजों का प्रदर्शन इस विश्व कप का हासिल रहा ही है। पाकिस्तान को तेज गेंदबाजों की खान कहा जाता है क्योंकि वहां के युवा वसीम अकरम, वकार यूनुस और शोएब अख्तर को देखकर प्रेरणा लेते हैं और तेज गेंदबाजी में जान झोंक देते हैं। जिस तरह मोहम्मद शमी, जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज ने विश्व कप में प्रदर्शन किया, यह तय है कि भारतीय युवा गेंदबाज इससे प्रेरणा लेंगे और आने वाले समय में भारत भी तेज गेंदबाजी की सरजमीं बनकर पूरी दुनिया में चमकेगा।