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16 October 2015

डीडीसीए विवादः कीर्ति आजाद ने दिल्ली के कंपनी रजिस्ट्रार को घेरा

गूगल

उन्होंने जांचकर्ताओं की टीम पर यह भी आरोप लगाया है कि उन्होंने डीडीसीए के शीर्ष मैनेजमेंट को इस मामले में बच निकलने में मदद की है। आजाद ने डीडीसीए प्रबंधन पर पिछले दस वर्षों में 400 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप लगाया है। डीडीसीए के अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली आजाद के निशाने पर रहे हैं। अपने ताजा हमले में कीर्ति आजाद ने सीधे-सीधे जेटली का नाम नहीं लिया है।

आजाद ने कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के सचिव तपन राय को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक ए.के. चतुर्वेदी और दिल्ली के कंपनी रजिस्ट्रार डी. बंद्योपाध्याय ने डीडीसीए के घपलों की जांच के नाम पर लीपापोती की है। आजाद ने यहां तक आरोप लगाया है कि बंद्योपाध्याय इससे पहले कोलकाता में 9 साल तक कंपनी रजिस्ट्रार के पद पर रहे और उन्हीं के समय में वहां सारधा घोटाला हुआ और इस मामले में उनकी भूमिका की जांच भी सीबीआई कर रही है। ऐसे में बंद्योपाध्याय से डीडीसीए के मामले की निष्पक्ष जांच की उम्मीद नहीं की जा सकती। कीर्ति आजाद ने अपने पत्र में लिखा है, ‘मेरी शिकायत पर डीडीसीए की वित्तीय गड़बड़ियों की जांच पूर्व में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों ने की थी जिसमें एसएफआईओ का भी एक अधिकारी शामिल था। इस टीम की रिपोर्ट की भाषा और जिस तरह इस टीम ने डीडीसीए के शीर्ष अधिकारियों को बच निकलने का रास्ता दिया उसने मुझे इस नतीजे पर पहुंचने में मदद की कि यह क्षेत्रीय निदेशक और उनकी टीम का महज दिखावा भर है और इससे डीडीसीए में पिछले 10 वर्षों में जो वित्तीय अनियमितताएं और गड़बड़ियां हुई हैं और जिसके जरिये करीब 400 करोड़ रुपये की लूट हुई उसके लिए डीडीसीए के शीर्ष प्रबंधन की जिम्मेदारी तय करने में खास मदद नहीं मिलेगी।’

आजाद ने यह भी लिखा है कि इस जांच के बारे में जब उन्होंने सवाल उठाए तो आपके (तपन राय) मंत्रालय ने डीडीसीए के खातों की पुनः जांच के आदेश दिए हालांकि इसबार इसे इंस्पेक्‍शन नाम दिया गया। आजाद का आरोप है कि सितंबर 2014 में कॉरपोरेट मंत्रालय के क्षेत्रीय निदेशक ए.के. चतुर्वेदी और कंपनी रजिस्ट्रार डी बंद्योपाध्याय की नियुक्ति के बाद इस इंस्पेक्‍शन को भी दिखावटी तरीके से अंजाम दिया गया। आजाद के अनुसार इस मंत्रालय में वरिष्ठता का क्रम इस प्रकार है, सबसे पहले मंत्रालय, फिर क्षेत्रीय निदेशक और अंत में कंपनी रजिस्ट्रार। मंत्रालय ने क्षेत्रीय निदेशक को पुनः जांच का आदेश दिया (कंपनी रजिस्ट्रार को नहीं)। मगर क्षेत्रीय निदेशक ने कंपनी रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर उन्हें अपनी (बंद्योपाध्याय की) अगुवाई में जांच करने का निर्देश भेज दिया। कमाल की बात है कि बंद्योपाध्याय ने भी जांच नहीं की बल्कि अपने सबसे जूनियर अधिकारियों को जांच का जिम्मा सौंप दिया और इसमें से दो ने तो अभी-अभी नौकरी शुरू ही की थी। तुर्रा यह कि इस कारगुजारी के बारे में क्षेत्रीय निदेशक को सूचित भी नहीं किया गया। जब क्षेत्रीय निदेशक ने इसपर कंपनी रजिस्ट्रार से सफाई मांगी तो उन्होंने कह दिया कि उनके पास जांच के लिए समय नहीं है। इतना ही नहीं बंद्योपाध्याय ने यह भी लिख दिया कि क्षेत्रीय निदेशक इन जांच अधिकारियों को गाइड करने के लिए एक संयुक्त निदेशक स्तर के अधिकारी को तैनात कर दें। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि कंपनी रजिस्ट्रार खुद संयुक्त निदेशक स्तर के अधिकारी होते हैं क्षेत्रीय निदेशक के कार्यालय में तैनात किसी भी संयुक्त निदेशक के मुकाबले वरिष्ठ होते हैं, इसके बावजूद उन्होंने जांच की निगरानी के लिए संयुक्त निदेशक स्तर का अधिकारी मांग लिया। इसके बाद क्षेत्रीय निदेशक ने कानपुर के कंपनी रजिस्ट्रार एसपी कुमार और चंडीगढ़ के कंपनी रजिस्ट्रार संतोष कुमार को इस मामले में जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया। यहां यह ध्यान देने की बात है कि संतोष कुमार पहले की जांच में भी शामिल थे और आजाद का आरोप है कि उस जांच की लीपापोती में उनका भी हाथ था।

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आजाद का कहना है कि कानपुर और चंडीगढ़ के अधिकारियों की इस जांच में नियुक्ति गैर कानूनी है क्योंकि दिल्ली उनका क्षेत्राधिकार नहीं है। वैसे भी उन्होंने सिर्फ एक बार जांच में हिस्सेदारी की। बाद में बंद्योपाध्याय ने क्षेत्रीय निदेशक को पत्र लिखा कि ये दोनों अधिकारी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं इसलिए जांच आगे नहीं बढ़ रही है। आजाद का आरोप है कि यह सब दरअसल डीडीसीए के घपलों को छिपाने की तरकीबे हैं और इन उपायों से इसे अंजाम दिया गया है। आजाद आरोप लगाते हैं बंगाल के अपने 9 वर्ष के कार्यकाल में बंद्योपाध्याय ने इन्हीं तरकीबों के जरिये सारधा घोटाला, रोज वैली घोटाला तथा ऐसे अन्य घोटालों को संरक्षण दिया। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय इसी वजह से कई बार उनसे पूछताछ कर चुकी है। उनपर आरोप है कि उपरोक्त कंपनियों के खिलाफ जांच के सरकारी आदेश को उन्होंने 4 साल तक लटकाए रखा। यही नहीं मात्र दो दिन में उन्होंने सारधा समूह की 200 कंपनियों को रजिस्टर कर दिया और उसमें भी एक दिन छुट्टी का शामिल था। सारधा और रोज वैली घोटाले में निवेशकों के करीब 70 हजार करोड़ रुपये की लूट का अनुमान है। आजाद का कहना है कि ऐसी संदिग्‍ध निष्ठा वाले अधिकारी को जहां जांच के दायरे में होना चाहिए वहां उसे दिल्ली में नियुक्ति दे दी गई। तपन राय को लिखे पत्र में आजाद ने बंद्योपाध्याय के खिलाफ बंगाल में तैनाती के दौरान लगे आरोपों से संबंधित मीडिया खबरों के लिंक भी भेजे हैं।

कीर्ति आजाद राय को स्पष्ट लिखा है कि डीडीसीए के मसले के तार्किक समाधान तक पहुंचने से पहले वह चैन से नहीं बैठने वाले। उन्होंने लिखा है वह चाहते हैं राय इस मामले में सफाई से और त्वरित गति से कार्रवाई करें।

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TAGS: कीर्ति आजाद, रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी, कॉरपोरेट मामले मंत्रालय, तपन राय, डी बंद्योपाध्याय, डीडीसीए, वित्तीय अनियमितता, Kirti Azad, Registrar of Companies, Ministry of Corporate Affairs, Tapan Roy, D. Bandyopadhyay, DDCA, financial irregularities
OUTLOOK 16 October, 2015
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