गुटबाजी में हार बैठे 'इज्जत’ की बाजी
चौथा मैच जीतकर शृंखला बराबर करने के बाद यह मामला थोड़ी देर के लिए दब गया लेकिन पांचवें मैच में हुई जबर्दस्त कुटाई के बाद एक बार फिर साबित हो गया कि कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और उपकप्तान विराट कोहली के बीच कुछ मतभेद तो है। मेहमान टीम से सीमित ओवरों की दोनों शृंखलाएं हारने के बाद धोनी का यह कथन सच नजर आने लगा है कि टीम प्रबंधन के कई लोग तलवारें लेकर इंतजार में खड़े हैं कि मैं गलतियां करूं। शायद यही वजह है कि मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम की पिच को लेकर रवि शास्त्री और पिच क्यूरेटर सुधीर नाइक के बीच कड़वाहट बढ़ी जबकि धोनी ने टीम को ढर्रे पर लाने के लिए कुछ जरूरी मसलों का हल देने पर जोर दिया। दरअसल, धोनी बनाम कोहली गुटों में बंट चुकी टीम ही दक्षिण अफ्रीका को पहली बार भारत की धरती पर शृंखला जिताने का कारण बनी है।
इतना ही नहीं, भारतीय धरती पर किसी टीम द्वारा यह सबसे बड़ा स्कोर है। किसी एकदिवसीय मैच में दूसरी बार ऐसा हुआ है कि जब एक ही पारी में तीन बल्लेबाजों ने शतक जमाए हों। मीडिया में इस बात पर चर्चा तेज है कि धोनी खेमे के खिलाड़ी फॉर्म में नहीं थे और विराट कोहली के खेमे के खिलाड़ियोंे ने असहयोग आंदोलन चला रखा था, जिस वजह से इतनी बड़ी हार मिली। पिछले साल टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के कारण भी धोनी की अन्य टेस्ट खिलाड़ियोंे से संवादहीनता की खाई बढ़ी है। धोनी की सफल रणनीति मुख्य रूप से अच्छे क्षेत्ररक्षण और मध्यम गति के तेज गेंदबाजों की चतुराई पर निर्भर करती है। लेकिन पिछले कुछ समय से धोनी के चहेते आर. अश्विन चोटिल रहे जबकि अन्य तेज और स्विंग गेंदबाज भी इस शृंखला में अनफिट रहे। दोनों शृंखला देखकर तो ऐसा ही लगा कि धोनी के खिलाफ पूरी रणनीति उन्हें एकदिवसीय और ट्वेंटी-20 में भी विफल साबित करने की रही। बेशक, धोनी ने भी कुछ गलतियां की हैं जिन्हें उन्होंने खुद भी स्वीकार किया। मसलन, मध्यक्रम की बल्लेबाजी में लगातार फेरबदल करने से सबसे ज्यादा अजिंक्य रहाणे की बल्लेबाजी प्रभावित हुई। सलामी बल्लेबाज शिखर धवन पांच मैचों में 25.20 की औसत से सिर्फ 126 रन ही बना पाए जबकि सुरेश रैना 13.60 की औसत से पूरी शृंखला में सिर्फ 68 रन ही बना पाए। हालांकि सीमित गेंदबाजों के कारण धोनी के हाथ जरूर बंधे थे लेकिन उमेश यादव और वरुण ऐरॉन पर उनका बहुत ज्यादा विश्वास भी नहीं था।
वहीं, उनके भरोसेमंद गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार और मोहित शर्मा ने तेज गेंदबाजी करते हुए 17 ओवर में ही 190 रन लुटा दिए। आखिरी एकदिवसीय मैच में दक्षिण अफ्रीका के क्विंटन डी कॉक ने कमजोर भारतीय गेंदबाजी का भरपूर फायदा उठाया और 87 गेंदों में ही स्कोर बोर्ड पर 109 रन टांग दिए। अपना 23वां वसंत पूरा करने से पहले आठ एकदिवसीय शतक जड़ने के मामले में वह सचिन के साथ दूसरे बल्लेबाज बन गए हैं। जहां तक क्षेत्ररक्षण की बात है तो इसी मैच में क्षेत्ररक्षकों ने सात कैच टपकाए। कुल मिलाकर धोनी की क्षेत्ररक्षण और मध्यम तेज गेंदबाजों की रणनीति पूरी तरह नाकाम रही और अब हर कोई मानने लगा है कि धोनी की जादुई कप्तानी बेअसर हो चुकी है। लेकिन हार की वजह के बारे में धोनी ने जो कहा, उसे टीम प्रबंधन तरजीह नहीं दे रहा है। उनका कहना था कि लगातार अच्छे प्रदर्शन के लिए स्थिर और संतुलित टीम का होना जरूरी है। हमारे पास सीम गेंदबाजी ऑलराउंडर का अभाव है। स्टुअर्ट बिन्नी को भी आजमाया तो लोगों ने उसकी भी आलोचना की। दिल्ली ब्रिगेड शिखर धवन और विराट कोहली पूरी तरह फ्लॉप रहा। शिखर ने पूरी शृंखला में सिर्फ एक अर्धशतक बनाया तो कोहली ने सिर्फ एक शतक। दोनों की उपस्थिति टीम की जीत की गारंटी देती कभी नहीं दिखी। इशारों-इशारों में भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) के सचिव अनुराग ठाकुर भी कह चुके हैं, 'खिलाड़ियोंे को आपस में उलझने से बचना चाहिए। क्रिकेटरों को लेकर सभी सुधारवादी कदम उठाए जाएंगे।’ हालांकि, अनुराग ठाकुर का श्रीनिवासन से छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है, ऐसे में उनके चहेते धोनी को वह कितनी तवज्जो देते हैं, यह देखने वाली बात होगी। बहरहाल, कयासबाजी है कि धोनी को कप्तानी से बेदखल करने के लिए ऐसी साजिश चल रही है।
हालांकि सन 2012 में भी गुटबाजी और मनोबल में कमी के कारण चयन समिति ने धोनी की जगह विराट कोहली को कप्तानी सौंपने का मन बना लिया था लेकिन बीसीसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन ने यह कहकर इस योजना को खारिज कर दिया कि टीम की घोषणा पहले ही हो चुकी है। वैसे भी उस वक्त कोहली मात्र 23 साल के थे। इस योजना का खुलासा पूर्व राष्ट्रीय चयनकर्ता राजा वेंकट ने किया था और उन्होंने बताया कि उस समय भी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर लगातार खराब नतीजे के कारण कोहली को कप्तान बनाने का विचार किया गया था। जिस समय धोनी को कप्तानी सौंपी गई थी, टीम में उनके सबसे बड़े प्रशंसक और करीबी विराट कोहली ही थे। हालांकि उस वञ्चत भी ड्रेसिंग रूम में सीनियर खिलाड़ियोंे की अलग खेमाबंदी जारी थी। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। कोहली न सिर्फ उनके प्रबल विरोधी बन गए हैं बल्कि टीम प्रबंधन का भी खुलकर समर्थन कर रहे हैं। वैसे तो बांग्लादेश जैसी टीम से शृंखला हार जाने के बाद ही इस गुटबाजी की धुंधली तस्वीर कुछ-कुछ स्पष्ट होने लगी थी लेकिन जिंबाम्बे दौरे में जब अजिंक्य रहाणे को टीम की कमान सौंपी गई तो साफ हो गया कि टीम की एकजुटता बुरे दौर से गुजर रही है। इसी बीच धोनी के इस बयान से आश्चर्य कम, बदलाव की बू ज्यादा नजर आई कि यदि टीम का प्रदर्शन उनके बाहर होने से ठीक हो जाता है तो वह कप्तानी छोड़नेे को तैयार हैं। अब तो कोहली भी धोनी के फैसलों और रणनीतियों की खुलकर आलोचना करने लगे हैं। कहा जाता है कि धोनी ने ही सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण को टीम से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई थी। चर्चा है कि अब इसी तर्ज पर कोहली भी चल पड़े हैं। इसमें उन्हें रवि शास्त्री का भरपूर सहयोग मिल रहा है क्योंकि धोनी को चाहने वाले एन. श्रीनिवासन का दबदबा खत्म हो चुका है। एक चर्चा यह भी है कि मुंबई और दिल्ली लॉबी मिलकर छोटे शहरों के खिलाडिय़ों को टीम से बाहर करने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।