न्यायमूर्ति काटजू ने लोढ़ा समिति की सिफारिशों को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने न्यायमूर्ति लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर परामर्श के लिए काटजू को नियुक्त किया है। काटजू ने बोर्ड को सलाह दी है कि वे उच्चतम न्यायालय की बड़ी पीठ के समक्ष समीक्षा याचिका दायर करें और नौ अगस्त को समिति के साथ पूर्व निर्धारित बैठक नहीं करें। उन्होंने समिति को अमान्य करार देते हुए रविवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, उच्चतम न्यायालय ने जो किया है वह असंवैधानिक और गैरकानूनी है। इसमें संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। संविधान के अंतर्गत हमारे पास विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं। इनके कार्यों को अलग-अलग रखा गया है। कानून बनाना विधायिका का विशेषाधिकार है। अगर न्यायपालिका कानून बनाने लगेगी तो यह खतरनाक मिसाल स्थापित करना होगा। उन्होंने अपने नजरिये को विस्तार से बताते हुए कहा, उच्चतम न्यायालय ने बीसीसीआई की कार्यप्रणाली में खामियां ढूंढने के लिए लोढ़ा समिति को नियुक्त किया, यह ठीक था। जब लोढ़ा समिति की रिपोर्ट उच्चतम न्यायालय को सौंपी गई तो इसे संसद और राज्य विधायिका के पास भेजा जाना चाहिए था। इसे विधायिका पर छोड़ा जाना चाहिए था कि वे इन सिफारिशों को स्वीकार करें या नहीं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को कानून नहीं बनाना चाहिए।
पूर्व न्यायाधीश काटजू ने उन मामलों का उदाहरण दिया जब गंभीर मुद्दे चार या पांच न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास गए हैं। न्यायमूर्ति काटजू का तर्क है कि बीसीसीआई का संविधान तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत तैयार किया गया है और उच्चतम न्यायालय तथा लोढ़ा समिति बीसीसीआई के उप नियमों में बदलाव के लिए बाध्य नहीं कर सकते। काटजू ने कहा, उच्चतम न्यायालय और लोढ़ा समित दोनों ने तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट का उल्लंघन किया है। उनके अपने मेमोरेंडम और उप नियम हैं। अगर आपको संविधान में बदलाव करना है तो दो तिहाई बहुमत से विशेष प्रस्ताव पारित किए जाने की जरूरत है। सोसाइटी स्वयं उप नियमों में बदलाव नहीं कर सकती। उन्होंने कहा, वित्तीय अनियमित्ताओं या प्रशासनिक कमियों की शिकायत हो सकती हैं, इस बारे में रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज को लिखा जाना चाहिए।
हालांकि न्यायामूर्ति काटजू इस बात से सहमत हैं कि बीसीसीआई में सुधार की जरूरत है लेकिन इसके खिलाफ उनके पास दलील भी है। उन्होंने कहा, अगर हम बीसीसीआई में सुधार की बात करते हैं तो न्यायपालिका में भी सुधार की जरूरत है। भारतीय अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं। अगर यह खतरनाक प्रकिया शुरू हुई तो उच्चतम न्यायालय प्रेस की संपादकीय नीतियों, पत्रकारों के कार्यकाल पर भी फैसला करने लग सकता है। यह भानुमति के पिटारे को खोल देगा। हालांकि काटजू के बयान पर बीसीसीआई सचिव अजय शिर्के ने कहा कि बोर्ड न्यायमूर्ति काटजू द्वारा तैयार अंतरिम रिपोर्ट का पहले अध्ययन करेगा और फिर फैसला करेगा।