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03 October 2024

खेल: क्रिकेट में नई चुनौती, देश चुनें या पैसा!

क्रिकेट का रंग-रूप तेजी से बदला है। यह तेज और मनोरंजक होता गया है। दुनिया भर में फ्रेंचाइजी लीग का चलन फायदे और नुकसान लेकर आता है। पैसा इसका केंद्र है। टी20 प्रारूप की अपार सफलता ने इस प्रारूप को खेल के साथ खिलाड़ियों और इससे जुड़े लोगों को कमाने का नया जरिया दे दिया है। कुछ क्रिकेटर देश के बजाय फ्रेंचाइजी के लिए खेलना पसंद कर रहे हैं। सवाल उठता है, क्या जरूरी है फ्रेंचाइजी क्रिकेट या देश का प्रतिनिधित्व? क्रिकेट में इस तरह के बदलाव का पहला संकेत दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी क्विंटन डी कॉक लाए। 29 साल की उम्र में उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास ले लिया ताकि वे सफेद गेंद के प्रारूप पर ध्यान केंद्रित कर सकें। ट्रेंट बोल्ट ने दुनिया भर की फ्रेंचाइजी लीग में खेलने के लिए न्यूजीलैंड अनुबंधों से बाहर निकलने का विकल्प चुना। केन विलियमसन ने न्यूजीलैंड के केंद्रीय अनुबंध को अस्वीकार कर कप्तान पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि, ये दोनों अभी भी प्रमुख आयोजनों के दौरान चयन के लिए उपलब्ध रहेंगे। कई और बड़े खिलाड़ी भी यही तरीका अपना रहे हैं। एक या दो सदी पहले, समयबद्ध टेस्ट मैच को निंदनीय माना जाता था, पूर्ण टी20 क्रिकेट की तो बात ही छोड़िए। लेकिन आईपीएल, विटैलिटी ब्लास्ट, सीपीएल टी-20 और बिग बैश लीग आने तक, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में काफी रुचि थी।

2000 के दशक की शुरुआत में, खेल अलग था। पैसों की बात करें तो, क्रिकेटर कई घंटों तक लगातार खेलने के बाद भी आर्थिक मजबूती से दूर थे। 2003 में, टी20 का पहला निर्धारित प्रारूप इंग्लिश काउंटी टीमों के बीच खेला गया था, जब उनके पास पूरे 50 ओवर खेलने के लिए पर्याप्त समय नहीं था। ठीक 2 साल बाद, टी20 पहली बार ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेला गया। हालांकि, उस समय किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन धीरे-धीरे इस प्रारूप की बढ़ती लोकप्रियता के साथ, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) ने अंततः एक वैश्विक टूर्नामेंट कराने का फैसला किया और इस प्रकार 2007 टी20 विश्व कप का आयोजन हुआ। इस टूर्नामेंट में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ रोमांचक फाइनल मुकाबला जीतकर पहली बार टी20 विश्व कप ट्रॉफी अपने नाम की।

इस अविश्वसनीय जीत के बाद, ललित मोदी ने भारतीय शहरों के नाम वाली टीमों के साथ एक फ्रैंचाइजी-आधारित टी20 टूर्नामेंट की घोषणा की, जहां दुनिया भर के सभी सितारे खेल सकते थे। इसने बीसीसीआइ को भी मुनाफा कमा के दिया। टी20 मॉडल में प्रायोजन, टिकट बिक्री, प्रसारण अधिकार और व्यापारिक बिक्री का आधा हिस्सा सीधे बीसीसीआई को जाता, जबकि बाकी को सभी खेलने वाली टीमों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना था। पैसा इसे दुनिया की सबसे मूल्यवान खेल लीगों में से एक बनाता है। बीसीसीआइ के साल दर साल सबसे शक्तिशाली होने का श्रेय भी आईपीएल को जाता है। आइपीएल से ही उन्हें अन्य क्रिकेट बोर्डों को आगे बढ़ाने में मदद मिली है।

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आइपीएल की सफलता के बाद, अन्य देशों को एहसास हुआ कि वे भी इस मॉडल को दोहरा सकते हैं। बाद ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश लीग (बीबीएल), वेस्टइंडीज की कैरेबियन प्रीमियर लीग (सीपीएल), पाकिस्तान की पाकिस्तान सुपर लीग (पीएसएल), इंग्लैंड की विटैलिटी ब्लास्ट और अमेरिका की एमएलसी रोशनी में आईं। अधिकांश क्रिकेट खेलने वाले देशों ने अपना स्वयं का संस्करण बनाया है, जिनमें से सबसे हालिया दक्षिण अफ्रीका (एसए20) और संयुक्त अरब अमीरात (आइएलटी20) हैं। बीबीएल (दिसंबर), एसए20 और आइएलटी20 (जनवरी), पीएसएल (फरवरी), आइपीएल (अप्रैल-मई), ब्लास्ट (जुलाई), सीपीएल और हंड्रेड (अगस्त) में होते हैं। इसका मतलब है कि साल के कम से कम 7 महीने क्रिकेटरों के खेलने के लिए विभिन्न टी20 लीगों से भरे होते हैं।

आज आइपीएल फ्रेंचाइजी इतनी सशक्त हैं कि उन्होंने अन्य टी20 लीगों में टीमें खरीद लीं। दो प्रमुख उदाहरण हैं मुंबई इंडियंस; आईएलटी20 में एमआइ एमिरेट्स, एसए20 में केप टाउन और एमएलसी में न्यूयॉर्क। वहीं, कोलकाता नाइट राइडर्स ने आइएलटी20 में अबू धाबी नाइट राइडर्स, सीपीएल में ट्रिनबागो नाइट राइडर्स और एमएलसी में लॉस एंजिल्स नाइट राइडर्स टीमें खरीदीं। अब फ्रेंचाइजी ने साल भर के अनुबंध की पेशकश शुरू कर दी है, जिसने राष्ट्रीय टीम को लीग से यह पूछने के लिए मजबूर किया है कि क्या उनके देश का खिलाड़ी उनके लिए खेलने के लिए स्वतंत्र है। भले ही जोफ्रा आर्चर और पैट कमिंस जैसे कुछ खिलाड़ी इन अनुबंधों के खिलाफ खड़े रहे हों, लेकिन लीग क्रिकेट का प्रलोभन कुछ लोगों के लिए बहुत ज्यादा हो सकता है। पिछले दो साल में ही, सुनील नरेन, आंद्रे रसेल, कीरोन पोलार्ड, एलेक्स हेल्स और ड्वेन प्रीटोरियस जैसे कई खिलाड़ियों ने लीग में खेलने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर से जल्दी संन्यास ले लिया है। वहीं, ट्रेंट बोल्ट जैसे अन्य खिलाड़ियों ने अपने बोर्ड के साथ अपने केंद्रीय अनुबंध को रद्द करने का अधिक सूक्ष्म तरीका अपनाया है।

ऐसे में फ्रेंचाइजी बनाम देश में चयन, अलग अलग खिलाड़ियों की इच्छा पर निर्भर करता है। वास्तव में, लीग क्रिकेट का पैसा और सुविधा कई खिलाड़ियों के लिए अपने देश के लिए खेलने से बेहतर है। दोनों के अपने-अपने पक्ष और विपक्ष हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति किस पक्ष के साथ खड़ा है। फ्रेंचाइज क्रिकेट उन्माद की शुरुआत 2008 में इंडियन प्रीमियर लीग (आइपीएल) से हुई थी और तब से यह और भी बड़ा और बेहतर होता गया है। क्रिकेट का यह सबसे भव्य त्योहार है यह सबसे बड़ी खेल संस्थाओं में से एक बन गया है, जो अब दुनिया की सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली लीगों में से एक होने के मामले में सिर्फ एनबीए से पीछे है।

देखा जाए तो फ्रेंचाइजी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सह-अस्तित्व आवश्यक है। इससे खेल में रुचि भी बनी रहती है और पैसे कमाने के साधन भी। यह खिलाड़ियों के लिए भी सही है और दर्शकों के लिए भी। हालांकि, चिंता भारत के पक्ष पर ज्यादा नहीं हैं। पहला इसलिए क्योंकि हमारे देश के खिलाड़ी अन्य लीगों में खेल नहीं सकते। दूसरा उन्हें पैसों के लिहाज से वहां खेलने की जरूरत नहीं है। बीसीसीआइ आने वाले समय में ऐसे खिलाड़ियों को अनुमति देने के बारे में अवश्य विचार कर सकती है, जिन्हें भारतीय टीम और घरेलू क्रिकेट में पर्याप्त मौके नहीं मिल पा रहे।

फ्रेंचाइजी लीग का चलन बढ़ने के साथ सवाल यह है कि कहीं क्रिकेट फुटबॉल की तरह न बन जाए। दरअसल, क्रिकेट में फुटबॉल की तरह फ्रैंचाइज आधारित प्रणाली लागू करने के लिए, इसके सभी प्रारूपों की बलि देनी होगी। फुटबॉल के विपरीत, जहां सभी देश एक एकीकृत खेल नियम का पालन करते हैं, क्रिकेट में पहले से ही चार से ज्यादा प्रारूप हैं, जिनमें से तीन को आईसीसी द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त है। और, तीनों प्रारूपों में से प्रत्येक के लिए, पहले से ही एक प्रतियोगिता जुड़ी हुई है- विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप, वनडे विश्व कप और टी 20 विश्व कप। यह क्रिकेट के लिए सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। हालांकि, क्रिकेट अभी भी केवल सबसे छोटे प्रारूप के लिए ऐसा कैलेंडर लागू कर सकता है, जो कैलेंडर से द्विपक्षीय मैचों को पूरी तरह से हटा देगा और इसकी जगह घरेलू टी20 प्रतियोगिताएं ले लेगा। अगर लीग एक साथ नहीं चलती हैं, तो यह विभिन्न लीगों में खिलाड़ियों का अच्छा प्रतिनिधित्व भी हो सकता है। जैसी स्थिति है, क्रिकेट अभी भी अंतरराष्ट्रीय और फ्रेंचाइजी शैली की लीगों के बीच फंसा हुआ है। एक तबका मानता है कि क्रिकेट जैसा है, ठीक है। एक तबका मानता है कि भविष्य में निश्चित रूप से क्रिकेट भी फुटबॉल की तरह लीग शैली का खेल बन जाएगा।

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TAGS: Sports, cricket, new challenge, international cricket, franchise cricket
OUTLOOK 03 October, 2024
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