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29 January 2015

यह राह नहीं है आसान

 

 

 

ऑस्ट्रेलिया की उछाल वाली पिचों पर भारतीय खिलाड़ियों के पस्त होते हौसलों को देखकर एक बात तो आसानी से कही जा सकती है कि विश्व कप-2015 में भारत की राह आसान नहीं है। ऑस्ट्रेलिया की उछाल वाली पिचों व न्यूजीलैंड में स्विंग और सीम को मदद देने वाली परिस्थितियों से निपटने के लिए भारत की समुचित तैयारी नहीं दिखाई देती। भारत सन 2011 का विश्व कप विजेता है और हर भावुक भारतीय क्रिकेट प्रेमी चाहता है कि यह बादशाहत कायम रहे। पर यह सब हो कैसे ? टीम में अब तक 11 खिलाड़ियों का ऐसा विजेता दल बन नहीं पाया है, जो हमें यह विश्वास दे कि यह टीम विश्व कप-2015 का खिताब जीत सकेगी।

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पहले तो भारत को अपने ‘पूल’ की टीमों से पार पाना भी मुश्किल लग रहा है। भारत को दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, पाकिस्तान, वेस्ट इंडीज, आयरलैंड व यू.ए.ई. के साथ रखा गया है। इनमें से पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका व वेस्ट इंडीज में से प्रत्येक टीम भारत को हरा सकती है। दक्षिण अफ्रीका की टीम तो खिताब की प्रबल दावेदार नजर आ रही है। डेल स्टेन, मोर्नी मौर्केल, एबॉट, पारनेल व फिलेंडर की तेज रफ्तार की गेंदबाजी का तूफान ऐसा है, जो दुनिया की किसी भी टीम का सफाया कर सकता है। फिर उनकी बल्लेबाजी ऐसी शक्तिशाली और आक्रामक है कि गेंदबाजों को उनके खिलाफ गेंदबाजी करने में ही डर महसूस होता है। हाल ही में वेस्ट इंडीज के खिलाफ केवल 31 गेंदों में शतक बनाकर विश्व कीर्तिमान बनाने वाल डी विलियर्स ने तो क्रिकेट जगत का भौंचक्का कर रखा है। हाशिम अमला एक सिरा बरकरार रखते हैं तो डी कॉक, डयू प्लेसी, डी विलियर्स एवं डेविड मिलर जैसे बल्लेबाज ताबड़तोड़ रन बनाकर अपने गेंदबाजों के लिए जीत की एक बढ़िया जमीन तैयार कर देते हैं।

यह आश्चर्य की बात है कि दक्षिण अफ्रीका आज तक एक भी विश्व कप नहीं जीत पाया है। इसलिए उन्हें बोकर्स कहा जाता है क्योंकि नाजुक मौकों पर यह टीम आशा के विपरीत अचानक धराशायी हो जाती है। पर इस बार दक्षिण अफ्रीका की टीम प्रबल दावेदार नजर आ रही है। भारत को दक्षिण अफ्रीका के तेज आक्रमण से बचना होगा। भारतीय बल्लेबाजों में से सिर्फ विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे के खेल में इनसे निपटने की कूवत है। पर बाकी बल्लेबाजों को इस्पाती इरादे दिखाने होंगे। रोहित शर्मा के घायल होने से भारत को बड़ा झटका लगा है। यहां से उबर कर कड़ी स्पर्धा वाले अंतरराष्ट्रीय जुनून के साथ असरकारक होना मुश्किल होगा। रवींद्र जडेजा कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी के कारण घायल होने के बावजूद युवराज की जगह टीम में शामिल किए गए हैं पर त्रिकोणीय शृंखला के अधिकांश मैचों में बाहर ही बैठे रहे। घायल योद्धा को निर्णायक युद्ध में ले जाने से फायदा क्या है? अश्विन तो जैसे भारत में ही विकेट चटकाने के लिए ही बने हैं। विदेशों में जाकर उन्हें जैसे सांप सूंघ जाता है। जब से संदेहास्पद एक्‍शन के लिए स्पिनरों को दंडित किया जाना शुरू हुआ है, अश्विन ने तो अपनी प्रसिद्ध कैरम बॉल या नकल बॉल करना ही बंद कर दिया है। पाकिस्तान के सईद अजमल, हाफिज और भारत के प्रज्ञान ओझा के दंडित होने के बाद अन्य देशों में दूसरा करने वाले गेंदबाज घबरा गए हैं। भारत के पूर्व कप्तान और प्रसिद्ध स्पिनर बिशन सिंह बेदी तो साफ कहते हैं कि जिस तरह दूसरी औरत अवैध होती है, उसी तरह हर दूसरा करने वालों की बाजू निर्धारित कोण से ज्यादा मुड़ती है और वह अवैध है।

 

विश्व कप 2015 में तेज गेंदबाजों का बड़ा बोलबाला रहने वाला है। ऑस्ट्रेलिया  में पिचों पर अगर उछाल है, तो न्यूजीलैंड में स्विंगव सीम को मदद है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के पास आला दर्जे के तेज गेंदबाजों का खजाना है। ऑस्ट्रेलिया के तेज आक्रामण को आज विश्व में सर्वश्रेष्ठ कहा जा रहा है। मिशेल जॉनसन अपनी रफ्तार और अलग तरह के एक्‍शन के कारण आज सबसे खौफनाक गेंदबाज बन गए हैं। प्रति घंटे 150 किलोमीटर की गति निरंतर प्राप्त करते रहने की काबिलियत के कारण वह बल्लेबाजों के लिए एक दुःस्वप्न बन गए हैं। मिशेल स्टॉर्क के साथ उनकी जोड़ी भारतीय बल्लेबाजों को बहुत तंग करती है। वैसे भी तेज गेंदबाज जोड़ियों में ज्यादा खूंखार बन जाते हैं। दबाव दोनों ओर से पड़ना चाहिए, तभी विकेट प्राप्त होते हैं।

भारत की दिक्कत शुरुआत में ही दिखाई देने लगती है। शिखर धवन का स्तर शिखर पर दिखने के बजाय सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है और यह भारत के लिए दबावकारी स्थिति है। विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे की तकनीकी कुशलता पर ही भारतीय बल्लेबाज का दारोमदार रह गया है। बाकी के बल्लेबाज पतझड़ में पत्तों की तरह टूट जाते हैं। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम को गए तीन माह हो गए हैं पर हर मैच के साथ भारत का आत्मविश्वास घटता ही जा रहा है। जिस तरह जीत की आदत पड़ना एक शुभ लक्षण है, उसी तरह पराजय की आदत भी एक अभिशाप की तरह है। भारत को इस अभिशाप से जल्दी ही छुटकारा पाना होगा। जहां तेज गेंदबाजों पर जीत-हार अवलंबित हो, वहां आपके धुंरधर तेज गेंदबाज निस्तेज दिखाई दें, तो आसार कुछ अच्छे मालूम नहीं पड़ते। ईशांत शर्मा हैं तो अनुभवी, पर घायल पड़े हैं। भारत को 2015 में जोरदार प्रदर्शन करना है तो उनका सौ फीसदी फिट रहना जरूरी है। भुवनेश्वर कुमार घायल होने के बाद वापसी कर पाए हैं, पर उनकी गेंदों में न रफ्तार है और न ही पहले जैसी स्विंग। उमेश यादव टेस्ट मैंचों के समाप्त होते-होते तो लड़खड़ाने लगे थे। लगता है, वह भी सौ ‌फीसद फिट नहीं हैं। ऐसे राणा सांगाओं की जमात के साथ आप विश्व कप  का युद्ध कैसे जीतेंगे ? स्टुअर्ट बिन्नी एक मामूली ऑलराउंडर हैं, जो आपके लिए उपयोगी भले ही हों, पर जीत नहीं दिला सकते।

भारत को तो वेस्ट इंडीज से भी बच कर चलना होगा। क्रिस गेल, मारलन सैम्युअल, ब्रेथवैट, ड्वेन स्मिथ डैरेन सैमी जैसे बल्लेबाज पलक झपकते लक्ष्य की दूरी तय कर लेते हैं। हाल ही में वेस्ट इंडीज ने एक मैच में दक्षिण अफ्रीका जैसी सशक्त टीम को हराया है, उनका आत्मविश्वास बढ़ा-चढ़ा दिखाई देता है। पाकिस्तान की क्रिकेट शक्ति को भी कम नहीं आंकना चाहिए। उनकी टीम में तेज और स्पिन का एक अच्छा संतुलन है। हाफिज, मिसबाह और शाहिद अफरीदी भारत के खिलाफ अक्सर रनों की अच्छी फसल काटते रहे हैं। वैसे दोनों पूलों की स्थिति देखी जाए तो भारत अपेक्षाकृत सरल मुकाबले वाले पूल में है। पूल ए में न्यूजीलैंड, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैड और बांग्लादेश जैसी ऊंची टीमें हैं। वहां मुकाबल ज्यादा कड़ा है। इंग्लैंड के पास बहुत ही आला दर्जे के जेम्स एंडरसन, अचानक अपना फॉर्म पाए स्टीवन फिन और स्टुअर्ट ब्रॉड जैसे तेज गेंदबाज हैं। उनकी बल्लेबाजी भी सशक्त है। इयान बेल ने तो अभी से सभी टीमों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। फिर भी आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड की टीमें विश्व कप, 2015 के लिए प्रमुख दावेदार हैं। इंग्लैंड और भारत के लिए अवसर अवश्य हैं, पर उन्हें खिताब के लिए अपने स्तर से ऊपर उठकर खेलना होगा। ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड की टीमों ने एक विनिंग कांबिनेशन (यानी जीत सकने वाली टीम) तैयार कर लिया है। भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान और इंग्लैंड अभी इस मामले में संघर्ष कर रहे हैं। आस्ट्रेलिया के वार्नर की वार्निंग अभी से हावी हो गई लगती है।

 

पर भारत के लिए अच्छी बात यह है कि अपेक्षाओं का भार उन पर नहीं है। वर्तमान ताकत को देखते हुए कोई भी अपेक्षा नहीं कर रहा है कि भारत यह टूर्नामेंट जीत सकता है। सन 1983 में भी ऐसा ही हुआ था किसी ने भारत की खिताबी जीत की कल्पना नहीं की थी। भारत अप्रत्याशित परिणाम देने में कोई हिचक नहीं करेगा। महेंद्र सिंह धोनी के नेतृत्व में अगर भारत दूसरी बार 50-50 ओवर की विश्व कप स्पर्धा जीतता है, तो इतिहास में उनका नाम अमर हो जाएगा।

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OUTLOOK 29 January, 2015
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