पाकिस्तान से जान बचाकर भारत आए थे मिल्खा, एक रुपये में बॉयोपिक बनाने की दी थी इजाजत, एशियाई खेलों में लहराया था परचम
उड़न सिख के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह का निधन हो गया। वे 19 मई को कोरोना संक्रमित हुए थे। उसके बाद उन्हें मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। हालत में सुधार होने के बाद परिजनों के आग्रह पर उन्हें घर पर शिफ्ट कर दिया गया था। इससे पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया था। मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर, 1929 के दिन पाकिस्तान के गोविंदपुरा गांव में हुआ था। उनके कुल 12 भाई-बहन थे, लेकिन उनका परिवार भारत-पाक विभाजन की त्रासदी का शिकार हुआ, उस दौरान उनके माता-पिता के साथ आठ भाई-बहन भी मारे गए। परिवार में मिल्खा सहित के केवल चार लोग ही जिंदा बचे थे । इस त्रासदी के बाद मिल्खा अपनी बहन के साथ भारत आ आए और बाद में भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
एशियाई खेलों में मनवाया लोहा
एशियाई खेलों में उन्होंने 4 बार स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता था। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हालांकि 1960 के रोम ओलंपिक में था जिसमें वह 400 मीटर फाइनल में चौथे स्थान पर रहे थे। वह 0.1 सेकंड के अंतर से कांस्य पदक से चूक गए थे। उस दौड़ में पहले चार स्थान पर रहने वाले धावकों ने विश्व रिकॉर्ड तोड़ा था। यानी मिल्खा विश्व रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद ओलंपिक पदक से वंचित रह गए थे। उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। वह पाकिस्तान में भी काफी लोकप्रिय थे और वहीं से उन्हें उड़न सिख की उपाधि मिली थी। 1958 में टोक्यो में आयोजित एशियाई खेलों में 200 मीटर, 400 मीटर की स्पर्धाओं और राष्ट्रमंडल में 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीते। उनकी सफलता को देखते हुए, भारत सरकार ने 1959 में पद्मश्री से सम्मानित किया। अपने जीवन में उन्होंने कुल 81 में से 77 रेस जीती थी।
एक रुपये में दी थी बॉयोपिक बनाने की इजाजत
मिल्खा सिंह के उपर बनी फिल्म बनी फिल्म भाग मिल्खा भाग को बनाने के लिए मिल्खा सिंह ने केवल एक रुपये लिए थे। उस बॉयोपिक ने उन्हें घर-घर दोबारा प्रसिद्ध कर दिया। इस फिल्म में फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह का किरदान निभाया था। वह अपनी बेबाकी के लिए भी जाने जाते थे। एक बार उन्होंने कह दिया था कि भारत में खेलों की हालत देखते हुए मैं अपने बेटे को खेल में नहीं भेजना चाहता हूं।