लैंगिक असमानता के विरुद्ध दीपिका का जोरदार 'शॉट'
भारत की नंबर एक और विश्व की 18वीं रैकिंग की स्क्वॉश खिलाड़ी दीपिका पल्लीकल इस बार भी राष्ट्रीय स्क्वॉश चैंपियनशिप नहीं खेल रही हैं। दीपिका खेल जगत में महिलाओं की बराबरी का मुद्दा उठा रही हैं। एक ही खेल में पुरुष को मिलने वाली इनाम राशि महिलाओं से ज्यादा क्यों है। लगातार चौथी बार दीपिका ने नेशनल स्क्वॉशचैंपियनशिप में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया है। इससे पहले 2011 में दीपिका पल्लीकल ने चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था और पहले स्थान पर रही थीं। पल्लीकल ने ये साफ कह दिया है कि जब तक महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर इनाम राशि नहीं दी जाती वो नेशनल चैंपियनशिप नहीं खेलेंगी। हालांकि कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि एक खिलाड़ी को अपने देश के लिए खेलना चाहिए, खिलाड़ी के जज़्बे के लिए खेलना चाहिए, न कि पैसों के लिए।
दीपिका को समर्थन देनेवाले लोग भी हैं। भारतीय स्क्वॉश खिलाड़ियों में दीपिका की सबसे ऊंची रैंकिंग है, पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में भी। वो लगातार शीर्ष खिलाड़ियों में बनी हुई हैं। दीपिका पल्लीकल स्क्वॉश में विश्व की शीर्ष दस खिलाड़ियों में शामिल होने वाली पहली भारतीय महिला हैं। इस समय विश्व रैंकिंग में वह 18वें नंबर हैं।
इक्वल पे फॉर इक्वेलिटी
समानता के लिए एक समान इनाम राशि। ऐसा पहली बार है जब नेशनल स्क्वॉश चैंपियनशिप दीपिका के गृह राज्य केरल में आयोजित हो रही है। राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका छोड़ते हुए 23 साल की यह खिलाड़ी साफ कहती है कि एक बार फिर मैं उन्हीं वजहों से नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले रही हूं। मुझे लगता है कि खेलों में हम भी उसी इनाम राशि की हकदार हैं जो ज्यादातर टूर्नामेंट में हमारे पुरुष साथियों को मिलती है। खेल में महिला और पुरुष के बीच भेदभाव क्यों। एक महिला खिलाड़ी को पुरुष खिलाड़ी की तुलना में कम पैसे क्यों दिए जाते हैं। अगर एक महिला खिलाड़ी जीतती है तो वो भी देश का सम्मान है, जैसे कि पुरुषों के खेल में।
महिला विजेता को मिलने वाली राशि कम क्यों ?
स्क्वॉश में पुरुषों की प्रतिस्पर्धा में विजेता के लिए इनाम राशि 1,20,000 रुपये है जबकि महिला विजेता के लिए ये इनाम राशि इसकी आधी से भी कम 50,000 रुपये है। भारतीय खेलों में लिंग के आधार पर इनाम राशि में भेदभाव बहुत पहले से बरता जा रहा है। विश्व की शीर्ष दस स्क्वॉशखिलाड़ियों में जगह बना चुकी दीपिका कॉमन वेल्थ खेल चुकी हैं और कई अन्य खिताब अपने नाम कर चुकी हैं।
खेल की दुनिया में दीपिका पल्लीकल से पहले भी महिला खिलाड़ियों के साथ गैर-बराबरी का मुद्दा उठ चुका है। बिली जीन किंग ने 30 साल पहले यह मुद्दा उठाया था। हालांकि पल्लीकल और जीन किंग दो अलग-अलग खेलों से जुड़े हैं लेकिन उनका लक्ष्य एक ही है।
दूसरे खेलों में भी महिलाओं की उपेक्षा
सिर्फ स्क्वॉश ही नहीं दूसरे तमाम खेलों में महिलाओं को मिलने वाली इनाम राशि पुरुषों की तुलना में बेहद कम है। टेनिस में सानिया मिर्जा, बैडमिंटन में साइना नेहवाल ने अपने दम पर अपनी पहचान बनायी है। वरना महिलाओं के खेलों की उपेक्षा आम बात है। पुरुषों का क्रिकेट और महिलाओं का क्रिकेट तो दो बिलकुल जुदा छोर हैं। हॉकी और फुटबॉल का भी कमोवेश ऐसा ही हाल है। खेल जगत में दीपिका ने जो लड़ाई शुरू की है वह आसान तो कतई नहीं। लेकिन उनके इरादे मजबूत और हौंसले बुलंद हैं। हालांकि, इस लड़ाई में वह अकेली पड़ती दिखाई दे रही हैं। शायद यह सही समय है जब बाकी की दिग्गज महिला खिलाड़ी भी पल्लीकल के साथ मिलकर यह जंग लड़ें और इस मुद्दे को आगे ले जाएं। क्योंकि हमारी उपेक्षा ही महिलाओं की बराबरी के इस मुद्दे को पीछे धकेल देती है।