सुशील कुमार पर अदालत ने कहा, ट्रायल कराना अनिवार्य नहीं
न्यायमूर्ति मनमोहन ने दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के वकील से कहा, समस्या यह है कि खेल संहिता में कहीं भी नहीं लिखा गया है कि ट्रायल अनिवार्य हैं। चयन फैसला करने के लिए संगठन को स्वायत्ता दी गई है। मुझे ऐसा कोई संवैधानिक आदेश नहीं मिला जिसे आप इसमें पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
सुशील ने रियो ओलंपिक में 74 किलोग्राम भार वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करने का फैसला करने के लिए चयन ट्रायल कराने का डब्ल्यूएफआई को निर्देश देने को लेकर यह याचिका दायर की है।
डब्ल्यूएफआई ने अदालत को बताया कि उसने तीन मई को ही नरसिंह पंचम यादव का नाम यूनाईटेड वल्र्ड रेसलिंग को भेज दिया है जो ओलंपिक में इस खेल की व्यवस्था देखेगा।
सुशील के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट अमित सिब्बल ने इस पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, नाम भेजने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखायी गई जबकि अंतिम समयसीमा 18 जुलाई है। उन्होंने कहा कि इससे सुशील की याचिका बेमानी हो गई है। अदालत ने हालांकि कहा कि उसने इस मामले में लंबी बहस सुनी है और वह फैसला देगी। उसने खिलाड़ी की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा।
अदालत ने इसके साथ ही कहा कि पहलवानों का समुदाय छोटा है जो चयन को लेकर पूर्व में और निरंतर अपनाई जा रही व्यवस्था से अच्छी तरह अवगत है।
सिब्बल ने अदालत के नजरिए पर असहमति जताई और कहा कि डब्ल्यूएफआई राष्ट्रमंडल खेलों के लिए हर बार ट्रायल करवाता है लेकिन 2014 में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने इसके साथ कहा कि चयन के लिए साल दर साल असंगत नीति अपनाई गई है।
केंद्र के इस रवैये पर कि उसकी कोई भूमिका नहीं है, सिब्बल ने कहा कि खेल संहिता के तहत यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि महासंघ द्वारा अपनाई जा रही चयन नीति निष्पक्ष और पारदर्शी हो और वह अपने कर्तव्य से पल्ला नहीं झाड़ सकती।
अदालत ने इस बीच डब्ल्यूएफआई उपाध्यक्ष राज सिंह के झूठा हलफनामा पेश करने पर कड़ा रवैया अपनाया जिसमें बताया गया था कि पहले भी ऐसी स्थिति पैदा हुई थी और उस मामले में ट्रायल किया गया था। यह हलफनामा सुशील की याचिका के साथ दायर किया गया था।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने संकेत दिए हैं कि वह राज सिंह को नोटिस जारी करने के इच्छुक हैं कि उनके खिलाफ क्यों न झूठी गवाही देने के लिए कानूनी कार्रवाई की जाए। उन्होंने इसके साथ जोड़ा, उन्हें बच निकलने की छूट नहीं दी जा सकती है। न्यायाधीश ने इस पर भी हैरानी जताई कि याचिकाकर्ता को याचिका दायर करने से पहले ही हलफनामा कैसे मिल गया।
सिब्बल ने हालांकि कहा कि उन्होंने हलफनामा पर विश्वास नहीं किया और साथ ही जोड़ा कि यदि यह झूठा है तो फिर कार्रवाई की जानी चाहिए। बहस के दौरान सिब्बल ने लिखित नियमों और दिशा निर्देशों की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि सरकार भी यह जांच सकती है कि क्या नीति निष्पक्ष और पारदर्शी है लेकिन यह तभी संभव है जब ये लिखित में हो और वर्तमान मामले में चयन प्रक्रिया को लेकर कोई लिखित नियम या दिशा निर्देश नहीं हैं।