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08 May 2015

साई एथलीटों की हालत स्थिर, मेडिकल बोर्ड का गठन

आउटलुक

खेल मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने दिल्ली में एक कांफ्रेंस से इतर कहा, हमने मामले की जांच के लिये मेडिकल बोर्ड का गठन किया है। हमारी प्राथमिकता इन लड़कियों की जान बचाना है। इस दुखद घटना में युवा खिलाड़ी अपर्णा रामभद्रन की मौत हो गई थी जबकि बाकी तीन अस्पताल में हैं। चारों ने केरल में भारतीय खेल प्राधिकरण के एक सेंटर में सीनियरों द्वारा कथित प्रताड़ना के आरोप में जहरीला फल खाकर जान देने की कोशिश की थी। चारों अलपुझा में साइ के जल क्रीडा केंद्र में प्रशिक्षु थीं। घटना से स्तब्ध खेल मंत्रालय ने गुरुवार को मामले की जांच के आदेश देने के साथ साइ महानिदेशक इंजेती श्रीनिवास को केरल भेजा था।

अस्पताल में भर्ती तीनों खिलाड़ियों की हालत अब स्थिर बताई जा रह है। केरल के गृहमंत्री रमेश चेन्निथला ने अस्पताल जाकर उनकी हालत का जायजा लिया और निष्पक्ष जांच का वादा भी किया। अलपुझा मेडिकल कालेज अस्पताल के सुपरिटेंडेंट संतोष राघवन ने प्रेस ट्रस्ट को बताया कि तीनों लड़कियों की हालत गंभीर बनी हुई है लेकिन अब स्थिर है। उन्होंने जो जहर खाया है , उसका कोई विषनाशक नहीं है। राघवन ने कहा, हम उनके शरीर के मुख्य अंग दिल के उपचार में लगे हैं। दिल्ली स्थित एम्स के विशेषज्ञों से टेलिकांफ्रेंस भी की गई है।

इस घटना में अपनी जान गंवा चुकी अपर्णा इस सेंटर पर पिछले पांच साल से प्रशिक्षण ले रही थी। उसकी मां गीता ने कहा कि पारिवारिक परिस्थितियों के कारण प्रताड़ना के बावजूद वह होस्टल में रह रही थी। अपर्णा आठवीं कक्षा में पढ रहे अपने छोटे भाई की बेहतर जिंदगी के लिए नौकरी चाहती थी। उसके पिता एक हाउसबोट में काम करते हैं जबकि मां आंगनवाड़ी में कार्यरत है। परिवार में सभी की उम्मीदें नौकायन में चैम्पियन रही अपर्णा पर टिकी थी। उसने यह कड़ा कदम उठाने के लिए अपनी मां से माफी भी मांगी है।

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गीता ने कहा कि अपर्णा ने अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झुलते हुए उसे बताया था कि साइ होस्टल में सीनियरों द्वारा उसे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना दी जा रही थी। उसकी मां ने बताया कि मरने से पहले अपर्णा ने कहा था, मां मुझे माफ कर देना। मैं सीनियर चेच्चिस (बड़ी बहनों) द्वारा दी जा रही प्रताड़ना के कारण ऐसा कर रही हूं। क्या मैं नहीं बचूंगी। गीता ने कहा कि उसकी बेटी खुदकुशी नहीं करना चाहती थी लेकिन लगातार प्रताड़ना के बाद उसके पास कोई रास्ता नहीं रह गया था।

उसने कहा, मेरी बेटी 15 अप्रैल को विशु के त्यौहार पर घर आई थी और उसने मुझसे कहा था कि सीनियरों के साथ एक कमरे में रहना मुश्किल हो गया है। जब होस्टल वार्डन से उसने शिकायत की तो उन्होंने तीन महीने के भीतर उसका कमरा बदलने का वादा किया था। गीता ने कहा कि बाद में उसकी बेटी ने कहा कि होस्टल में सब कुछ ठीक है क्योंकि वह अपने माता-पिता को परेशान नहीं करना चाहती थी। उसने कहा, लेकिन अस्पताल के बिस्तर पर मेरी बच्ची ने मुझे सीनियरों के बारे में सच्चाई बताई। दो सीनियर उसे और बाकी लड़कियों को लगातार परेशान कर रहे थे जिसकी वजह से उन्होंने जहरीला फल खाया।

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OUTLOOK 08 May, 2015
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