कपिल देव की विश्व विजेता टीम की छह ऐसी दिलचस्प बातें, जिन्हें पढ़कर आप रह जाएंगे हैरान
भारत को 1983 में पहला विश्व कप दिलाने वाले कपिल देव की मैदानी सफलताओं ने समूचे देश को गौरवान्वित किया। कपिल देव में वे सभी गुण और काबिलियित मौजूद थी जो किसी आदर्श खिलाड़ी में होने चाहिए। वे शारीरिक रूप से हमेशा चुस्त-फुर्तीले बने रहे। शानदार फिल्डर-बल्लेबाज और गेंदबाज रहे कपिल की जिम्बॉब्वे के खिलाफ 175 रन की नाबाद पारी विश्व कप में भारत की जीत की अहम कड़ी रही। खिताबी मुकाबले में पीछे भागते हुए विवियन रिचर्ड्स का कैच इतिहास में दर्ज हो गया। बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के अनुसार आइए जानते हैं 1983 विश्व से जुड़ी कुछ रोचक किस्से।
जब शशि कपूर को नही फिट आया कोट
जब ये जश्न मन रहा था, तभी मशहूर अभिनेता शशि कपूर वहां पहुंच गए। कपिलदेव अपनी आत्मकथा 'स्ट्रेट फ़्रॉम द हार्ट' में लिखते हैं कि जब हम 'ड्रेसिंग रूम' से बाहर निकले तो वहाँ 'साउथ हॉल' से आए कुछ पंजाबी नाचने लगे। फिर किसी ने आ कर मुझसे कहा कि शशि कपूर बाहर खड़े हैं और अंदर आना चाहते हैं। मैं टीम के दो सदस्यों के साथ उन्हें लेने बाहर गया।
उस दिन हमने लॉर्ड्स के सारे क़ायदे-क़ानून तोड़ डाले। लॉर्ड्स के मुख्य स्वागत कक्ष में कोई भी बिना कोट टाई पहने घुस नहीं सकता। हमने शशि कपूर के लिए टाई का इंतज़ाम तो कर लिया, लेकिन वो इतने मोटे हो चुके थे कि हम में से किसी का कोट उन्हें 'फ़िट' नहीं आया। लेकिन शशि कपूर 'स्मार्ट' शख़्स थे। उन्होंने एक 'स्टार' की तरह कोट अपने कंधे पर डाला और टाई बांधे हुए अंदर घुस आए। फिर उन्होंने हम सब के साथ जश्न मनाया।
बलविंदर ने कहा मेरा दिमाग मेरे घुटने में है
11 नंबर पर खेलने आए बलविंदर संधु ने बहुत बहादुरी का परिचय दिया। मार्शल ने उन्हें विचलित करने के लिए एक बाउंसर फेंका जो उनके हेलमेट से टकराया। सैयद किरमानी याद करते हैं कि जब बलविंदर और मेरी साझेदारी शुरू हुई तो मार्शल ने जो पहली गेंद उसे की, वो बाउंसर थी। वो गेंद सीधे उनके हेलमेट पर लगी थी। उस जमाने में मार्शल दुनिया के सबसे तेज गेंदबाज थे। वो गेंद जैसे ही बल्लू (बलविंदर) के हेलमेट में लगी उन्हें दिन में तारे नजर आ गए।
मैं उनकी तरफ भागा ये पूछने के लिए कि तुम ठीक तो हो। मैंने देखा कि बल्लू हेलमेट को अपने हाथ से रगड़ रहे थे। मैंने पूछा तुम हेलमेट को क्यों रगड़ रहे हो। क्या उसे चोट लगी है? सैयद किरमानी आगे बताते हैं कि उसी समय अंपायर डिकी बर्ड ने मार्शल को 'टेल-एंडर' पर बाउंसर फेंकने के लिए बहुत जोर से झाड़ा। उन्होंने मार्शल से ये भी कहा कि तुम बल्लू से माफी मांगो।
मार्शल उनके पास आकर बोले, 'मैन आई डिड नॉट मीन टू हर्ट यू, आई एम सॉरी।' (मेरा मतलब तुम्हें घायल करने का नहीं था, मुझे माफ कर दो। इस पर बल्लू बोले, 'मैल्कम डू यू थिंक दैट माई ब्रेन इज़ इन माई हेड, नो इट इज़ इन माई नी।' (मैल्कम क्या तुम समझते हो कि मेरा दिमाग मेरे सिर में है? नहीं, ये मेरे घुटने में है।) मैल्कम ये सुन कर हंस पड़े।
जीत के वक्त मैदान में नही थी कपिल देव और मदन लाल की पत्नियां
दिलचस्प बात ये है कि जब भारत को जीत मिली तो कपिल देव और मदन लाल की पत्नियां लॉर्ड्स के मैदान पर मौजूद नहीं थीं। कपिल देव लिखते हैं कि जैसे ही भारतीय खिलाड़ी आउट होने लगे, दर्शकों के बीच बैठी मेरी पत्नी रोमी ने मदन लाल की पत्नी अनु से कहा, 'मुझसे यहां नहीं बैठा जा रहा, मैं वापस होटल जा रही हूं। थोड़ी देर में अनु भी होटल पहुंच गई। जब उन्हें पास ही स्टेडियम से शोर की आवाज़ सुनाई दी तो उन्होंने टीवी खोल दिया।
टीवी खोलते ही उन्होंने मुझे रिचर्ड्स का कैच लेते हुए देखा। दोनों औरतें खुशी से पलंग पर ही उछलने लगीं। इतना शोर हुआ कि नीचे से होटल के कर्मचारी ऊपर आ गए। इन दोनों ने किसी तरह से उन लोगों को विदा किया। उधर जीत के बाद मैंने अंदाजे से उस तरफ शैंपेन 'स्प्रे' करनी शुरू कर दी, जहा मैं उन दोनों के होने की उम्मीद कर रहा था। तभी मदन ने मुझसे फुसफुसा कर कहा, 'मुझे अनु और रोमी कहीं नहीं दिखाई दे रहीं।' ये दोनों महिलाएं चाह कर भी दोबारा स्टेडियम में नहीं आ पाई। बाद में जब हम मिले तो उन्हें मुझे ये बताने की हिम्मत नहीं पड़ी कि जब भारत जीता तो वो लॉर्ड्स के मैदान पर मौजूद ही नहीं थीं।"
'ऑक्सफ़र्ड स्ट्रीट' में 'शॉपिंग' करना चाहते थे संदीप पाटिल
जब भारतीय टीम खेलने उतरी तो उन्होंने बहुत अच्छी बैटिंग नहीं की। जब वेस्ट इंडीज़ ने बैटिंग शुरू की तो संदीप पाटिल ने गावस्कर से मराठी में कहा कि अच्छा है कि मैच ज़ल्दी खत्म हो जाएगा और हम लोगों को 'ऑक्सफर्ड स्ट्रीट' में 'शॉपिंग' करने का वक्त मिल जाएगा। जब वेस्टइंडीज की बैटिंग शुरू हुई तो मुझे अंग्रेज और ऑस्ट्रेलियाई पत्रकारों की बातें सुनकर इतना बुरा लगा कि मैंने प्रेस बॉक्स छोड़ दिया और लॉर्ड्स के मैदान में ये सोच कर घूमने लगा कि मेरा मन थोड़ा अच्छा हो जाएगा।
जीत की शेंपेन भी वेस्टइंडीज़ टीम के ड्रेसिंग रूम से लाए थे कपिल
लॉर्ड्स की बालकनी पर कपिल ने शैंपेन की बोतल खोली और नीचे नाच रहे दर्थकों को उससे सराबोर कर दिया। मजे की बात ये है कि कपिल ये शेंपेन की बोतलें वेस्ट इंडीज़ के 'ड्रेंसिंग रूम' से लाए थे, क्योंकि भारतीय खिलाड़ियों ने तो जीत की उम्मीद ही नहीं की थी, इसलिए उनके 'ड्रेसिंग रूम' में एक भी शैंपेन की बोतल का इंतज़ाम भी नहीं था। भारतीय क्रिकेट के इतिहास पर हाल ही में छपी किताब 'द नाइन वेव्स- द एक्सट्राऑरडिनरी स्टोरी ऑफ़ इंडियन क्रिकेट' लिखने वाले मिहिर बोस बताते हैं, "कपिल देव वेस्ट इंडियन कैप्टेन से बात करने उनके 'ड्रेसिंग रूम' गए। वहां उन्होंने देखा कि वेस्ट इंडियन खिलाड़ी बहुत दुखी थे। वहां उन्होंने कुछ शैंपेन बोतलें भी देखीं। उन्होंने लॉयड से पूछा क्या मैं इन्हें ले सकता हूं? लॉयड ने कहा तुम इन्हें ले जाओ। इस तरह भारतीय खिलाड़ियों ने न सिर्फ़ वेस्टइंडीज़ को हराया, बल्कि उनकी शैंपेन भी पी।
जब इंदिरा गांधी के सामने श्रीकांत ने मारी आंख
जब भारतीय टीम मुंबई पहुंची तो मूसलाधार बारिश के बीच पचास हजार लोगों ने वानखेड़े स्टेडियम में उनका स्वागत किया। दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 'हैदराबाद हाउस' में टीम का स्वागत किया। कपिलदेव अपनी आत्मकथा 'स्ट्रेट फ़्रॉम द हार्ट' में लिखते हैं, "इंदिरा गांधी से मिलने से पहले गावस्कर ने श्रीकांत से कहा, देखो तुम्हें आंख मारने और नाक हिलाने की बुरी आदत है। इंदिरा जी के सामने अपने पर काबू रखना और ढंग से पेश आना। श्रीकांत ने कहा, ठीक है।"
जब इंदिरा गावस्कर से बात कर रही थीं तो श्रीकांत इस बात की पूरी कोशिश कर रहे थे कि उनकी आंख और नाक कोई हरकत न करे। तभी मैंने देखा कि इंदिरा गांधी को भी श्रीकांत की तरह आंख झपकने की आदत है। जब वो श्रीकांत के सामने पहुंची तो उन्होंने अपनी आंखें झपकाई। तब तक श्रीकांत अपने ऊपर सारा नियंत्रण खो चुके थे। उनकी भी आंख झपकी और उन्होंने अपनी नाक भी चढ़ाई. हम सब लोग ये सोच कर परेशान हो गए कि कहीं इंदिरा गांधी ये न समझ लें कि श्रीकांत उनकी नकल कर रहे हैं।"