नृत्य की आभा रोहिणी भाटे
कथक नृत्य की अनूठी लोकप्रिय नृत्यांगना विदूषी रोहिणी भाटे ने इस नृत्य की पारंपरिक शैली को नए-नए बिंबों और भाषा में संजोकर एक अलग ही अनोखा अंदाज और रंग दिया। रोहिणी लखनऊ के कथक घराने से जुड़ी थीं। उन्होंने आज के दौर में कलानुरागियों को आकर्षित करने के लिए नए-नए प्रकार की अभिव्यक्ति ढूंढ़ी और रचनात्मक स्तर पर इस नृत्य को संवारा, सजाया और विकसित किया। वे कथक की दुनिया में बड़ी उपलब्धि थीं। लखनऊ शैली का कथक दरबारी और महफिली नृत्य था। कथक के शिखर नर्तक पंडित विरजू महाराज के पुरखे महाराज पंडित दुर्गा प्रसाद, ठाकुर प्रसाद, कलका प्रसाद और सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य-साहित्य के विद्वान तथा लेखक पंडित बिंदादीन महाराज थे। उन्होंने अनगिनित ठुमरी, कवित्त आदि की रचनाएं कीं। उन पर आज भी नृत्य प्रस्तुतियां हो रही हैं। रोहिणी भाटे भी पं. बिंदादीन महाराज के विलक्षण व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थीं। इस घराने के नृत्यकार पंडित अच्छन महाराज, शंभू महाराज, लच्छू महाराज, विरजू महाराज से लेकर घराने के कई शिष्यों खासकर रोहिणी भाटे ने न सिर्फ कथक परंपरा को जीवंत रखा, बल्कि अपने रसभरे अंदाजों में संजोकर पेश करने में इस नृत्य को लोकप्रियता प्रदान की।
रोहिणी भाटे ने काफी हद तक रूढ़िवादी परंपरा को तोड़कर नए ढंग से परिष्कृत करने और आगे बढ़ाने में कई सार्थक प्रयोग किए। उन्होंने एकल नृत्य और नृत्य संरचनाओं को संवारने में एक अलग ही अन्दाज और रंग दिया। आज के कथक में कोरियोग्राफी में नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। इस कला को सीखने में बड़ी तादाद में नए कलाकार सामने आ रहे हैं, जो घरानेदार नहीं हैं। हाल ही में नई दिल्ली के कमानी सभागार में गुरु रोहिणी भाटे को पुणे में उनकी संस्था नृत्यभारती के कलाकारों ने उन्हें भावभनी श्रद्धांजलि अर्पित की। यह आयोजन अमृत मंथन के नाम पर था। इस अवसर पर गुरु रोहिणी की नृत्य से जुड़ी कला यात्रा, उनके संस्मरण, नृत्य के परिवेश में उनके रचनात्मक सृजनशील कार्य, उनके एकल नृत्य की अनूठी प्रस्तुतियों का लेखाजोखा उनकी वरिष्ठ शिष्या और इस आयोजन की निर्देशिका नीलिमा अध्य ने विस्तार से प्रस्तुत किया। सात दशक के नृत्य सफर में उनके द्वारा ढेरों एकल नृत्य और नृत्य संरचनाओं को उन पर बनी फिल्म के जरिए दर्शाया गया। उनमें अनेक संरचनाओं को नृत्य भारती के कलाकारों ने मंच पर प्रस्तुत किया। रोहिणी जी द्वारा भगवान विष्णु की आरधना में संरचित उनके दशावतार की अवधारणा को भक्तिभाव में संजीदगी से दर्शाया गया। यह प्रस्तुति संत कवि जयदेव की कृति और रोहिणी जी के पति प्रभाकर जातर की संगति रचना पर आधारित थी।
इस दौरान पुणे के जीमखाना क्षेत्र में 1961 में स्थापित नृत्य भारती में हर मंगलवार को हाने वाली प्रार्थना में रोहिणी जी के गायन के भक्तिमय दृश्य की मनोरम झलक मंच पर दिखी। नृत्यभारती की रजत जयंती पर तीन दिवसीय समारोह भगवान नटराज पर केंद्रित था। परिकल्पना में नटराज का असीम व्यक्तित्व, नृत्य के प्रतीक, उनके अलौकिक रूप को नृत्य सरंचना के जरिए दर्शाने में एक अलग ही गहरी सूझ और अवधारणा गुरु रोहिणी भाटे की थी। यह जानना महत्वपूर्ण है कि कथक नृत्य के क्षेत्र में रोहिणी जी द्वारा स्थापित संस्था नृत्य भारती में परंपरागत कथक विद्या को संरक्षित करने, नए प्रयोगों द्वारा उसके विस्तार और राष्ट्रीय स्तर लोकप्रिय करने में रोहिणी भाटे का जो बहुमूल्य कार्य है उसमें आधुनिक समय के नृत्य का भी असर दिखता है।
नृत्य की दृष्टि से उन्होंने कई बदिंशें भी रचीं। उनमें वर्षा की देवी की उपासना और होली की प्रस्तुति बहुत ही उल्लासमय और प्रभावी थी। उनके द्वारा रचित संर्कीतन की प्रस्तुति भी अद्भुत था। नृत्य भारती की स्वर्ण जयंती पर रोहिणी जी के दुर्लभ नृत्य और नृत्य सरंचनाओं की नृत्य भारती के कलाकारों द्वारा प्रस्तुति में गुरु के अन्दाज में थिरकते पांव की थाप में एक विलक्षण रंग उभरता दिख रहा था। रोहिणी भाटे द्वारा संरचित सिन्दुरा वंदना निरंतर घूमने वाले समय चक्र पर बैले, शिव-शक्ति यानी पार्वती-शिव के विलय में अर्धनारीश्वर की संकल्पना, सूर्य और चन्द्रमा को लेकर सम्राट अकबर और बीरबल संवाद की नृत्य भाव में प्रस्तुति भी बहुत रोमांचक और दर्शनीय थी। इन तमाम सृजनशील नृत्य संरचनाओं के बीच कवि भवानी प्रसाद मिश्र की काव्य रचना कठपुतली की नृत्य में प्रस्तुति खास थी। इस काव्य रचना में शोषित स्त्री की दर्द भरी दशा का विवरण है जिसे कठपुतली की शक्ल में पेश किया गया। इस रचना के संवेदनशील भाव को नृत्य में जीवंत चित्रण बहुत ही भावुक और मार्मिक था।
रोहिणी भाटे के संदर्भ में खास बात यह है कि वे पूरे जीवन अपने नृत्य और नृत्य सरंचनाओं में संलग्न रहीं। उनका चितंन, विचार पूरी तरह भारतीय और सनातनी था। नृत्य जगत में उनका व्यक्तित्व जितना ऊंचा और बहुविध है, उनका जीवन भी उतना सादगी भरा और बहुरंगी रहा। कला के क्षेत्र में उनका गहन अध्ययन और सदियों पुरानी कथक की जानकारियों का अकूत भंडार उनके पास था। उनसे प्रेरणा लेकर न सिर्फ उनकी शिष्याएं, बल्कि नृत्य जगत के तमाम लोग उनके मार्गदर्शन में आगे बढ़े हैं। उम्मीद है कि नृत्य में रोहिणी भाटे की समृद्ध परंपरा को उनके शिष्य और अनुयायी सजगता से जीवित रखेंगे।