मन मोहता सूरबहार वादन
नई दिल्ली में वाहरी समुदाय का लोटस मंदिर अपनी अनोखी सुंदरता, प्रेम, बिना किसी भेदभाव के समानता, विश्व शांति का संदेश और देश- विदेश की विविध कला विधाओं को एक सूत्र में पिरोकर मानवीय प्रेम को जगाने के लिए मशहूर है। मंदिर के सदस्य इस दिशा में सक्रियता से कार्य कर रहे हैं। वाहरी समुदाय ने स्त्रियों की प्रतिभा और उनके सशक्तीकरण को लेकर एक शृंखला शुरू की है। स्त्रियों के लिए सामाजिक समानता, न्याय और आजादी के भाव को संगीत-नृत्य के जरिए जगाने में दुनिया भर के कलाकारों को लोटस मंदिर प्रेरित कर रहा है। इसी शृंखला के तहत ध्रुपद अंग के वाद्य यंत्र सूरबहार की स्थापित कुशल वादिका सुश्री राधिका सेम्सन के वादन कार्यक्रम का आयोजन लोटस मंदिर परिसर के सभागार में हुआ।
संगीत के ध्रुपद अंग का वाद्ययंत्र सूरबहार की हिन्दुस्तानी संगीत में अनूठी गरिमा और स्थान है। यह सितार की तरह चपल और चमत्कारी नहीं है, बल्कि बहुत ही गंभीर साज है। अन्य वाद्य यंत्रों की अपेक्षा इसको बजाने में सुरों की साधना सरल नहीं है, उसके लिए कड़ी मेहनत और लगन से रियाज करनी होती है। यह विडंबना है कि ध्रुपद की तरह सूरबहार का अस्तित्व भी हाशिए पर जाता नजर आने लगा है। सितार की शोहरत के सामने सूरबहार अलग-थलग पड़ गया है। संगीत के बाजार में अब इसकी मांग नहीं है, इस कारण लोगों में इसे सीखने की दिलचस्पी काफी घट गई है।
अलबत्ता, कुछ कलाकार हैं जो इस परिष्कृत साज को जिंदा रखने और लोकप्रिय बनाने में सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। सूरबहार वादन की उत्कृष्ट और सर्वाधिक लोकप्रिय वादिका विदूषी अन्नपूर्णा देवी के बाद शायद राधिका दूसरी महिला वादक है, जो न सिर्फ पूरी लगन और समर्पण के साथ सूरबहार के वादन को साध रही हैं, बल्कि देश और विदेश में अपने वादन से सूरबहार को लोकप्रिय बना रही हैं। लोटस मंदिर के कार्यक्रम में राधिका ने प्रखर संगीतकार, रचनाकार और गुरु पंडित वरुणपाल के बनाए राग जोग स्तुति को प्रस्तुत किया। राग जोग और मालकौंस मिश्रित इस राग में भक्ति और शृंगार रस का सुंदर बहाव है। राधिका ने पूरी सहजता और सजगता से आलाप में इस विलक्षण राग के स्वरूप को निखार कर पेश किया। उन्होंने सूरबहार के स्वरों को साधकर मंद्र से लेकर तार सप्तक में संचारित करने, गहरे और ठोस तरह के मींड स्वरों को निकालने और एक-एक स्वर की बढ़त करने में अपनी प्रतिभा का भरपूर परिचय दिया।