नृत्य की भावी संभावनाएं
सुश्री प्रिया वेंकटरमन भरतनाट्यम की उर्जस्वी और पारंगत नृत्यांगना हैं। उन्होंने कई बड़े गुरुओं से भरतनाट्यम के हर पक्ष को तल्लीनता से सीखा और गुरुओं की तालीम को आत्मसात किया है। उन्होंने कुशल नृत्यांगना के रूप में अपने को स्थापित किया है। आज उनका शुमार परिपक्व भरतनाट्यम कलाकारों में है।
एकल (सोलो) नृत्य और संरचनाकार के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान है। उनकी छत्रछाया में अनेक युवा नृत्य सीख रहे हैं और कुशलता से आगे बढने का प्रयास कर रहें हैं। उनमें युवा नृत्यांगना - सरयू विश्वनाथ और अनन्या विश्वनाथ तेजी से उभर रही हैं।
हाल में नई दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम के सभागार में अपनी पहली दस्तक से दोनों नृत्यांगनाओं के अरंगेत्रम में रोमांचकारी नृत्य प्रदर्शन ने दर्शकों को मोह लिया। लगा कि जिस शिद्दत और लगन से गुरु ने उन्हें सिखाया, उसी समर्पण भाव से सरयू और अनन्या ने सीखा भी। सही दिशा और लीक पर पारंपरिक अलारिपु की प्रस्तुति से नृत्य का आरंभ बडे चाव से किया।
राग तोड़ी में निबद्ध पुष्पांजलि की भावपूर्ण प्रस्तुति में उनके नृत्य में लयात्मक गति, अंग संचालन, पद विन्यास, संतुलित नृत्य के आकार से लेकर कलात्मक मुद्राओं का सुंदर प्रदर्शन था। भरतनाट्यम में वरनम की प्रस्तुति बहुत महत्वपूर्ण है। वरनम के प्रदर्शन से ही कलाकार के कौशल की परख होती है। किसी कथा विशेष पर आधारित वरनम में नृत्य और अभिनय के सुर और ताल पर बारीक सामंजस्य होता है और उसके हर पक्ष को शुद्धता और सजगता से प्रस्तुतकर्ता को निभाना होता है।
इस लिहाज से संपूर्ण वरनम को कुशलता से पेश करने में दोनों नृत्यांगनाओं ने अपनी प्रतिभा का भरपूर परिचय दिया। अमूर्त नृत्य के विविध प्रकारों को नटुवांगम की लय में बंधी व्याकरणबद्ध जतियों को शुद्धता से पेश करने के साथ वनरम में कृष्ण और नायिका से जुड़ी शृंगांरिक रचना को दोनों ने नृत्य और अभिनय में रोमांचकता और सरसता से प्रदर्शित किया।
कथा में नायिका सखि से कहती है कि मैं प्रियतम कृष्ण से मिलने के लिए अधैर्य हूं, तुरंत तुम मुझे उनसे मिलवाओ। रचना के सार को स्थायी और संचारी भाव पर अभिव्यक्त करने में भाव मुद्राएं, अंग संचालन, पद स्पंदन और नेत्राभिनय बड़ा मनमोहक था। राग आनंद भैरवी में रचित इस प्रस्तुति में नृत्य के जरिए सरगम के बोल की निकास विविध आकारों में तालबद्ध नृत्य चलन सौन्दर्यपूर्ण था।
अनन्या की सोलो नृत्य की प्रस्तुति भी बहुत ओजपूर्ण और आकर्षक थी। उन्होंने राग सिंधु भैरवी में निबद्ध गंगा परन रचना को नृत्य और अभिनय में बडे उत्तेजक भाव में प्रभावी ढंग में उजागार किया। अपनी जटा में गंगा को धारण किए भगवान शिव की महिमा और नटराज के रूप में उनके असीम और अलौलिक रूप को इस युवा नृत्यांगना ने भक्तिभाव में सरसता से दर्शाया।
सरयू ने भी व्याकरणबद्ध सोलो नृत्य की प्रभावी प्रस्तुति में अपने कौशल के खूब रंग दिखाए। इस प्रस्तुति के रचना प्रसंग में गोपियां मां यशोदा से शिकायत करती हैं कि तुम्हारा नटखट बालक हम लोगों को परेशान कर रहा है, तुम उसे यह करने से रोको।
एक गोपी कहती है कि उसने मेरे गाल को चूम लिया, जिससे मैं मुंह दिखाने के लायक नहीं रही। इस प्रस्तुति में गोपियों से अठखोलियां करते कृष्ण का रूप और गोपियों के हाव-भाव को मुखाभिनय, हस्त और रसभरी चितवन से उभारने में सरयू का प्रयास मोहक और खूबसूरत था।
आखिर में राग जलरंजनी में कामाक्षी देवी की उपासना में संकीर्तन और तिल्लाना की प्रस्तुत भी खूबसूरत थी। सुन्दरता से लय ताल में बंधी प्रस्तुति को गरिमा देने में नटुवांगम पर मनोहर बालचन्द्र, गायन में वेंकटेश, वायलिन पर राघवेन्द्र और मृदंगम पर केशवन की नृत्य के साथ संगत बेजोड़ थी।