भक्ति मंदिर में शरद पूर्णिमा का भव्य उत्सव: भक्ति, आनंद और आध्यात्मिक जागृति का अद्वितीय संगम
यदि आप शरद पूर्णिमा, 16 अक्टूबर, की रात्रि में भक्ति मंदिर में उपस्थित थे, तो यह अनुभव जीवन भर आपके साथ रहेगा। यह अवसर था जगद्गुरु श्री कृपालु जी महराज के 102वें जन्मोत्सव का।
प्रयागराज के निकट स्थित श्री कृपालु जी महाराज के जन्मस्थान भक्ति मंदिर में, अनेक भक्तिमय कार्यक्रमों के माध्यम से जगद्गुरु कृपालु जी की 102वीं जयंती मनाई गई। पांचवें मूल जगद्गुरु, श्री कृपालु जी का जन्म 1922 में हुआ। उन्होंने अपने प्रवचनों में भगवान को पाने का सरल भक्ति मार्ग प्रखरता से प्रस्तुत किया। केवल 34 वर्ष की आयु में, उनके गूढ़ प्रवचनों से प्रभावित होकर तत्कालीन 500 प्रमुख विद्वानों की सभा काशी विद्वत परिषद ने उन्हें जगद्गुरु की उपाधि से सम्मानित किया।
कृपालु जी की 102वीं जयंती के अवसर पर भक्ति और प्रेम के रस में सराबोर करने वाले कई कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए। इनमें महारास लीला का अद्भुत मंचन, शरद पूर्णिमा के चंद्रदेव की शीतल किरणों के बीच हज़ारों भक्तों द्वारा की गई भव्य महाआरती और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल थे।
कैसे मिलेगा सच्चा आनंद?
इन कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज और जगद्गुरु कृपालु परिषत् के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर किया गया। जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षायों — सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी, सुश्री डॉ. श्यामा त्रिपाठी जी, और सुश्री डॉ. कृष्णा त्रिपाठी जी ने इस आयोजन की सफलता पर सभी को बधाई दी।
जगद्गुरु कृपालु परिषत् (जे.के.पी.) जिसे पहले साधना भवन ट्रस्ट के नाम से जाना जाता था, एक धार्मिक एवं परोपकारी संस्था है, जिसे 1970 में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने स्थापित किया। यह संस्था शिक्षा, परोपकार और अध्यात्म के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रही है।
शरद पूर्णिमा के विशेष अवसर पर, जे.के.पी. अध्यक्षा सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने गुरु के प्रति आत्मसमर्पण के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "मानव जीवन का वास्तविक लक्ष्य भगवान की कृपा प्राप्त करना है, परंतु यह बिना गुरु के मार्गदर्शन के संभव नहीं है। वास्तव में, भगवान और गुरु केवल समान ही नहीं हैं, बल्कि एक ही हैं। इसलिए, सच्चे आनंद को पाने के लिए गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण आवश्यक है। यही ईश्वरीय प्रेम एवं आनंद प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है।"
भक्ति मंदिर में आयोजित भव्य उत्सव
जयकारों और भक्तिभाव से गूँजते भक्ति मंदिर के श्री कृपालु धाम, मनगढ़ स्थित विशाल परिसर में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की 102वीं जयंती का आयोजन धूम-धाम से किया गया। यहाँ हज़ारों भक्त अपने गुरु और श्री राधा कृष्ण के प्रेमामृत में डूबे दिखाई दिए।
महारास की अद्भुत प्रस्तुति देख भक्त अपने आँसू नहीं रोक सके। श्री राधा कृष्ण का पात्र अदा कर रहे कलाकारों की भाव-भंगिमाओं ने साधकों का मन मोह लिया। वे आनंद में झूमते हुए ऐसे प्रतीत हुए जैसे श्री राधा कृष्ण के दिव्य धाम, गोलोक में पहुँच गए हों।
हज़ारों भक्तों ने अपने प्रिय गुरु, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की महाआरती में उत्साह-पूर्वक भाग लिया। वह देखने योग्य दृश्य था जब शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि में अनगिनत दीप एक साथ जल उठे। इस भव्य आरती के माध्यम से, भक्तों ने जगद्गुरु कृपालु जी के प्रति अपना आभार व्यक्त किया, जिन्होंने उन्हें श्री राधा कृष्ण का दिव्य प्रेम प्राप्त करने का मार्ग दिखाया।
अभिषेक और छप्पन भोग के साथ, सुन्दर भजनों की मधुर ध्वनि के मध्य भक्तगण गुरु भक्ति के सागर में गोता लगाने लगे। दर्जनों ढोल-नगाड़ों की गूँज के बीच, एक साथ झूमते हज़ारों हाथ साधकों के आनंद को व्यक्त कर रहे थे।
श्री कृपालु जी के प्रति व्यक्त किया आभार
यह पूरा कार्यक्रम भक्तों द्वारा अपने गुरु, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अनुग्रह के प्रति आभार व्यक्त करने का एक मार्मिक साधन था। अनेक भक्त, जो असंतोष और निराशा से घिरे थे, अपने गुरु का दिव्य सानिध्य पाकर अपने जीवन का सच्चा उद्देश्य जान पाए। श्री कृपालु जी ने उन्हें समझाया कि जीवन का असली उद्देश्य भौतिक संपत्ति या समाज में ख्याति पाना नहीं, बल्कि भगवान का नित्य प्रेम प्राप्त करना है, जो उन्हें माया के बंधन से मुक्त कर, सदा के लिए आनंद-मग्न कर देगा।
जगद्गुरु कृपालु परिषत् (जे.के.पी.) की जानकारी यहाँ पर उपलब्ध है:
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