नृत्य को नये रूप-रंग आयाम
इस समय कई ऐसे नृत्य के कलाकार हैं जो निजी स्तर पर पारंपरिक नृत्य शैली का सार - सत्व लेकर उसे आधुनिकता के साथ जोड़ने का महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। ऐसे लोग निश्चित ही परंपरा और प्रयोग के बीच पुल की तरह हैं इनमें एक नाम भरतनाट्यम नृत्यांगना सुश्री प्रिया वेंकटरमण का है। उन्होने नृत्य को प्रवीणता और प्रभाव के साथ साधा है। एकल नृत्य के साथ प्रिया एक सृजनशील संरचनाकार भी है। गुरु के रुप में उनकी भूमिका अलहदा और अपनी खास तरह से खास है। उन्होनें लगातार सरहनीय प्रयास किया कि कैसे नए दर्शक को पारंपरिक कला समझने और सराहने वाले सौन्दर्य बोध से सम्पन्न किया जाए। उन्होने शिष्यों को प्रोसाहित करते हुए उनके सामने अनेक नई सम्भावनाये खोली। नृत्य में उनकी कई शिष्याएं उभरती नजर आ रही है। उनमे युवा नृत्यांगना सुश्री अनाविता और जिया गणेश का नाम दर्ज हो गया है। हाल ही गर्मजोशी से उड़ान भरती इन युवाओं का नृत्य त्रिवेणी कला संगम के सभागार में प्रदर्शित हुआ। मंगलाचरण के रुप में उन्होनें आदि ताल में निबद्ध परंपागत पुष्पांजलि की मनोरम प्रस्तुति से की। उसको उपरांत भरतनाट्यम में प्रमुख वरनम को चाव और तल्लीनता से प्रस्तुत किया है। वरनम में कथा नृत्य, अभिनय और संगीत का वैचित्रपूर्ण समन्वय है। राग शंकराभरणम पर आधारित वरनम में बिर्हदिशा यानि भगवान शिव के प्रेम में डूबी नायिका के मनोदशा का वर्णन है। शिव की आसक्ति में उसके अन्दर स्थाई और संचारी में भाव उमड़ते है उसकी सरस अभिव्यक्ति इन नृत्यांगनाओं की प्रस्तुति में दिखी। सुरमय संगीत पर कई चरणों में इस कथा प्रसंग को दर्शाने में युवाओं का सुन्दर प्रयास था। इस वरनम को नृत्य में संरचित करने में गुरु प्रिया वेकंटरमण अच्छा रंग और रस भरती नजर आई। अगली प्रस्तुति में महाकवि सुब्रामनिया भारती द्वारा रचित पदम आसई मुखम की जिया ने एकल नृत्य में प्रस्तुत किया | पदम का भाव उसके नृत्यामिनय में सरसता से साकार हुआ। रचनाकार अम्बुजम कृष्णा द्वारा राग कल्याणी में सरंचित रचना आदिनय कन्ना की मनोरम झलक युगल नृत्य में लय की गति और आपसी तालमेल में दर्शनीय थी। राम और सीता के प्रथम मिलन पर रचित यारों ईवार यारों रचना को अनविता ने एकल नृत्य और अभिनय में चपल और तराशी गति में पेश किया। दोनो ने कार्यक्रम का समापन आदि ताल में निबद्ध तिल्लाना को थिरकती लय में सुन्दरता से प्रस्तुत किया।