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29 April 2024

एक नाटक को एक ही निर्देशक द्वारा दो शैलियों में मंचित करने का नया प्रयोग

"धर्मवीर भारती की मशहूर कहानी " बन्द गली का आखिरी मकान" दरअसल लिव इन रिलेशन की कथा थी"

आज से 55 साल पहले भारतीय समाज में विशेषकर एक कस्बे में लिव इन रिलेशन आसान नहीं था ।हिंदी के यशस्वी लेखक धर्मवीर भारती ने जब 1969 में यह कहांनी लिखी तो उस समय बहुत चर्चा में थी क्योंकि कहा जाता है कि यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है।बन्द गली का आखिरी मकान एक छप्परवाला कच्चा घर था जो उनके घर के पास ही था।भारती जी बचपन में इस घर मे जाते थे और इस कहानी के मुख्य पात्र मुंशी जी और बिरजा से मिलकर आते थे।भारती जी ने दिल्ली में इस कहांनी के एनएसडी में हुए पहले मंचन के बाद एक संस्मरण में इस विवरण को लिखा भी है।उन्होंने उस व्यक्ति का नाम नहीं लिखा जो इस कहानी के मुख्य पात्र हैं लेकिन तब इलाहाबाद का साहित्य समाज उसे जानता था।

मुंशी जी ने बिरजा नामक एक महिला को अपने घर में आश्रय दिया था जो अपना पति छोड़कर आयी थी अपने दो बच्चों के साथ। बिरजा के साथ रहने से परिवार और समाज के लोग ताने मारने लगते हैं। कहानी का जन्म यहीं होता है।

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राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निर्देशक देवेंद्र राज अंकुर ने हिंदी रंगमंच के इतिहास में एक और नया प्रयोग किया है। पिछले दिनों उन्होंने मन्नू भंडारी की 7 कहानियों और उनके उपन्यास आपका बंटी के कुछ अंशों को मिलाकर एक नाटक का मंचन किया था जो हिंदी रंगमंच में एक अभिनव प्रयोग था।

गत सप्तान्त उन्होंने एक नाटक को दो विभिन्न शैलियों में प्रस्तुत कर एक और नया प्रयोग किया जिसे दर्शकों ने सराहा।आम तौर पर एक नाटक को कई निर्देशक विभिन्न शैलियों में प्रस्तुत करते रहे हैं।"अंधायुग " "आधे अधूरे" " तुगलक" जैसे नाटकों के कई मंचन अलग अलग निर्देशकों ने किये और उनकी प्रस्तुतियां भिन्न रहीं पर अंकुर जी ने धर्मवीर भारती की 1969 में लिखी गयी लंबी कहांनी "बन्द गली का आखिरी मकान " को दो शैलियों में एक साथ मंचित कर अनूठा प्रयोग किया।एक मंचन पारंपरिक शैली में जबकि दूसरी आधुनिक शैली में जिसमें नवाचार देखने को मिला।दोनों मंचन" कहांनी का रंगमंच" विधा के तहत हुआ।गौरतलब है कि अंकुर जी ने" कहानी का रंगमंच " नामक एक नई विधा को विकसित किया है।

एनएसडी रंगमंडल की ओर से खेले गए दोनों नाटकों में से एक का मंचन "सम्मुख" में हुआ जबकि दूसरे का मंचन "अभिमंच "में हुआ।दोनों नाटक एक ही समय में दो सभागारों में अलग अलग शैलियों में खेले गए।

किसी को सम्मुख का नाटक पसंद आया तो किसी को अभिमंच वाला।किसी को दोनों नाटक पसंद आये।निर्देशक अंकुर जी सेजब यह पूछा गया कि आप इन दोनों प्रस्तुतियों में से किस से अधिक संतुष्ट रहे ,उन्होंने कहा कि मुझे तो दोनों प्रस्तुतियों से संतोष हुआ।आखिर ये मेरी दो संतानें हैं।मैं इनकी तुलना नहीं कर सकता।यह संभव है कि किसी दर्शक को पहला पसंद आये तो किसी को दूसरा।दोनों नाटकों का स्क्रिप्ट एक ही है।बस शैली भिन्न है।कहांनी में थोड़ा बहुत एडिटिंग मैंने किया है।1996 में जब पहली बार किया तो उसमें मध्यांतर था।पर दोनों "कहांनी का रंगमंच" ही है।"

एनएसडी रंगमंडल के प्रमुख राजेंश सिंह ने बताया कि यह नाटक 28 साल बाद हो रहा है।जब पहली बार इसे अंकुर जी ने मंचित किया था तो उसेधर्मवीर भारती ने भी देखा था और उन्हें पसंद आया था। उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया भी रजिस्टर में दर्ज की थी ।नाटक के ब्रोशर में इस नाटक के मंचन को लेकर भारती जी का एक लंबा संस्मरण भीछपा है ।28 साल बाद नाटक की शैली प्रस्तुति अभिनय आदि में भी बदलाव हुए हैं जिन्हें इसमें देखा भी जा सकता है।"

जाहिर है इस नाटक को अब इस परिप्रेक्ष्य में ही देखा जाना चाहिए क्योंकि इन तीन दशकों में दर्शकों की रुचियाँ भी बदली होंगी।

हिंदी के यशस्वी लेखक धर्मवीर भारतीय एक बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे जिन्होंने कहानी, कविता उपन्यास, नाटक ,अनुवादक और संपादक के रूप में हिंदी जगत में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था।उन्होंने "अंधायुग " "जैसा कालजयी नाटक तो लिखा ही।उनकी काव्य कृति" कनुप्रिया "की भी अनेक नाट्य प्रस्तुतियां हो चुकी और वह भी चर्चित रहीं। उनकी कुछ कहानियां भी काफी चर्चित रही जिसमें " गुलकी बन्नो" ,"सावित्री नंबर दो" और " बंद गली का आखिरी मकान "की भी चर्चा बहुत होती है ।उन्होंने अनेक कहानियां लिखी और उनके तीन चार कहांनी संग्रह आये।" बन्द गली का आखिरी मकान "उनकी सबसे लंबी कहानी थी ।उस दौर की संभवतः सर्वाधिक लंबी कहांनी। तब लंबी कहानियों का चलन आज की तरह नहीं था।आज सौ सौ पेज की लंबी कहानियां हिंदी में लिखी जा रही हैं।यह कहानी दरअसल एक उपन्यासिका जैसी है।

भारती जी का पहला कहानी संग्रह 1946 में ही आ चुका था। इस दृष्टि से देखा जाए तो नई कहानी आंदोलन के किसी लेखक के कहानी संग्रह से पहले भारती जी का कहानी संग्रह आ गया था और करीब दो ढाई दशक तक उनका कहानी लेखन होता रहा। 

यह कहानी इलाहाबाद के एक कस्बाई निम्न मध्ययवर्गीय वकील की कहानी है जो अपनी बहन बिटौनी के पालन पोषण और विवाह के कारण खुद अविवाहित रह जाता है और बिरजा जैसी आश्रिता को पत्नी की तरह घर में रखता है जो अपने पति को छोड़कर आती है और उसके पहले पति से दो बच्चे हैं, जो मुंशी जी को अपन पिता(नकलीबाप) मानते हैं।

यह केवल मुंशी जी की कहानी नहीं बल्कि बिरजा की भी कहांनी है।यह एक "लिव इन रिलेशन" की भी कहांनी है। एक स्त्री के मुंशी जी के घर में रहने से ही यह तनाव पैदा होता है।अगर बिरजा न रहती तो कहांनी बनती ही नहीं।दरअसल सामाजिक नैतिकता के दवाब के कारण एक परिवार के विघटन और मूल्यों की टकराहट की यह कहांनी है।धर्मपरायण मुंशी जी के साथ उनकी बहन और छोटे बेटे के दुर्व्यहार और अंतर्विरोधों की भी कहांनी है तो बिरजा के रूप में एक स्त्री के साथ दुर्व्यहार उपेक्षा अपमान अत्याचार और शोषण की भी कहानी है। 

लेकिन दोनों प्रस्तुतियों का दर्शकों पर असर भिन्न रहा।सम्मुख में अंकुर जी ने ब्लॉक्स के जरिये नाटक में जो गतिशीलता उत्पन्न की है वह जबर्दस्त है।कल्पना कीजिये अगर ये ब्लॉक्स नहीं होते तो क्या नाटक इतना डायनामिक और जीवंत होता।

अभिमंच की प्रस्तुति में बीच बीच में नाटक शिथिल भी होता है उसमें नाटकीय तनाव पूरी तरह बरकरार नहीं रहता जबकि सम्मुख में यह तनाव शुरू से अंत तक है।अभिमंच में मंच की साज सज्जा है तो सम्मुख में वह सज्जा नहीं है। अभिमंच में मुंशी जी का अभिनय एक ही अभिनेता करता हैजबकि सम्मुख में ऐसा नहीं है।हर पात्र कहांनी कहते हैं वे सूत्रधार भी हैं औऱ पात्र भी बदलते रहते हैं।एक अभिनेता दूसरे पात्र में बदल जाता है। इसमें एक आवाजाही है जो मंचन को गतिशील बनाती है।इसमें ब्लॉक्स और साड़ी का सुंदर प्रतीकात्मक प्रयोग है। दरअसल अंकुर जी ने यही शैली कहांनी के रंगमंच में अपनाई है।

सम्मुख में 14 कलाकारों ने अभिनय किया जबकि अभिमंच में दस कलाकारों ने।दिलचस्प बात यह है कि लाटरी के जरिये इन अभिनेताओं को रोल दिए गए।सम्मुख में मुंशी जीकी भूमिका मुजीबुर रहमान और अखिल प्रताप गौतम ने और बिरजा की भूमिका पूनम दहिया और रीता देवी ने निभाई तो अभिमंच में आलोक रंजन ने मुंशी की और शिल्पा भारती ने बिरजा की भूमिका निभाई। पूनम दहिया ने छोटी बहू की भी भूमिका निभाई है।अभिमंच में छोटी बहू की भूमिका मधुरिमा तरफदार ने निभाई।

सम्मुख में 11 कलाकारों ने नैरेटर की भूमिका अदा की है।यानी कलाकार खुद नैरेटर भी हैं पात्र भी हैं और एक कलाकार एक पात्र की भूमिका करते हुए उस पात्रसे निकलकर दूसरे पात्र की भूमिका करने लगता है।इस वजह से यह एक दिलचस्प नाटक बनता है।

अंकुर जी ने 1975 में निर्मल वर्मा की कहानी "तीन एकांत " से इस विधा की शुरुआत की थी। उन्होंने 1996 में पहली बार बन्द गली का आखिरी मकान का मंचन किया था। इस तरह "कहानी के रंगमंच "के वर्ष 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इन 50 वर्षों में उन्होंने करींब 500 से अधिक कहानियों का मंचन किया है ।

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TAGS: Experiment, director, dharmveer bharti, theatre plays
OUTLOOK 29 April, 2024
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