पिछड़े वर्ग के आरक्षण के 25 सालः 'लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई'
मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करवाने का श्रेय विश्वनाथ प्रताप सिंह, शरद यादव और रामविलास पासवान को जाता है। इसका श्रेय मैं राम जेठमलानी को भी देना चाहूंगा जिनके प्रयास से आज आरक्षण का लाभ मिला। जिनके प्रयासों से मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू हुई मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहूंगा। लेकिन एक बात और कहना चाहूंगा कि जिनको आरक्षण मिला उनको भी इस बात को सोचना होगा कि अगर आज आरक्षण नहीं होता तो उनकी स्थिति क्या होती। कई बार ऐसे मौके आए कि आरक्षित कौमों के बीच ही बंटवारे की साजिश रची गई। कई ऐसे मौके आए जब लगा कि आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाएगा। आरक्षण को बचाने वालों में अशोक यादव का भी नाम दर्ज हुआ। अशोक यादव को कितना विरोध का सामना करना पड़ा। मंत्री पद की कुर्सी गंवानी पड़ी। निर्दलीय विधायक होना पड़ा। बहुत से ऐसे कारण रहे कि मुझे आरक्षण को बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। मैं कपिल सिब्बल को बधाई देना चाहता हूं कि उन्होने भी आरक्षण को लेकर हमारी लड़ाई लड़ी।
मैं कहना चाहूंगा कि-
‘सफर में मुश्किलें आए तो हिम्मत और बढ़ती है
कोई अगर रास्ता रोके तो जुर्रत और बढ़ती है
अगर बिकने पर आ जाओ तो घट जाते हैं दाम अक्सर
न बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढ़ती है।’
मुझे इस आरक्षण को बचाने के लिए कई पद छोड़ने पड़े। लेकिन मैं निराश नहीं हूं। मैं भगवान को धन्यवाद देना चाहता हूं कि मुझे शक्ति मिली और मैं एक कौम की लड़ाई लड़ पाया। 27 प्रतिशत आरक्षण का बंटवारा करने की जो कोशिश हुई उससे हर बार जीत हमारी हुई। कई लोगों ने तो यह भी साजिश रची कि 27 प्रतिशत आरक्षण को कम करके 5 प्रतिशत कर दिया। लोगों की साजिश को सुप्रीम कोर्ट ने नाकाम कर दिया। इस लड़ाई को हम बड़ी मुश्किलों के साथ जीते। लेकिन इस जीत में 80 घाव भी लगे।
इतिहास गवाह है कि जब आप बड़ी लड़ाईयां लड़ते हो तो महाराणा प्रताप बनते हो। कुछ काम ऐसे करते हो कि इतिहास में आपका नाम दर्ज हो जाता है। मुझे खुशी है कि अशोक यादव का नाम भी इतिहास में दर्ज हो गया। लेकिन अफसोस इस बात का है कि कई पिछड़े वर्ग के नेताओं ने आरक्षण को पूरी तरह से भुला दिया। कई प्रदेशों में पिछड़े वर्ग के मुख्यमंत्री रहे और हैं भी लेकिन उन्हें अपने कौम की चिंता नहीं बल्कि अपने परिवार की चिंता है। वह अपनी संपत्ति कैसे बढ़े, कुनबा कैसे बढ़े। इस ओर ध्यान देते हैं। लेकिन मेरी अपेक्षा आने वाले नौजवानों से है कि जिन लोगों ने लड़ाई लड़ी उनके सम्मान में इस लड़ाई को आगे जारी रखें। क्योंकि आरक्षण की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है बल्कि सियासी साजिश है कि इस लड़ाई को को जारी रखा जाए।
मैं जोर देकर कहता हूं कि आज आरक्षण का लाभ लेकर जो लोग बड़े पदों पर बैठें हैं अगर अशोक यादव ने लड़ाई नहीं लड़ी होती तो पुलिस की नौकरी मिलना भी मुश्किल हो जाता। बार-बार सुप्रीम कोर्ट की चैखट पर जाकर इस लड़ाई को खत्म किया गया। लेकिन अभी भी मुश्किलें है। मैं मानता हूं कि 25 साल के इस सफर में काफी उतार-चढ़ाव रहा लेकिन खुशी इस बात की है कि इस सफर में हमारे कई भाई बहन अच्छे पदों पर पहुंच गए। अंत में इतना ही कहना चाहूंगा-
‘एक पत्थर की तस्वीर भी संवर सकती है
शर्त यह है कि करीने से तराशा जाए।’
(लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रह चुके हैं)