Advertisement
23 June 2015

अफगान संसद पर हमला और भारत

AP

पहली बात तो यह कि अमेरिकी वापसी के बाद अफगानिस्तान में शांति के आसार बहुत कम हैं। जब तक भारत और अमेरिका मिलकर पाकिस्तान को अपने साथ नहीं लेंगे, दुनिया की कोई ताकत इन हमलों को रोक नहीं सकती। पाकिस्तान अभी भी हमारे और तुम्हारे तालिबान के चक्कर में फंसा हुआ है। दूसरी बात, अशरफ गनी के राष्ट्रपति बनने से कोई खास फर्क नहीं पड़ा है। उन्होंने तालिबान और पाकिस्तान दोनों को पटाकर देख लिया है। उनके हाथ निराशा ही लगी है। कुंदूज जैसे फारसीभाषी प्रांत के दो जिलों पर भी तालिबान का कब्जा हो गया है। अफगान फौज में भी पठानों की बहुसंख्या है और तालिबान तो पठान ही हैं। इसीलिए फौज का भी कोई भरोसा नहीं है कि वह कब कौनसी करवट ले ले। अफगानिस्तान की आर्थिक स्थिति भी विषम है। इसके अलावा राष्ट्रपति गनी और प्रधानमंत्री अब्दुल्ला अब्दुल्ला में भी एका नहीं है। स्थिति काफी भयानक है। 

ऐसे में भारत का हाथ पर हाथ धरे बैठा रहना ठीक नहीं है। अमेरिका का पिछलग्गू बने रहने से भी कोई फायदा नहीं है। भारत के लिए यह जबर्दस्त कूटनीतिक और रणनीतिक चुनौती है। हमारे अफसरों को चाहिए कि वे नेताओं को सारे पेंच समझाएं और उन्हें बड़ी कार्रवाई के लिए तैयार करें।

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: अफगानिस्‍तान, संसद हमला, भारत, आतंकवाद, तालिबान, अमेरिका, Afghanistan, parliament, Attack, India, America
OUTLOOK 23 June, 2015
Advertisement