अनिल माधव दवे: बिना कुछ कहे गुजर गया 'नर्मदा समग्र' का यात्री
राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों की आम तौर दो छवियां होती हैं। एक, उन लोगों के बीच जिन्होंने उस व्यक्ति को दूर से देखा, बस मीडिया या चर्चाओं के जरिए जाना। दूसरी छवि, उन लोगों के बीच होती है जिन्होंने व्यक्ति को नजदीक से देखा है, बरसों से जाना-पहचाना है। इन दोनों छवियों में अक्सर विरोधाभास देखने को मिलता है। लेकिन मध्य प्रदेश में पहली बार कदम रखते ही अनिल माधव दवे के बारे में मेरी यह धारणा ध्वस्त हो गई। जो बातें मैंने अनिल माधव दवे के बारे में दूर से सुनी थीं, नर्मदा अंचल में उनकी वैसी ही छवि पाई। वे पर्यावरण मंत्री बाद में, पहले पर्यावरण कार्यकर्ता पहले थे। राजनीतिक दल के नेता से ज्यादा अपने सद्व्यवहार, सरोकार और चिंतन के लिए जाने जाते थे। उनसे राजनीतिक तौर पर असहमति रखने वाले लोगों में भी उनके प्रति एक अनुराग दिखाई देता था।
नर्मदा समग्र से नर्मदा सेवा तक
अनिल दवे की अनूठी नर्मदा यात्राओं ने नदियों को बचाने की मुहिम को राष्ट्रीय फलक पर पहुंचाने में मदद की। लेकिन विडंबना देखिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नर्मदा यात्रा पूरी होने के तीन बाद नर्मदा पुत्र दवे भी अनंत की यात्रा पर निकल गए। चुपचाप! बिना किसी को बताए! अनिल दवे ने नर्मदा किनारे के अंचलों में नर्मदा चौपाल, नदी उत्सव जैसी कई पहल कीं। इन प्रयासों की छाप शिवराज सिंह की नर्मदा सेवा यात्रा पर साफ देखी जा सकती है। कोर्ट के आदेशों से बहुत पहले वे नदियों को समग्र और जीवंंत इकाई मानने के पक्षधर थे।
निराला 'परकम्मावासी'
पिछले दिनों जब मैं नर्मदा के आसपास के इलाकों से गुजरते हुए पर्यावरण और सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों से नर्मदा के संकटों की पड़ताल कर रहा था, तब अनिल माधव दवे का जिक्र बार-बार लोगों की जुबान पर आता। अलग-अलग मतों और राजनीतिक खेमों से जुड़े लोग भी उनके बारे में यह बताना नहीं भूलते कि नर्मदा और पर्यावरण को लेकर उनमें गजब का समर्पण है। वे आधुनिक दौर के सबसे निराले 'परकम्मावासी' हैं। (नर्मदा अंचल में परिक्रमा को लोग 'परकम्मा' ही कहते हैं)
मुझे भी यह जानकारी हैरानी हुई कि अनिल दवे ने नर्मदा की 1312 किलोमीटर की यात्रा पैदल भी की और खुद विमान उड़ाते हुए वायु परिक्रमा भी। साल 2007 में अमरकंटक में उद्गम से लेकर अरब सागर में मिलन स्थल भृगुकच्छ तक नौका द्वारा यात्रा कर 'नर्मदा समग्र' की अलख जगाई। वह नर्मदा सहित देश की सभी नदियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण से जुड़े पक्षों को समग्रता से देखने के पक्षधर थे। उनके विचारों से असहमत होने वाले लोग भी उनके व्यवहार और समर्पण के कायल दिखे। राजनीतिक जीवन में किसी व्यक्ति के लिए यह बड़ी पूंजी है।
विरोधाभासों को साधने में माहिर
मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को हाशिए पर धकेलने में अहम भूमिका निभाने वाले अनिल दवे ने केंद्र में पर्यावरण मंत्री बनने के बाद भी अपने नेतृत्व कौशल का बखूबी परिचय दिया। उनकी गिनती देश के सबसे कम विवादों में रहे पर्यावरण मंत्रियों में होगी। हालांकि, उनके कार्यकाल में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यमुना किनारे आर्ट ऑफ लिविंग के आयोजन से लेकर नदी किनारे खनन और प्रदूषण को लेकर पर्यावरण मंत्रालय की कई बार खिंचाई की। लेकिन मोटे तौर पर उनका कार्यकाल निर्विवादित रहा।
विरोधाभासों के बीच संतुलन बनाना उनकी खूबी थी। इसी खूबी के बूते वह मध्य प्रदेश में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की भरमार के बीच चिंतक और विचारक के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते रहे। हालांकि भाजपा में अमित शाह के मैनेजमेंट की चर्चा ज्यादा होती है, लेकिन मध्य प्रदेश में लोग अनिल दवे के प्रबंंधन कौशल के कायल हैं।
अनिल माधव दवे का का अचानक चलते जाना नेताओं की उस पीढ़ी के एक और व्यक्ति को हमसे दूर हो जाना है, जिससे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोगों के दिलों में जगह बनाई। दवे को श्रद्धांंजलि देते हुए एक बात सभी के मन में उठ रही होगी कि नर्मदा पुुुुत्र की जीवन यात्रा इतनी जल्दी खत्म होनी थी।