हिंदू बांग्लादेशी को नागरिकता: कुछ उलझे सवाल
बांग्लादेश से अवैध रूप से आकर असम में बसे हिंदू बंगालियों का समर्थन लेने के लिए उन्हें भारतीय नागरिकता देने के वादे की वजह से भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह फंस गई है। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे भाजपा न तो उगल पा रही है और न ही निगल पा रही है। यह एक संवैधानिक समस्या है। इसके लिए संविधान में संशोधन करने के साथ असम समझौते में भी संशोधन करना पड़ेगा। क्योंकि असम समझौते में संशोधन किए बिना उन्हें नागरिकता देने से असम समझौता ही अवैध हो जाएगा। इसे असम के लोग, खासकर ऑल असम स्टुडेंट यूनियन (आसू) कभी सहन नहीं करेगा। राज्य में फिर से आंदोलन का माहौल बन जाएगा। वैसे भी आसू धर्म के आधार पर अवैध नागरिकों को भारत की नागरिकता देने का विरोध कर रहा है। आसू का कहना है कि 1971 के बाद बागंलादेश से आने वाले सभी नागरिक अवैध हैं और उन्हें बाहर किया जाना चाहिए। सिर्फ असम पर बांग्लादेश से आने वाले नागरिकों का भार क्यों डाला जा रहा है। हालांकि भाजपा धार्मिक आधार पर नागरिकता देने के पक्ष में है। इसके लिए कई स्तरों पर प्रयास भी किया जा रहा है। लेकिन संवैधानिक बाधाओं की वजह से यह एक जटिल प्रक्रिया है। इसलिए केंद्र सरकार ने संविधान के जानकारों की सलाह भी ली है।
यदि संवैधानिक अड़चनों को दूर भी कर लिया जाए तो आसू समेत अन्य स्थानीय संगठन इसे स्वीकार कर लेंगे, यह जरूरी नहीं है। वैसे भी यह एक संवेदनशील मुद्दा है। इसलिए राज्य और केंद्र सरकार को पूरी सावधानी से आगे बढ़ना होगा। पहले ही लोग असम की भूमि बांग्लादेश को दिए जाने का विरोध करते रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिंदू बांग्लादेशी नगारिकों को भारतीय नागरिकता दिए जाने का मामला बेहद पेचीदा होता जा रहा है। केंद्र सरकार अगर इन्हें भारतीय नागरिकता देने की पहल करती है तो संवैधानिक रूप से राज्य सरकार को 1985 में हुए असम समझौते में सबसे पहले तब्दीली करनी पड़ेगी। अगर केंद्र सरकार इस तब्दीली से पहले नागरिकता कानून ले आती है तो ऐसी स्थिति में असम समझौता कानूनन अवैध हो जाएगा। हिंदू बांग्लादेशी को भारतीय नागरिकता के बारे में संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक असम समझौता-1971 में लिखित ‘धार्मिक पहचान’ वाले शब्दों को हटाया नहीं जाता है तब तक संवैधानिक रूप से बांग्लादेशी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता नहीं दी जा सकती है। केंद्र सरकार हिंदू बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता देने संबंधी विधेयक को अगर कानून में बदल देती है तो 1985 में भारत सरकार, असम सरकार तथा आसू के बीच हुआ असम समझौता ही अवैध हो जाएगा। ऐसी स्थिति में असम सरकार के सामने कई तरह की दुविधा आ सकती है।
बांग्लादेशी हिंदुओं को भारतीय नागरिकता देने के लिए असम समझौते में परिवर्तन से भले ही इन दोनों देशों के दो लाख से भी अधिक हिंदुओं को लाभ होगा। लेकिन असम अतिरिक्त आबादी का दबाव झेलने की मन:स्थिति में नहीं है। इससे समाज में विद्वेष फैलेगा।