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02 May 2015

आपदा से टूट गया नेपाल

आउटलुक

 नेपाल रवाना होने से पूर्व माननीय मुख्यमंत्री जी का यह आदेश था कि हम रिश्तेदार बदल सकते है पर पडोसी नहीं बदल सकते, उनका दर्द हमारा दर्द है। उस दर्द के मर्म को समझते हुए हमारे साथ राहत सामग्री बड़ी मात्रा में भेजी गई। जिसमें दवाइयां, खाना, पीने का पानी, ठंड के लिए कंबल और टेंट के साथ हमारा दल रवाना हुआ।

आज नेपाल में आने के रास्ते पर नहीं बल्कि जाने के रास्ते पर लगातार समाजवादी आगे बढ़ रहे है। जब हमारा दल सोनौली बॉर्डर पर पहुंचा तब नेपाल से वापस आ रहे लोगों की परिस्थितियों के बारे में पूछा। उनसे बात करके पता चल रहा था कि वहां की स्थिति कितनी भयावह है। सोनौली बॉर्डर पर भारतीय सेना के ट्रक और उनका सहायता केंद्र दिखाई देता है। मेडिकल उपचार के लिए बॉर्डर पर डॉक्टरों की एक टीम तैनात है, पुलिस सजग है। रिक्शे, तांगे, बस और ट्रक से लोग आ-जा रहे है। पर उनके चेहरे सहमे  हुए है। उनकी बातो में कंपन है।
सोनौली से भैरवाहा फिर बुटवल होकर नारायण घाट और अंत में काठमांडू पहुंचने के रास्ते में हमने भयावह नजारा देखा।  नारायणी नदी के साथ लगातार टेढ़े-मेढ़े रास्तों से निकलना मुश्किल था। रास्ते भर में लगातार गिरते पत्थरो के कारण रास्ता जाम था जिसे हमारी टीम खुलवाते हुए आगे बढ़े रही थी। काठमांडू पहुंचते ही सुबह के ४ बजकर ३० मिनट पर फिर धरती कांपी। हमने देखा पूरा काठमांडू शहर सड़कों पर आ गया। लोग शहर छोड़कर जाने को उतावले नजर आ रहे थे। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की करीब सौ बसों से लोगों को काडमांडू से निकाला जा रहा था। बसों की छतों पर बैठे लोग राहत महसूस कर रहे थे। इन बसों में केवल उत्तर प्रदेश के ही नहीं बल्कि बिहार, महाराष्ट्र, हरियाणा, राजस्‍थान के लोग भी जा रहे थे।

पहचान पत्र की समस्या के कारण कुछ भारतीय अपने देश जा नहीं पा रहे थे। तब सोनौली बार्डर पर बात करके माननीय मुख्यमंत्री जी ने इस समस्या को सुलझाया। काठमांडू में हमारी टीम कई दलों में विभाजित होकर उन इलाकों की ओर रवाना हुई जहां अभी तक सहायता नहीं पहुंची थी। क्योंकि हमें पता चला कि कई गांव ऐसे हैं जहां कोई नहीं पहुंचा है।

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जिसमे एक दल बस अड्डे पर भारतीयों को वहां से निकाल रहा था। दो दल अस्पतालों में घायलो की मदद कर रहा था। तीन दल सर्वाधिक भूकंप पीड़ित क्षेत्रों में वितरित की जा रही सामग्री का जायजा ले रही थी। हमने हर दिन का रोड मैप तैयार कर लिया और एक-एक गांव को पूरी तरह से राहत पहुंचाने का कार्यक्रम तय किया। काठमांडू से आठ किलोमीटर दूर साखू कस्बा पूरी तरह से तबाह हो चुका था। वहां से पांच किलोमीटर एक और गांव लापसिफेरी जो तबाह था वहां के लोग सहायता की राह देख रहे थे।

हमारी टीम ने इस गांव में राहत सामग्री मुहैया करायी। हमारे अभियान को नेपाल के राष्ट्रीय युवा क्रांतिदल का पूरा सहयोग मिला जिसके कारण हम नेपाल के ग्रामीण इलाकों में पहुंच सके। हमारे युवा साथियों में पूरा जोश देखने को मिल रहा था। स्वयं अपने कंधो पर लादकर राहत सामग्री लोगों के बीच वितरित कर रहे थे। ऐसा लग रहा था पीड़ित लोगों का दुख हमारा दुख है इसलिए हमारे अंदर मदद करने का पूरा जोश था। बिना थके, बिना रूके हम लोगों के बीच पहुंच रहे थे।

हमारा दल काठमांडू से १५० किलोमीटर दूर गोरखा की तरफ जाते हुए ऐसा महसूस हो रहा था कि हम कहां आ गए हैं तबाही का मंजर दिल में सिहरन पैदा कर रहा था। गोरखा नेपाल की पुरानी राजधानी होने के साथ-साथ महत्वपूर्ण कस्बा भी है जो कि पूरी तरह से तबाह हो चुका है। दाह-संस्‍कार के लिए लकड़ियां नहीं है। लाशों को दफनाया जा रहा है। रास्ते में भारी बारिश का भी सामना करना पड़ रहा था। लेकिन लोगों का जख्म देखकर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही। हालात अब धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं लेकिन भूकंप के झटके ने नेपाल को काफी पीछे धकेल दिया है। अब महामारी का खतरा मंडरा रहा है। ‌इस संकट से निपटने में अभी नेपाल को लंबा वक्त लगेगा।

(लेखक समाजवादी छात्र सभा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके है)
  

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TAGS: भूकंप, नेपाल, समाजवादी पार्टी, अखिलेश यादव, उत्तर प्रदेश, राहत सामग्री, समाजवादी टीम, सुनील सिंह यादव
OUTLOOK 02 May, 2015
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