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21 August 2025

बहुत कुछ कहना चाहते थे अच्युत पोतदार

कोई डेढ़ दशक पूर्व राजकुमार हिरानी की बहुचर्चित फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ने हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली और मध्यमवर्गीय सामाजिक सरोकारों की ऐसी धज्जियाँ उड़ाई थी कि लोग देखते ही रह गये थे। साहित्य की जगह सिनेमा ने समाज के दर्पण की भूमिका अख्तियार कर ली थी। इस फिल्म में टीचर व स्टूडेंट की भूमिका में अच्युत पोतदार का आमिर खान को संबोधित एक संवाद बहुत लोकप्रिय हुआ था- “अरे, तुम कहना क्या कहते हो..?” इस साधारण से संवाद ने उस ज़माने में युवाओं में इतना क्रेज़ पैदा कर दिया था कि आज भी उसके ‘मीम’ सोशल मीडिया में प्रचलित हैं।

नई पीढ़ी को ठीक से कहने का अंदाज़ सिखाने की हसरत लिये वही अच्युत पोतदार सोमवार 18 अगस्त को मुम्बई में परलोक सिधार गये।उम्रगत स्वास्थ्य समस्याओं के चलते ठाणे के जुपिटर अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।वे अगर दो-चार दिन और रुक जाते तो 91 साल के हो जाते। 22 अगस्त 1934 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में जन्में और इंदौर मेंपले-बढ़े अच्युत पोतदार ने 1961 में अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। उनका परिवार इन्दौर में रामबाग क्षेत्र के मार्तंड चौक में रहता था। यायावर पत्रकार वसंत पोतदार उनके छोटे भाई थे।

अलबेले पत्रकार मित्र और इंदूर के मराठी मानुस पंकज क्षीरसागर बताते हैं- पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्युतजी नेकुछ समय रीवा में कॉलेज व्याख्याता/ असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने भारतीय सेना में आपातकालीन कमीशन के तहत अपनी सेवाएँ दी और 1967 में कैप्टन के पद से सेवानिवृत्त हुए।इसके बाद उन्होंने करीब ढाई दशक तक इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में नौकरी की और डिप्टी मैनजर से लेकर जनरल मैनेजर तक का सफ़र तय किया।

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 नौकरी में रहते हुए ही अभिनय का पुराना शौक परवान चढ़ा और 44 वर्ष की उम्र में उन्हें पहली बार फिल्मों में काम करने का मौका मिला।गोविन्द निहलानी की पहली फिल्म ‘आक्रोश’(1980) के जरिये फिल्मों मेंउनकेएक्टिंग कैरियर की शुरुआत हुई। इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी और स्मिता पाटिल जैसे कलाकारों के साथ काम करने का अवसर उन्हें मिला।सईद अख्तर मिर्ज़ा की अलबर्ट पिन्टो को गुस्सा क्यों आता है (1980) उनकी उसी वर्ष प्रदर्शित दूसरी फिल्म थी।

देवदासी प्रथा के खिलाफ जन आन्दोलन पर केन्द्रित गिद्ध (1984) नासूर (1985) अरुणा राजे की रिहाई (1988) सई परांजपे निर्देशित दिशा (1990) और शशिलाल नायर की अंगार (1992) तथा ग्रहण (2001) में भी उनके अभिनय को सराहा गया।जाने भी दो यारों से अपार ख्याति पाने वाले कुंदन शाह की कॉमेडी फिल्म एक से बढ़कर एक (2004) में एडवोकेट नाडकर्णी के किरदार को उन्होंने अपने अंदाज़ में मुखर बनाया।

गोविन्द निहलानी की राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त ‘आक्रोश’के बाद की सभी फिल्मों- विजेता (1982) अर्द्ध सत्य (1983) आघात (1985) द्रोहकाल (1994) देव (2004) में अच्युत पोतदारअनिवार्यतः नज़र आये। उनका इसी तरह का तादात्म्य विधु विनोद चोपड़ा के साथ भी बना रहा। विधु की पहली फिल्म सजा-ए-मौत (1981) से जुड़ा सिलसिला परिंदा (1989) से लेकर लगे रहो मुन्नाभाई (2006) थ्री इडियट्स(2009) औरफरारी की सवारी(2012) तक निरंतर बना रहा।

करीब चार दशक तक रंगमंच, सिनेमा और टेलीविजन में सक्रिय रहे अच्युत पोतदार ने दर्शकों के सम्मुख अपनी बहुमुखी प्रतिभा के नये आयाम पेश किये। उन्होंनेहिन्दी और मराठी की 125 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में थ्री इडियट्स(2009)के अलावा दबंग-2(2012)फरारी की सवारी(2012)भूतनाथ(2008) और लगे रहो मुन्ना भाई(2006)परिणीता(2005)आदि को गिना जा सकता है।हाल के वर्षों में उन्हें दर्शकों ने सईद अख्तर मिर्ज़ा की एक ठो चांस (2009) प्रभु देवा की आर राजकुमार (2013) और रवींद्र गौतम की इक्कीस तोपों की सलामी (2014) में देखा।

अच्युत पोतदार को सूरज बड़जात्या (हम साथ साथ हैं) महेश मांजरेकर (वास्तव) इंद्र कुमार (इश्क) प्रकाश झा (मृत्युदंड) राम गोपाल वर्मा (रंगीला) राजकुमार संतोषी (दामिनी) राजीव मेहरा (चमत्कार)अज़ीज़ मिर्ज़ा (राजू बन गया जेंटलमैन) और एन चंद्रा (तेज़ाब और नरसिम्हा) सरीखे सुधि निर्देशकों की फिल्मों में निभाये गये किरदारों की खातिर भी याद रखा जाएगा। नाना पाटेकर,ऋषि कपूर, असरानी और सतीश कौशिक जैसे अभिनेताओं द्वारा निर्देशित फिल्मों- प्रहार, आ अब लौट चलें, उड़ान तथा कर्ज़ में भी उनके अभिनय को सराहना मिली। नाना पाटेकर अभिनीत युग पुरुष औरयशवंत में अच्युत पोतदार ने बेहद संजीदा रोल अदा किये।

नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा निर्मित और दिलीप चित्रे निर्देशित गोदाम (1983) में उनके गंभीर अभिनय की उम्दा झलक देखने को मिली थी। कुछ साल बाद सई परांजपे के निर्देशन में बनी दिशा (1990) में उन्होंने एक बीड़ी कारखाने के मालिक का किरदार अदा किया था, जो कर्ज में डूबी महिला श्रमिकों के शोषण के लिये उद्यत रहता है। सामानांतर फिल्मों के दौर की इन महत्वपूर्ण फिल्मों में अच्युत पोतदार का मंजा हुआ अभिनय उन्हें समकालीन सशक्त अभिनेताओं में स्थान दिलाता है। तीन-चार दशक पुरानी ये फ़िल्में आज भी ओटीटी प्लेटफार्म पर आसानी से देखी जा सकती है।

अच्युत पोतदार ने आशिक आवारा, हस्ती, शतरंज, एलान, दिलवाले, ये दिल्लगी, सुरक्षा, आन्दोलन, गुंडाराज, अग्नि साक्षी, शस्त्र, सनम, शपथ, औज़ार, कीमत, न्यायदाता, दाग: द फायर, गैर, दहक, खौफ, आगाज़, फ़र्ज़, हम हो गये आपके, दिल है तुम्हारा, रिश्ते, धुंद, ये दिल, क़यामत, पुलिस फ़ोर्स, वादा, पहचान और तीसरी आँख जैसी औसत व्यावसायिक फिल्मों में भी काम किया, लेकिन इससे उन्हें अभिनेता के रूप में कोई ख़ास पहचान नहीं मिल सकी।

हालाँकि उन्होंने सामानांतर फिल्मों के तमाम अग्रणी कलाकारों- ओम पुरी, अमरीश पुरी, नसीरुद्दीन शाह, कुलभूषण खरबंदा, के.के. रैना, पंकज कपूर, सदाशिव अमरापुरकर, मोहन अगाशे, स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी समेत कमर्शियल फिल्मों के अमिताभ, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, रेखा, डिम्पल कपाड़िया, मिथुन चक्रवर्ती, सनी देओल, संजय दत्त, अनिल कपूर, जैकी श्रॉफ, नाना पाटेकर, मिनाक्षी शेषाद्री, माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन, जूही चावला, उर्मिला मातोंडकर, मनीषा कोइराला, काजोल, प्रीति जिंटा, विद्या बालन, शाहरुख़, सलमान, आमिर, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, सैफ अली खान, गोविंदा, अजय देवगण, शाहिद कपूर, सोनाक्षी सिन्हा,कादर खान, अनुपम खेर, परेश रावल आदि के साथ काम करने के अवसरों का पूरा लुत्फ़ उठाया। 

अच्युत पोतदार ने मराठी रंगमंच को भी समृद्ध किया। सत्यदेव दुबे, विजया मेहता, सुलभा देशपांडे जैसे दिग्गज रंगकर्मियों के साथ उनकी खूब बनती थी। जिन टीवी धारावाहिकों में उनकी भूमिका प्रमुखता से रेखांकित हुई, उनमें‘भारत एक खोज’‘वागले की दुनिया’‘प्रधान मंत्री’‘ये दुनिया गज़ब की’‘ऑल द बेस्ट’‘आहत’‘आन्दोलन’‘मिसेज तेंदुलकर’‘माझा होशील ना’‘अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो’‘शुभ मंगल सावधान’ आदिशामिल हैं।‘प्रधान मंत्री’ और ‘आन्दोलन’ नामक टीवी धारावाहिकों में उन्होंने लोक नायक जय प्रकाश नारायण का किरदार निभाया था। उन्होंने दो दर्जन से अधिक नाटकों में काम किया और ढेर सारी एड फ़िल्में भी की।

इन्दौर में साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली अग्रणी संस्था 'सानंद न्यास' ने वर्ष 2015 में स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित समारोह में अच्युत पोतदार को 'सानंद जीवन गौरव सम्मान' से सम्मानित किया था। 2021 में उन्हें ज़ी मराठी चैनल द्वारा ‘जीवन गौरव पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।इंडियन आयल में उनके मातहत काम कर चुकीं लेखिका, फिल्म और रंगमंच अभिनेत्री विभा रानी के अनुसार हिन्दी, अंग्रेजी, मराठी तीनों भाषाओँ पर पर उनका समान अधिकार था।उनकी आवाज़, उच्चारण, मुस्कान और विट को याद करते हुए वे कहती हैं- “दफ्तर के कार्यक्रमों में वे कमाल की एंकरिंग करते थे। उनकी अनुपस्थिति में ही मुझे एंकरिंग के लिये बुलाया जाता था।सादगी, समर्पण और अभिनय के प्रति जुनून के लिए अच्युत पोतदार को हमेशा याद किया जाएगा।”

अपने स्टूडेंट्स से झल्लाकर “अरे, तुम कहना क्या कहते हो..” पूछने वाला कलाकार वास्तविक जीवन में युवा पीढ़ी का सबसे बड़ा हमदर्द था। नये उभरते हुए कलाकारों की मदद के लिये अच्युत पोतदार सदैव तत्पर रहे।उन्होंने हिंदीव मराठी सिनेमा, टीवी और रंगमंच पर जो अमिट छाप छोड़ी है, वह आने वाले समय में भावी पीढ़ी को सदैव प्रेरित करती रहेगी।

(लेखक वरिष्ठ फिल्म अध्येता और सिने समीक्षक हैं)

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TAGS: Achyuta Potdar
OUTLOOK 21 August, 2025
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