Advertisement
22 April 2019

आंतकवाद से पीड़ित श्रीलंका को दिखानी होगी सख्ती

File Photo

21 अप्रैल रविवार को श्रीलंका में तीन चर्चों और तीन लक्जरी होटलों में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों में 290 लोग मारे गए हैं और 500 घायल हुए हैं। हमले के निशाने पर पर्यटकों थे। विस्फोट तीन कैथोलिक चर्च और तीन बड़े होटलों में हुए। चर्च में बम फटने के वक्त क्रिश्चियन धर्मावलंबी नेग्बेबो के सेंट सेबेस्टियन चर्च,  बटियोनोआ में जायोनी चर्च और कोलंबो में सेंट एंथोनीज चर्च में ईस्टर की प्रार्थना के लिए इकट्ठे हुए थे। विस्फोटों की तबाही देख कर हताहतों की संख्या बढ़ने की संभावना है। अस्पताल लगातार युद्ध स्तर पर काम कर रहे हैं ताकि गंभीर रूप से घायल लोगों को बचाया जा सके।

पूरे श्रीलंका में कर्फ्यू है। नियमित अंतराल से होने वाले हमलों के कारण देश हिल गया है और सभी जगह कड़ी निगरानी रखी जा रही है। इतने बड़े पैमाने पर हुए आतंकी हमले से पूरा देश सदमे में है। श्रीलंका 26 साल तक भयंकर गृहयुद्ध से पीड़ित रहा है। 1983 से शुरू हुआ गृहयुद्ध एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरन के खात्मे और तमिल टाइगर्स के निष्प्रभावी होने के साथ 2009 में खत्म हुआ था।

रविवार के बम हमले वास्तव में श्रीलंका के इतिहास में एक काला धब्बा है। अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि इस नृशंस हमले के पीछे कौन हो सकता है और निशाने पर श्रीलंका ही क्यों?

Advertisement

विश्लेषकों के पास कई तरह की थ्योरी है। सबसे पहली तो यही कि यह आईएसआईएस प्रेरित हमला हो सकता है क्योंकि हमले में आत्मघाती बम विस्फोटों का भी उपयोग किया गया है जो आईएसआईएस और इसके आतंकी सहयोगियों के तरीके की ओर इशारा करता है। कुछ सुरक्षा विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि संभवत: यह इस्लामी चरमपंथियों द्वारा न्यूजीलैंड के क्राइस्ट चर्च में हुईं हत्याओं का बदला लेने के लिए किया गया हो। क्राइस्ट चर्च में 50 से ज्यादा मुसलमानों को मार दिया गया था। मुस्लिम और ईसाई सांप्रदायिक तर्ज पर कभी-कभी टकराते रहे हैं और उनके संबंध सौहार्दपूर्ण और दोस्ताना नहीं रहे। हालिया हत्याओं और हिंसक रूप में हुई घटनाओं ने इस घृणा और उग्र व्यवहार को प्रकट किया है।

श्रीलंका पसंदीदा पर्यटन स्थल भी है और पर्यटकों की हत्या का मतलब होगा, विदेशियों को श्रीलंका आने से रोकने का स्पष्ट संकेत देना। आतंकवादियों ने शंगरील, सिनमम और किंग्सबरी जैसे शीर्ष और लोकप्रिय होटलों को सावधानीपूर्वक चुना, जहां ईस्टर पर चहल-पहल ज्यादा रहती है।

2002 में बाली में हुए बम विस्फोटों का तरीका भी यही था। बार-बार बाली आने वाले ऑस्ट्रेलियाई पर्यटक को रोकने, डराने के लिए वह हमला किया गया था। ईस्टर के दिन क्रिश्चियनों और विदेशी पर्यटकों की हत्या के बाद आईएसआईएस पर एक बार फिर बात होगी जिससे उन्हें प्रचार मिलेगा। संभव है रविवार की घटना के जरिए ईसाई और विदेशी पर्यटकों की हत्या कर आईएसआईएस अमेरिका और तमाम दूसरे पश्चिमी देशों के दावे के विपरीत यह संदेश देना चाहता हो कि आईएसआईएस और उसके सहयोगी अभी खत्म नहीं हुए हैं और उन्हें आसानी से खत्म किया भी नहीं जा सकता।

श्रीलंकाई अधिकारियों से मिल रही जानकारी से संकेत मिल रहे हैं कि हाल ही में ड्रग्स बेचने वाले स्थानीय लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई थी। हो सकता है कि उन लोगों में से किसी ने इस हमले को अंजाम देने में आतंकवादियों का साथ दिया हो। हालांकि इस खबर की पुष्टि बाकी है।

इस बीच, जहरान हाशिम नाम के एक व्यक्ति का नाम चर्च और होटल में हुई हत्याओं की साजिश रचने वालों में से एक के तौर पर सामने आया है। उसके ‘राष्ट्रीय तौहीद जमात’ नाम के एक इस्लामिक समूह से जुड़े होने का संदेह है। माना जाता है कि यह संगठन इस्लाम के प्रसार को सख्ती से प्रचारित करते हैं और धार्मिक रूप से असहिष्णु हैं। यह भी माना जाता है कि अपनी चरमपंथी विचारों को छुपाने के लिए यह समूह धर्मार्थ और परोपकारी गतिविधियों को मुखौटे की तरह इस्तेमाल करता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही इस मामले में और खुलासे होंगे। यह समूह पाकिस्तान के जमातुल दावा की तरह भी काम करता है जिसका काम परोपकारी है, लेकिन यह संदेह से परे नहीं है। यह बताना भी उचित है कि राष्ट्रीय तौहीद जमात ने 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस की निंदा की थी, जिसमें भारत के प्रति उसने तीखी प्रतिक्रिया दिखाई थी।

यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब जहरान हाशिम ने कोलंबो में भारतीय उच्चायोग के आस-पास बम विस्फोट करने की योजना बनाई थी। संभवत: भारतीय राजनयिक मिशन से निकलने वाले सतर्क खुफिया नेटवर्क को धन्यवाद देना चाहिए कि समय रहते इस योजना को विफल कर दिया गया। यह बताना उचित होगा कि श्रीलंकाई खुफिया एजेंसी ने 11 अप्रैल को ही हमले की संभावना के लिए आगाह किया था। इस बात की जांच करने की जरूरत है कि आखिर उस रिपोर्ट का क्या हुआ जो संभवतः इस तरह की सामूहिक और नृशंस हत्याओं को रोक सकती थी।

श्रीलंका में ईस्टर के त्यौहार के माहौल के बीच, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने ताजा सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए एक आपातकालीन बैठक की है। सोमवार की मध्य रात्रि से देश में आपातकाल लागू करने का फैसला किया है। संगठन चाहे कोई भी हो लेकिन आने वाले दिनों में चौकस नजर रखनी जरूरी है क्योंकि अंतरिम तौर पर यह भारत और श्रीलंका के बीच विकास के मद्देनजर एक नए और मजबूत खुफिया सहयोग के लिए उचित होगा, क्योंकि दोनों ही आतंकवादियों के निशाने पर हैं।

ताजा हमले से कट्टरपंथी तत्व ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। आईएसआईएस टूटने की कगार पर है। हमें अभी तक यह नहीं पता है कि कुछ स्वदेश लौटने वाले पहले से मौजूद स्वदेशी कट्टरपंथी ताकतों के लिए ताकत जुटा रहे हैं। इस पर कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है। पोप, भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने पहले ही इस घटना की निंदा की है। इसी तरह के कुछ अन्य बयान भी जारी हुए हैं। लेकिन समय की जरूरत है कि निगरानी बढ़ाई जाए, कड़ाई से काम किया जाए ताकि बुद्ध की धरती पर आतंकवाद का खात्मा हो। इस द्वीपीय देश ने दो दशकों से ज्यादा रक्तपात झेला है। अब यह देश यह सब और नहीं झेल सकता। इसके अलावा, कट्टरपंथियों की अच्छी खासी संख्या वाला एक और पड़ोसी द्वीप राष्ट्र मालदीव इस तरह की घटना के लिए एक लक्ष्य हो सकता है।

 

(लेखक सुरक्षा विश्लेषक, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी और मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: sri lanka, deadly terror attacks, 290 killed, sri lanka attack
OUTLOOK 22 April, 2019
Advertisement