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06 February 2019

पाकिस्तानी विदेश मंत्री की कश्मीर पर बेलगाम बयानबाजी और इमरान खान की चुप्पी

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक संप्रभु देश के खिलाफ निंदा अभियान चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एक बार फिर उन्होंने आंतरिक मामलों में दखल देने की नापाक हरकत की है।

विशेष तौर पर यह बात उस संदर्भ में है जब 2 फरवरी को हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को इस्लामाबाद से फोन आया। विश्वसनीय स्रोत इस बीच पुष्टि करते हैं कि अलगाववादियों के साथ इस तरह संपर्क स्थापित करने के पीछे की वजह कश्मीर समस्या को ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में एक उचित मंच पर पेश कर कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को उजागर करना और मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण को आगे बढ़ाना है।

यह कुरैशी का कश्मीर के हुर्रियत अलगाववादी नेताओं के लिए दूसरा टेलीफोनिक कॉल है। पहला फोन मुश्किल से चार दिन पहले गिलानी के सहयोगी मीरवाइज के लिए किया गया था। दोनों कॉल्स में समान बात यह थी कि कश्मीर में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ तथाकथित ज्यादती के बारे में विवरण तलाशने की कोशिश की गई, जो कि विरोधियों से मुकाबला करने में सबसे अच्छा माना जाता है।

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प्रधानमंत्री इमरान खान के करीबी, समझदार माने जाने वाले कुरैशी की कश्मीरी अलगाववादी नेतृत्व को लुभाने की कोशिशें, वह भी बहुत कच्चे तरीके से, हर समय संदेह की पुष्टि करती है कि वह अपने फोन पर बातचीत के दौरान इस तरह की अभद्र, अप्रिय और अनुशासनहीन टिप्पणी किसी के कहने पर करते रहे हैं। वह भी तब जब वह पूरी तरह से जानते हैं कि उनकी इस ‘बातचीत’ पर भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया आनी है। इसके बावजूद, नियमित अंतराल पर उनकी ओर से की गई बार-बार ऐसी हरकत भारतीय एजेंसियों को इस बात के लिए आश्वस्त करती है कि इन करतूतों के पीछे आईएसआई का हाथ है।

इस बीच, भारतीय विदेश सचिव ने पाकिस्तानी दूत को तुरंत साउथ ब्लॉक में बुलाया था और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने पर जोरदार विरोध किया।

पाकिस्तान अपने विरोधी भारत को लेकर पाकिस्तान के अखबारों में मीडिया कवरेज की श्रृंखला से साफ तौर पर दृढ़ लग रहा है, इसमें कथित तौर पर कराची का ‘डॉन’ भी शामिल है, जो कि कुरैशी की पहल का समर्थन करता है। कूटनीतिक रूप से, यह सबसे अधिक भयावह लग रहा है क्योंकि भारत-पाक सीमा में सुरक्षा दृश्य अशांत है। ऐसे में तालमेल के कोई संकेत नहीं हैं।

साथ ही, तालिबान के साथ दोहा वार्ता में हाल ही में स्व घोषित सफलता से पाकिस्तान उपलब्धि की भावना से भरपूर होना चाहिए, भले ही अल्पकालिक हो।

इससे भी अहम बात यह है कि एक महत्वपूर्ण ब्रीफिंग के दौरान यूएस इंटेलिजेंस ने 29 जनवरी को सचेत किया है। यूएस इंटेलिजेंस ने इस साल मई में विशेष रूप से भारतीय संसदीय चुनावों और साथ ही जुलाई में होने वाले अफगान चुनावों के दौरान इस क्षेत्र में उभर रहे एक गंभीर सुरक्षा परिदृश्य की चेतावनी दी है।

ये सभी संकेतक पाकिस्तानी विदेश मंत्री कुरैशी के किसी भी हस्तक्षेप का गुणगान नहीं करते हैं। कुरैशी इस मोड़ पर ज्यादा आवेश में हैं जब भारत के साथ संयम और शांत कूटनीति की जरूरत है।

इसके अलावा, हमने अभी तक प्रधानमंत्री इमरान खान की कोई टिप्पणी नहीं सुनी जो अपने विदेश मंत्री पर लगाम लगाने के लिए हो ताकि द्विपक्षीय संबंधों को और खराब करने के किसी भी कदम से बचा जा सके। दूसरी ओर, 2 फरवरी को मुल्तान की ओर से कुरैशी के बयान से बचने और टेलीफोन कॉल को मुद्दा न बनाने के लिए एक बचाव योग्य बयान दिया गया था। तो बयानबाजी पर लड़ाई की रेखाएं किसी भी पिघलाव का स्पष्ट संकेत नहीं हैं।

अफसोस की बात है कि कश्मीर में रहने वाला गिलानी, दिल से एक कट्टर पाकिस्तानी है, जिसने हाल ही में पाकिस्तान को कश्मीरियों के 'राजनैतिक, राजनयिक और नैतिक समर्थन' के लिए धन्यवाद दिया।

इन सभी घटनाक्रमों के बीच, भारत को अपना ध्यान आकर्षित करने के लिए इस्लामाबाद को डिक्टेट जारी करने में सक्रिय भागीदारी के लिए अमेरिका पर हावी होने की जरूरत है। ट्रम्प ने हाल फिलहाल में ट्वीट किया कि पाकिस्तान ने आतंक को नियंत्रित करने कोई सहयोग नहीं किया। शायद एक मजबूत राजनीतिक संदेश या संकेत है जिसकी दरकार थी।

इसके साथ ही, अकेले अमेरिका पर निर्भर होने के अलावा, भारत को पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए और बलूचिस्तान और पीओके में जारी पाकिस्तानी अत्याचारों को बेनकाब करने के लिए एक आक्रामक मीडिया वॉर में शामिल होना चाहिए।

(लेखक सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं।)

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TAGS: Agrresive Pakistani rhetoric, Kashmir, Pakistani foreign Minister, पाकिस्तानी विदेश मंत्री, कश्मीर, आक्रामक पाकिस्तानी बयानबाजी
OUTLOOK 06 February, 2019
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