Advertisement
12 December 2019

विभाजन और तनाव पैदा करने की साजिश

PTI

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता संशोधन विधेयक को भारत के सदियों पुराने आत्मसात करने वाले और मानवीय मूल्यों के अनुरूप बताते हुए सराहना की है। लेकिन वास्तव में यह सांप्रदायिक विभाजन और तनाव पैदा करने की साजिश है। भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने और शहादत देने की विरासत पर गर्व करने वाले असम के लोगों के लिए यह विश्वासघात है। आजादी के नाम पर उन्होंने अपनी स्वतंत्र पहचान और संस्कृति खोने का सौदा नहीं किया था। बांग्ला भाषी लोगों की पहचान तो पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में सुरक्षित है, लेकिन असम में उनकी संख्या तेजी बढ़ने से हमारी (असम के लोगों की) भाषा और संस्कृति खतरे में पड़ सकती है।

हाल में एक वामपंथी नेता ने बहुत रोचक तथ्य का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि सरकार ने असमियों को बार-बार यह आश्वासन दिया कि 31 दिसंबर 2014 के बाद बांग्लादेश से आने वाले किसी भी हिंदू को नागरिक के तौर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा। उस वामपंथी नेता ने बताया कि इस तारीख की कोई कानूनी वैधता नहीं है, क्योंकि नागरिकता संशोधन विधेयक में इसका कहीं उल्लेख ही नहीं है। यह तारीख संयुक्त सचिव स्तर के एक अधिकारी की तरफ से जारी अधिसूचना में है, जिसे कभी भी बदला या हटाया जा सकता है।

नागरिकता संशोधन विधेयक में जिन दो बिंदुओं पर विशेष जोर दिया गया है, वह सर्वविदित है। पहला, इससे नागरिकता देने की प्रक्रिया स्वांग बन कर रह जाएगी और वह हिंदू राष्ट्र बनाने के भारतीय जनता पार्टी के गोपनीय एजेंडा के अनुरूप होगी। दूसरा, मुस्लिम समुदाय के प्रति अविश्वास का माहौल बनेगा और वे अलग-थलग पड़ जाएंगे। दोनों ही बिंदु संवैधानिक सिद्धांतों को नकारने वाले हैं। देश की संप्रभुता ऐसी पार्टी के हाथों में पहुंच गई है जो राष्ट्र का स्वरूप बदलना चाहती है।

Advertisement

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आलोचनाओं का जवाब देते हुए इस विधेयक के बचाव में जो तर्क दिए हैं, वे खेदजनक हैं। वह आरएसएस का वही पुराना और थका हुआ तर्क देते हैं कि कांग्रेस की धोखेबाजी के कारण देश का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था, और पाकिस्तान में रहने वाले गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को न्याय के लिए 70 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा। स्पष्ट और सीधा सच यह है कि जिस द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान बना, उसे कांग्रेस ने कभी स्वीकार नहीं किया। बंटवारे के बाद जो भी हिंदू और सिख पाकिस्तान से आना चाहते थे, उन्हें 1960 के दशक के शुरू में ही भारत में बसाया गया। इसके बाद और लोग समय-समय पर सांप्रदायिक हिंसा के कारण भारत आए। बहुत से लोग अब भी अपने पूर्वजों की जमीन से अलग होने के इच्छुक नहीं हैं। ऐसे लोगों को अब सीमा पार से आने के लिए उकसाने का कोई मतलब नहीं है। हालांकि, भारत को पाकिस्तान से यह मांग करने का पूरा अधिकार है कि वह अपने यहां अल्पसंख्यकों को खतरों से सुरक्षा प्रदान करे।

आरएसएस का तर्क है कि भारत हिंदुओं का स्वाभाविक होमलैंड है। लेकिन संविधान सभा में नागरिकता पर बहस के दौरान ही इस तर्क को खारिज कर दिया गया था। संविधान के सिद्धांतों के बारे में अमित शाह का सबसे खराब तर्क यह है कि अनुच्छेद 14 में सबके साथ समान व्यवहार की जो गारंटी दी गई है, वास्तव में अल्पसंख्यकों को विशेष रियायतें देने (जैसे उन्हें अपने शिक्षण संस्थान खोलने की इजाजत देना) के कारण वह खत्म हो जाती है। उनकी दलील है कि कुछ समूहों को संविधान के दायरे में ज्यादा तरजीह मिल सकती है। वास्तव में देखा जाए तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे वर्गों को आरक्षण की जो व्यवस्था की गई है, वह समानता सुनिश्चित करने के लिए है। हमारे संविधान निर्माता जानते थे कि बराबरी के लिए अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की निरंकुशता से बचाना भी जरूरी है। लेकिन आरएसएस की विचारधारा पर पेश किया गया यह विधेयक बहुसंख्यकों की निरंकुशता को बढ़ावा देगा।

(लेखक स्तंभकार और गुवाहाटी स्थित मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: citizenship amendment bill 2019
OUTLOOK 12 December, 2019
Advertisement