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06 June 2017

नए दौर में दलित पॉलिटिक्स: जाति पर जोर से दलित एजेंडा हुआ फीका

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वर्तमान दलित राजनीति की विडंबना यह है कि उसके पास अब कांशीराम जैसा विजनरी, सर्वसुलभ, दूरदृष्टि वाला और अपने समुदाय के प्रति हद दर्जे तक समर्पित तथा अवसरों की पहचान कर सकने वाला कालजयी व्यक्तित्व नहीं है। दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बसपा अब बहुजन की नहीं, सर्वजन की पार्टी है। आगे जा कर वह सिर्फ परिजन पार्टी बनने की दिशा में चल पड़ी है।

दलितों के सामाजिक आंदोलन भी निरंतर बिखराव के शिकार हैं। बामसेफ विचारधारा के आधार पर एक बड़ा काडर आधारित संगठन माना जाता है, मगर उसके कई धड़े हो गए हैं और वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही जुटे रहते हैं। जातियां मजबूत हो रही हैं। जाति विनाश का सपना कहीं पीछे छूटता लग रहा है। पूरे देश में दलितों को उप-जातियों में बांटने की सुनियोजित कोशिश चल रही है।

दलितों के भीतर उद्यमी वर्ग भी पैदा हुआ है, जिसने डिक्की जैसे संगठनों के जरिए दलित पूंजीवाद की भरपूर वकालत की थी। इस दलित पूंजीवाद का विलय दक्षिणपंथी संघी मनुवाद में होता नजर आ रहा है। डिक्की के मुखिया मिलिंद कांबले का संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ मंच साझा करना और आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य के अंक का लोकार्पण करना दलित पूंजीवाद का ब्राह्मणवादी मनुवाद के समक्ष घुटने टेकने जैसा है। वैसे बाजारवाद और मनुवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

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संघ की समरसता के चश्मे चढ़ाए दलित संगठन तेजी से समाज में अपनी जगह बना रहे हैं। उनको फंड, झंडा, डंडा, एजेंडा सब हिन्दुत्ववादी संगठनों से मिला हुआ है। उनका कुल जमा काम यह है कि दलित हितों के पक्ष में आ रही चेतना को पलट दिया जाए। इनमें सर्वाधिक पढ़े-लिखे मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा दलित शामिल हैं।

आरक्षण के विरुद्ध इतना विषाक्त वातावरण कभी नहीं था, जितना आज है। ऊंची जातियां आरक्षण को ही मिटाने पर जोर दे रही हैं। उनको डर है कि कहीं दलित-आदिवासी समुदाय निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग पर जोर न देने लगे। ऊंची जातियों की यह मांग भी है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण कानून को भी खत्म किया जाए।

बढ़ती बेकारी और सोशल मीडिया के युग में जवान होती दलित पीढ़ी अत्याचारों का स्थायी समाधान चाहती है। इसलिए भीम आर्मी से लेकर भीम सेना, आंबेडकर सेना, दलित पैंथर जैसे कई उग्र समूह उभर रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और दलित एक्टिविस्ट हैं)

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TAGS: Dalit politics, new era, Dalit, agenda, faded, caste, emphasis
OUTLOOK 06 June, 2017
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