Advertisement
26 November 2022

प्रथम दृष्टि: ब्लू टिक की महिमा

“किसी को ब्लू टिक मिले न मिले, ट्विटर को यह तो आश्वस्त करना ही चाहिए कि कोई अकाउंट नकली न हो। व्यावसायिक लक्ष्यों से इतर मस्क अगर ट्विटर को विचार आदान-प्रदान का प्रभावी और पारदर्शी वैश्विक मंच बना दें तो बेहतर होगा”

कुछ महीने पहले एक युवा सहकर्मी ने मुझसे कहा, “सर, मुझे ट्विटर पर ब्लू टिक मिल गया। मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा।” मैंने कहा, “बधाई हो, तब तो तुम्हें पेंशन भी मिलेगी?” कटाक्ष को नजरअंदाज करते हुए उसने बताया कि इसके बड़े फायदे हैं। इससे अकाउंट वेरिफाइड हो जाता है, जिससे न सिर्फ आपके फॉलोअर की संख्या बढ़ती है, बल्कि आपके पोस्ट अधिक लोगों तक पहुंचते हैं। “सर, आप क्यों नहीं ब्लू टिक के लिए अप्लाई करते हैं? आपको तो आसानी से मिल जाएगा,” उसने पूछा। मैंने ‘सोचूंगा’ कहकर उसे टाल दिया। लेकिन, मुझे एहसास हुआ कि सोशल मीडिया में कैसे ‘ब्लू टिक’ स्टेटस सिंबल बन चुका है। ट्विटर पर दरअसल दो प्रजातियां पाई जाती हैं: ब्लू टिक धारी खास लोग और ब्लू टिक से महरूम आम आदमी। इसलिए जब किसी आम आदमी को ब्लू टिक का तमगा मिलता है तो उसके चेहरे पर वैसी ही चमक आती है जैसा मैंने अपने सहकर्मी के चेहरे पर उस दिन देखी। ज्यों ही वह गर्व से इसकी घोषणा करता है, उसके ट्विटर हैंडल पर बधाइयों का तांता लग जाता है, मानो इससे उसके सोशल मीडिया के कुलीन वर्ग में जाने का मार्ग प्रशस्त हो गया हो। 

दिलचस्प यह है कि ब्लू टिक देने की ट्विटर की कोई समान प्रक्रिया नहीं रही है। हजार फॉलोअर वाले मेरे सहकर्मी को तो यह भले ही आसानी से मिल गई हो लेकिन कुछ ऐसी भी स्वनामधन्य हस्तियां हैं जिन्हें हजारों-लाखों फॉलोअर होने के बावजूद यह सम्मान मयस्सर नहीं हुआ है। हताश होकर वे अक्सर ट्विटर की कथित पक्षपातपूर्ण नीतियों के खिलाफ आग उगलते रहते हैं। एक बार तो ट्विटर ने ऐसे ही एक वरिष्ठ पत्रकार की ब्लू टिक की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि वे इसके लिए जरूरी अहर्ताएं पूरी नहीं करते। आहत होकर उन्होंने उसके खिलाफ एक लंबा व्यंग्य लिखकर ट्विटर को खूब खरी-खोटी सुनाई। जैसे ही उनका वह लेख सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, अगले ही दिन उन्हें ब्लू टिक से नवाजा गया।

Advertisement

शायद इसलिए ब्लू टिक मिलने वाले अपने आप को भाग्यशाली समझते रहे हैं और इसकी ख्वाहिश रखने वालों की संख्या अभी भी लाखों में है। ऐसी परिस्थिति में अगर ट्विटर के नए आका इलॉन मस्क ने ब्लू टिक के बदले प्रतिमाह आठ अमेरिकी डॉलर वसूलने की योजना बनाई है तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। मस्क आखिरकार विशुद्ध व्यवसायी हैं, जिनके लिए सिर्फ नफा-नुकसान मायने रखता है। वे लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए किसी कल्याणकारी राज्य के प्रतिनिधियों के अगुआ तो हैं नहीं कि उन पर सामाजिक मीडिया की खाई पाटने के लिए मुफ्त में ब्लू टिक देने की बाध्यता हो। ब्लू टिक उनके लिए महज एक प्रोडक्ट है और अगर इसे हासिल करने के बदले वे किसी को अपना बटुआ हलका करने को कहते हैं तो उसमें सैद्धांतिक रूप से कोई बुराई नहीं दिखती। ‘व्यवसाय धर्म’ में यही तो उनकी अटूट आस्था है, जो उन्हें दुनिया का सबसे अमीर शख्स बनाती है। शायद उन्हें भारतीय उदाहरणों से यह भी पता हो, कोई भी सुविधा अगर मुफ्त मुहैया कराई जाती है तो लोग उसका महत्व नहीं समझते हैं, चाहे वह शिक्षा हो या स्वास्थ्य। शायद उनका भी मानना हो कि लोग किसी सुविधा को तभी संजीदगी से लेते हैं जब उसके बदले उन्हें कुछ कीमत चुकानी पड़े। भारत के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर की मुफ्त सुविधा होने के बावजूद अधिकतर लोग भारी-भरकम फीस देकर निजी क्लिनिक में ही जाना पसंद करते हैं। सरकारी स्कूल में मुफ्त शिक्षा और भोजन मिलने के बावजूद वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं। शायद उन्हें लगता हो कि मुफ्त में मिली सेवा गुणवत्तापूर्ण नहीं होती।  

आज ट्विटर के ब्लू टिक के लिए प्रतिमाह आठ डॉलर लेने के निर्णय का भारी विरोध हो रहा है। उनमें हजारों फॉलोअर वाले कुछ नामचीन लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने यहां तक ऐलान कर दिया है कि वे आठ डॉलर मस्क के खजाने में देने के बजाय अपने ब्लू टिक को त्यागना पसंद करेंगे। लेकिन, यह देखना दिलचस्प होगा कि उनमें से कितने लोग ऐसा कर पाते हैं। अधिकतर लोगों के लिए ऐसा करना मुमकिन न हो पाएगा क्योंकि ऐसा करने से उनके खास से आम बनना का खतरा होगा। अगर वाकई ब्लू टिक से फॉलोअर की संख्या बढ़ती है, तो ऐसा करना उनके लिए और भी कठिन होगा। सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की कमी नहीं जिनके लिए ब्लू टिक शक्ति और प्रतिष्ठा का प्रतीक है। उनके लिए आठ डॉलर महंगी फीस नहीं होनी चाहिए। आभासी दुनिया में घंटों स्वच्छंद विचरण करने वाले कई सूरमा तो जीवन भर के लिए पैसे देने को तैयार हैं। अगर ट्विटर पर कुछ विशेष रियायत के बदले उसकी कुछ कीमत चुकानी पड़े तो इसमें कोई बुराई नहीं, बशर्ते यह ऐसा प्लेटफार्म बने जहां किसी को छद्म नाम से नफरती एजेंडा चलाने की अनुमति न हो। किसी को ब्लू टिक मिले न मिले, ट्विटर को यह तो आश्वस्त करना ही चाहिए कि कोई अकाउंट नकली न हो। व्यावसायिक लक्ष्यों से इतर मस्क अगर ट्विटर को विचार आदान-प्रदान करने का प्रभावी और पारदर्शी वैश्विक मंच बना दें तो बेहतर होगा।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Editorial Prathamdrishti, Twitter, Blue Tick, Giridhar Jha
OUTLOOK 26 November, 2022
Advertisement