Advertisement
06 September 2018

तेल में फिसलती सरकार

इन दिनों देश में कई महत्वपूर्ण मसलों पर बहस चल रही है। उम्मीद है, यह हमारे लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता को मजबूती देगी। लेकिन इस सबके बीच डीजल और पेट्रोल की आसमान छूती कीमतों ने आम आदमी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जैसे ये कीमतें चढ़ रही हैं, वह दिन दूर नहीं जब पेट्रोल का दाम 100 रुपये प्रति लीटर पार कर जाए। कई राज्यों में डीजल के दाम 80 रुपये प्रति लीटर पहुंचने के करीब हैं, जो अधिक चिंताजनक है। आखिर डीजल का कृषि, ट्रांसपोर्ट और कारोबारी और उत्पादन गतिविधियों के लिए ज्यादा उपयोग होता है। इसके महंगा होने से तमाम वस्तुओं और उत्पादों की लागत में बढ़ोतरी और महंगाई दर में इजाफा तय है। यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि एक वक्त इन उत्पादों की गिरती कीमतों को अपनी खुशनसीबी से जोड़ने वाले राजनेता आज चुप हैं। वे यह संकेत भी दे रहे हैं कि करों में कटौती के जरिए उपभोक्ताओं को राहत देने का इरादा भी नहीं रखते क्योंकि उनको देश की राजकोषीय सेहत को दुरुस्त रखना है। भले ही दावे बेहतर आर्थिक प्रबंधन और फैसलों में सख्ती के किए जाएं लेकिन सच्चाई यह है कि इस मोर्चे पर संकट बढ़ता जा रहा है और नीतिगत संतुलन बनता नहीं दिख रहा है। इसीलिए कभी केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि पेट्रोलियम उत्पादों के जीएसटी के तहत लाने का शिगूफा छोड़ता है तो कोई और कोई नीति लाने की बात करता है।

बड़ा सवाल यह है कि यह स्थिति सुधर क्यों नहीं रही है। इसकी वजह सरकार की लालच और वैश्विक भू-राजनैतिक मसले हैं। जहां तक सरकार की लालच की बात है, जब दुनिया के बाजार में कच्चे तेल के दाम गिरकर 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे आ गए तब भी सरकार ने अपनी कमाई बढ़ाई। इससे उसे सालाना डेढ़ लाख करोड़ रुपये के करीब अतिरिक्त राजस्व प्राप्त हुआ। उत्पाद शुल्क 11 बार बढ़ाया गया। उसमें केवल एक बार कटौती की गई। इसके साथ ही, राज्यों में वैट की दरें अलग-अलग हैं जो पेट्रोल-डीजल की कीमतों को अलग बनाए हुए हैं। लेकिन खास बात यह है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा जिन प्रदेशों में भी सत्ता में है, वहां पेट्रोल-डीजल सबसे महंगे हैं। इसमें गोवा अपवाद है, जहां वैट की दरें कम हैं। जाहिर है, जो रवैया केंद्र सरकार का है वही भाजपा शासित राज्यों का भी है।

अगस्त 2013 में कच्चे तेल की कीमत जब 106.57 डॉलर प्रति बैरल थी, तो हमारे देश में पेट्रोल की कीमत 63.09 रुपये प्रति लीटर थी। अब सवाल उठता है कि कच्चे तेल के दाम अब भी काफी कम हैं तो उपभोक्ता को ज्यादा दाम क्यों चुकाने पड़ रहे हैं। इसकी दो वजहे हैं। एक है केंद्र सरकार का उत्पाद शुल्क और दूसरी रुपये की गिरती सेहत। उत्पाद शुल्क जुड़ने के बाद राज्यों का वैट जुड़ता है। रुपये की गिरती विनिमय दर के चलते कच्चे तेल का आयात महंगा हो रहा है। पांच सितंबर को रुपया 71.95 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच गया और इसमें गिरावट की आशंका बनी हुई है। इससे केवल तेल ही नहीं, बाकी आयात भी महंगे होते जा रहे हैं।

Advertisement

असल में सरकार के तमाम दावों के बावजूद निर्यात में तेजी नहीं आ रही है जबकि आयात बढ़ता जा रहा है। अकेले मोबाइल फोन के आयात पर हम 23 अरब डॉलर खर्च कर रहे हैं। ई-कामर्स कंपनियां घरेलू उत्पादकों के बजाय जहां सस्ता मिल रहा है वहां से खरीदारी कर रही हैं। यह अजीब दुष्चक्र बन गया है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों से उत्पादन महंगा होता जा रहा है जो हमारे निर्यात को घटा रहा है। विकसित देशों में संरक्षणवादी नीतियां भी निर्यात घटा रही हैं। ऐसे में रुपये पर दबाव तो रहेगा ही।

असल में नवंबर, 2016 की नोटबंदी के फैसले से खेल ज्यादा बिगड़ना शुरू हुआ। इसने असंगठित क्षेत्र को बर्बाद कर दिया। असंगठित क्षेत्र संगठित क्षेत्र के पूरक के रूप में काम करता रहा है और उसके चलते संगठित क्षेत्र की लागत कम रही है। उसके बाद बड़ी मार जीएसटी से पड़ी। उसने भी इस क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया। जमीनी सच्चाई को स्वीकार करके नीतियां बनतीं तो ज्यादा बेहतर रहता। अब पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती कीमतें आर्थिक गतिविधियों को संकुचित करेंगी। इससे निवेश के लिए जरूरी वित्तीय संसाधन महंगे होंगे। यह विकास दर को प्रभावित करेगा। रोजगार के अवसर कम करेगा। इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए सरकार कौन से नीतिगत कदम उठाती है, यह देखना ज्यादा अहम है।

हालांकि, पिछले दिनों चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की जीडीपी की विकास दर 8.2 फीसदी रहने के आंकड़े आए हैं। यह कई साल में सबसे ज्यादा है। लेकिन, कहीं यह असंगठित क्षेत्र पर संगठित क्षेत्र की बढ़ोतरी तो नहीं है जो जमीनी स्थिति को सुधारने के बजाय कमजोर कर रही है, क्योंकि इस दर को राजस्व के आंकड़े सपोर्ट नहीं करते हैं। अगर करते हैं तो सरकार को पेट्रोल और डीजल पर करों को कम करने से परहेज नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोक कल्याणकारी सरकार का जिम्मा नागरिकों के जीवन को बेहतर और सुगम करना ही तो होता है। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: Petrol, price, disel, hike, government, BJP, GDP, पेट्रोल, कीमत, डीजल, भाजपा, जीडीपी
OUTLOOK 06 September, 2018
Advertisement