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17 March 2019

दक्षिणपंथी समूहों का नस्लवाद और क्राइस्टचर्च मस्जिद पर हमले के मायने

File Photo

15 मार्च को क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में 'ब्लैक फ्राइडे' था। जब मुसलमान एक खूबसूरत मस्जिद के अंदर प्रार्थना कर रहे थे, उनमें से 49 को मुस्लिमों को मौत के घाट उतार दिया था। परिष्कृत हथियारों से घटना को अंजाम देने वाले शख्स ने घटना का वीडियो भी बनाया। इससे पूरी दुनिया चकित रह गई।

हत्यारा ब्रेंटन टैरेंट (28) एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है, जिसके दक्षिणपंथी समूहों से संबंध हैं। वह नस्लवादी है, जिसने दावा किया कि वह यूरोप में मुसलमानों द्वारा गोरे लोगों की हत्या का बदला ले रहा है। बदले की इस घटना से पूरा विश्व हिल गया लेकिन चार लाख की आबादी वाले न्यूजीलैंड के इस सुंदर शहर के लोग अब भी सदमे में हैं। शोक और सहानुभूति जताई जा रही है और दुनिया भर में मुस्लिम समुदाय पीड़ित परिवारों के समर्थन में फंड इकट्ठा कर रहे हैं।

इस घटना के शिकार हुए लोग मिस्र, बांग्लादेश, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया और कई देशों के थे, जिन्हें लगा कि क्राइस्टचर्च जघन्य अपराधों से दूर एक सुरक्षित जगह है। यह सोचना गलत साबित हुआ और इससे इंटेलीजेंस पर और उदारवादी गन कानून पर सवाल खड़े हुए, जिसकी वजह से 30 साल से कम का एक युवक ऐसा जघन्य अपराध कर पाया।

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ऐसी रिपोर्ट हैं, जिनसे पता चलता है कि ऑस्ट्रेलिया में धुर दक्षिणपंथी समूह मौजूद हैं जिन पर आरोप है कि वे सालों से इस्लाम के खिलाफ घृणा फैला रहे हैं और अल्पसंख्यक मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं। किसी अन्य ब्लैक फ्राइडे को रोकने के लिए और व्यापक शांति और सुरक्षा की भावना के लिए इन पर नजर रखी जानी जरूरी है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच आपसी सहयोग से ऐसा हो सकता है।

क्राइस्टचर्च मस्जिद की घटना का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि इससे मुस्लिम विरोधी समूह शरणार्थियों को लेकर बनाए गए लिबरल कानून का फायदा उठा सकते हैं और एक और आतंकवादी घटना को अंजाम दे सकते हैं।

उन्हें लगता है कि वे कुछ खोएंगे नहीं और इससे उन्हें मीडिया के द्वारा प्रसिद्धि मिलेगी। लेकिन, ब्रेंटन टैरेंट की हेकड़ी से दूसरे सर्वोच्चतावादी समूहों को फलने-फूलने प्रोत्साहित करेगी। इससे सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह बारीकी से निगरानी रखे और मानव जीवन को होने वाले नुकसान को कम करे। एक संभावना यह भी है कि कुछ मुस्लिम शासित देश हिंसा के बदले हिंसा को प्रोत्साहित करें। ऐसे में बार-बार होने वाली हिंसा से दुनिया रहने लायक नहीं बचेगी। इस बीच हमें 5 अप्रैल को होने वाली कोर्ट की सुनवाई का इंतजार करना चाहिए।

सर्वाच्चतावादियों के अंदर नफरत इतनी गहरी पैठ बना चुकी  है कि ब्रेंटन के पास 74 पेजों का मैनिफेस्टो था, जिसमें साफ तौर पर उसकी घृणा और मुसलमानों को उद्वेलित करने वाली बातें थीं। घाव ताजे हैं और यह समय संवेदनशील हैं। धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर गहराई और बारीकी से इसे हैंडल करने की जरूरत है और अब समय आ गया है।

इस दौरान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की दक्षिणपंथी ताकतें मस्जिद की घटना के बाद हो रही प्रगति पर सावधानीपूर्वक नजर रख रहे हैं। सीनेटर फ्रेसर ऐनिंग (क्वींसलैंड) ने पहले से तैयार स्क्रिप्ट में हत्याओं की निंदा तो की लेकिन उसी क्रम में हत्या का कारण शरणार्थी कार्यक्रम को ठहरा दिया, जिसकी वजह से मुस्लिम शरणार्थी न्यूजीलैंड आ रहे हैं। इस तरह की टिप्पणियों से सांप्रदायिक माहौल बिगड़ता है और शांति के प्रयासों को धक्का लगता है। अपनी बातों में सीनेटर ने यह भी कहा कि इस्लाम दूसरे धर्मों जैसा नहीं है। यह फासीवाद के बराबर है और सिर्फ इसलिए कि घटना के शिकार इस्लाम को मानने वाले थे, उन्हें आरोपमुक्त मत कीजिए।

कट्टर ताकतों पर नजर रखे जाने की जरूरत है। क्राइस्टचर्च घटना के बाद भारतीय इंटेलीजेंस और सुरक्षा एजेंसियां अब तक अवांछनीय चीजों को लेकर सजग हैं। हो सकता है कि और सजगता का आह्वान किया जाए, जिससे समाज में धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण न हो।

(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं और सुरक्षा विश्लेषक हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

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TAGS: mass killings in Christchurch mosque, supremacy of right wing
OUTLOOK 17 March, 2019
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