मोदी कैबिनेट का मेकओवर: तीन साल का सबसे बड़ा रिपोर्ट कार्ड
मोदी सरकार के तीसरे कैबिनेट विस्तार में चार मंत्रियों को प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बनाया जबकि 9 नए राज्यमंत्रियों को शामिल किया है, जिनमें चार पुराने अफसर हैं। छह मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी कर दी गई जबकि कई मंत्रियों को इधर से उधर किया गया है।
इस पूरे फेरबदल में सबसे अप्रत्याशित फैसला निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बनाया जाना रहा। शायद पहली बार किसी राज्यमंत्री को सीधे रक्षा मंत्रालय की बागड़ोर सौंपी गई है। वे देश की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी के पास रक्षा मंत्रालय का प्रभार था। सीतारमण को रक्षा मंत्री बनाकर पीएम मोदी ने एक बार फिर लीक से हटकर फैसले लेने की क्षमता का सबूत दिया है। बेशक, इससे महिलाओं और दक्षिण भारत में अच्छा संदेश जाएगा।
रेल मंत्रालय में नाकाम रहे सुरेश प्रभु की जगह पीयूष गोयल को रेल मंत्री बनाया गया है। प्रभु को अब उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन जो मंत्री रेल में असफल रहा उसे उद्योग और वाणिज्य जैसा अहम मंत्रालय क्यों दिया गया, समझना मुश्किल है। इस्तीफे की अटकलों के बाद उमा भारती की कुर्सी बच गई है, लेकिन उनसे जल संसाधन और गंगा वाला मंत्रालय लेकर नितिन गडकरी को दिया गया है।
अरुण जेटली के पास वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय बरकरार हैं। जबकि स्मृति ईरानी कपड़ा मंत्रालय के साथ-साथ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय मंत्री बनी रहेंगी। इस तरह उनका रुतबा कायम है। राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज के मंत्रालयों में कोई फेरबदल नहीं हुआ है। निर्मला मोदी सरकार में अब तीन अहम पदों पर महिलाएं हैं।
जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी ने मंत्रियों के प्रदर्शन और मंत्रालयों की प्रगति का बारीकी से मूल्यांकन करने के बाद ही मंत्रियों की छंटनी, नियुक्ति और प्रोन्नति की है। इसकी झलक कैबिनेट से बाहर किए गए मंत्रियों और मंत्रालयों के फेरबदल में साफ दिखती है। जाहिर है कि कौशल विकास, रेल, जल संसाधन, गंगा सफाई और श्रम मंत्रालयों के कामकाज से प्रधानमंत्री संतुष्ट नहीं हैं। जबकि ऊर्जा, कोयला, पेट्रोलियम, सड़क परिवहन और वाणिज्य मंत्रालय में बेहतर करने वाले मंत्रियों को प्रमोट किया गया है।
हालांकि, कांग्रेस का आरोप है कि अगर यह प्रदर्शन के आधार पर फेरबदल होता तो सबसे पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली को हटाया जाना चाहिए था, जिन्होंने नोटबंदी जैसा गलत फैसला लिया। लेकिन सब जानते हैं कि सियासी और नीतिगत असफलताओं से अरुण जेटली के कद पर कोई असर नहीं पड़ता। वैसे यह इम्तिहान भी पीएम मोदी का था और रिपोर्ट कार्ड भी उन्होंने ही जारी किया है। आत्म-मूल्यांकन इसी को कहते हैं!
नौ नए मंत्रियों और पदोन्नत हुए चार मंत्रियों समेत कम सेे कम 23 मंत्रियों के मंत्रालयों में फेरबदल किया गया है। इस लिहाज से यह काफी व्यापक बदलाव है।
छह मंत्रियों की छुट्टी
मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद स्पष्ट हो गया कि कलराज मिश्र, राजीव प्रताप रूडी, संजीव बालियान, बंडारू दत्तात्रेय, फग्गन सिंह कुलस्ते और महेंद्र नाथ पांडेय मोदी कैबिनेट से बाहर हो गए हैं। पांडेय को यूपी भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया है जबकि बाकी मंत्रियों की विदाई के पीछे इनके प्रदर्शन को वजह माना जा रहा है।
रोजगार के मोर्चे पर सरकार चौतरफा हमलों से घिरी हुई है, जिसकी गाज कौशल विकास मंत्री रहे राजीव प्रताप रूडी पर गिरी। श्रम मंत्रालय में बंडारू दत्तात्रेय और एमएसएमई में कलराज मिश्र खास छाप नहीं छोड़ पाए। स्वास्थ्य मंत्रालय में राज्यमंत्री फग्गन सिंह का भी यही हाल रहा। इनके हटाए जाने का स्पष्ट संदेश है कि कैबिनेट में प्रदर्शन न करने वाले मंत्रियों के लिए कोई जगह नहीं है। संजीव बालियान को पहले कृषि मंत्रालय से हटाकर जल संसाधन मंत्रालय में लाया गया था। अब यहां से भी उनकी छुट्टी कर दी गई है।
मंत्रिमंडल से 6 मंत्रियों को हटाए जाने को सरकार की विफलता करार देते हुए कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि यह सरकार की नाकामी का सबसे बड़ा सबूत है।
चार पूर्व नौकरशाहों समेत 9 नए चेहरों को मौका
- मोदी कैबिनेट में 9 नए चेहरों को जगह दी गई है। इनमें 4 पूर्व नौकरशाह हरदीप सिंह पुरी, सत्यपाल सिंह, आरके सिंह और अल्फोंस कन्नन्थानाम को राज्यमंत्री के तौर पर शामिल है। सत्यपाल सिंह के अलावा बाकी तीनों को स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। हरदीप पुरी और अल्फोंस फिलहाल संसद के किसी सदन के सदस्य नहीं हैं। कैबिनेट में इन पूर्व नौकरशाहों की एंट्री सरकार में टैलेंट और अनुभव की भरपाई करने की कोशिश लगती है। खांंटी नेताओं के लिए यह खतरे की घंटी है।
इससे सरकार और भाजपा में टैलेंट की कमी उजागर हुई है। कैबिनेट में कई पुराने अफसरों की एंट्री को लेकर सोशल मीडिया में "अबकी बार, अफसरों की सरकार" की गूंज रही। हालांकि, इनमें से किसी पूर्व नौकरशाह को भी उनकी विशेषज्ञता वाला मंत्रालय नहीं दिया गया है।
बुलडोजर मैन अल्फोंस को पर्यटन और सूचना तकनीक, मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को मानव संसाधन विकास और जल संसाधन, विदेश मामलों के विशेषज्ञ हरदीप सिंह पुरी को शहरी विकास और पूर्व गृह सचिव आरके सिंह को ऊर्जा मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है। मतलब, मोदी सरकार पूर्व नौकरशाहों के अनुभव का लाभ तो उठाना चाहती है, लेकिन उनकी विशेषज्ञता से इतर मंत्रालयों में!
- अल्फोंस का केंद्र में मंत्री बनना केरल में भाजपा के काम आएगा। जबकि संजीव बालियान की जगह सत्यपाल सिंह को मंत्री बनाकर पश्चिमी यूपी के समीकरण साधने की कोशिश की गई है।
जमीनी नेताओं पर भी फोकस
- 2019 चुनाव की तैयारी माने जा रहे इस फेरबदल में यूपी से शिव प्रताप शुक्ल, बिहार से अश्विनी कुमार चौबे, कर्नाटक से अनंत कुमार हेगड़े, मध्यप्रदेश से वीरेंद्र कुमार और राजस्थान से गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे जमीनी नेताओं को कैबिनेट में जगह दी गई है। इन सभी को राज्यमंत्री बनाया गया है।
- भाजपा में योगी आदित्यनाथ विरोधी खेमे के माने जाने वाले पूर्वांचल के कद्दावर नेता शिव प्रताप शुक्ल को केंद्र में मंत्री बनाकर ब्राह्मण वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। महेंद्र नाथ पांडेय और कलराज मिश्र को कैबिनेट से बाहर किए जाने को शुक्ल बैलेंस कर सकते हैं।
- राजस्थान में आनंदपाल एनकाउंटर के बाद राजपूतों की नाराजगी को देखते हुए गजेंद्र सिंह शेखावत का मंत्री बनाया जाने के पीछे भी सियासी मकसद तलाशा जा सकता है।
- कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अनंत कुमारहेगड़े का मंत्री बनना भी मायने रखता है। मध्यप्रदेश से अनुभवी नेता वीरेंद्र कुमार को मंत्री बनाकर कायकर्ताओं में अच्छा संदेश देने की कोशिश की है।
गोयल, प्रधान, सीतारमण और नकवी का प्रमोशन
- मोदी सरकार के आखिरी कैबिनेट विस्तार माने रहे इस फेरबदल में सबसे चौंकाने वाला फैसला निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बनना रहा। उन्हें न सिर्फ कैबिनेट मंत्री के तौर पर प्रमोट किया गया बल्कि रक्षा मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा गया है।
हालांकि, सीतारमण के वाणिज्य मंत्री रहते निर्यात के मोर्चे पर कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी ने उन पर भरोसा जताया है। शायद इसके पीछे सीतारमण की ईमानदार सख्त प्रशासक की छवि, मेक इन इंडिया जैसे अभियान में उनकी मेहनत और मीडिया के सामने पार्टी का पक्ष प्रभावशाली तरीके से रखने में महारथ बड़ी वजह रहीं।
पहली बार सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) में दो महिलाओं (सुषमा स्वराज और निर्मला सीतारमण) को जगह मिलेगी। मोदी मंत्रिमंडल में अब सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण, मेनका गांधी, अनुप्रिया पटेल और उमा भारती जैसी महिला मंत्रियों का दबदबा नजर आने लगा है।
अच्छे काम को प्रोत्साहन, खराब प्रदर्शन पर गाज
- इस कैबिनेट विस्तार और मंत्रालयों में फेरबदल के जरिए पीएम मोदी ने अच्छा प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों को प्रमोट किया जबकि लचर प्रदर्शन कतई बर्दाश्त नहीं करने का मैसेज भी दिया है।
- धर्मेंद्र प्रधान को पेट्रोलियम मंत्रालय में उनके प्रदर्शन और उज्जवला योजना की सफलता का ईनाम मिला है। उन्हें पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के साथ-साथ कौशल विकास की जिम्मेदारी भी मिली है। कैबिनेट मंत्री बने सो अलग!
- मुख्तार अब्बास नकवी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर अल्पसंख्यक मामलों की जिम्मेदारी भी दी गई है। उन पर पीएम मोदी का भरोसा बढ़ता दिख रहा है।
- मोदी सरकार के दमदार प्रदर्शन करने वाले मंत्रियों में शुमार पीयूष गोयल को सुरेश प्रभु की जगह रेल मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी दी गई है। उन्हें ग्रामीण विद्युतीकरण, बिजली कोयला मंत्रालय अभी भी उनके पास ही रहेगा।
- मोदी कैबिनेट में नितिन गडकरी, नरेंद्र सिंह तोमर और डॉ. हर्षवर्धन का रुतबा कायम है। उमा भारती से जल संसाधन मंत्रालय लेकर गडकरी को दिया गया है, जबकि तोमर के पास ग्रामीण विकास के अलावा अब खनन मंत्रालय भी रहेगा। डॉ. हर्षवर्धन को विज्ञान एवं तकनीक और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के साथ-साथ पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की कमान भी सौंप दी गई है। अभी तक उनके पास पर्यावरण मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार था।
राज्यवर्धन, गिरिराज और गंगवार का रुतबा बढ़ा
- कैबिनेट फेरबदल में संतोष कुमार गंगवार, राज्यवर्धन राठौड़ और गिरिराज सिंह का दर्जा बढ़ाते हुए स्वतंत्र प्रभार दिया गया है। गंगवार को श्रम एवं रोजगार मंत्रालय, राज्यवर्धन राठौड़ को खेल एवं युवा मामलों के मंत्रालय और गिरिराज सिंह को एमएसएमई मंत्रालय में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है। राज्यवर्धन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में राज्यमंत्री भी बने रहेंगे।
जिन मंत्रियों का कद घटा
मोदी सरकार के जिन मंत्रियों का कद घटा है उनमें उमा भारती का नाम सबसे आगे है। हालांकि उमा भारती की कुर्सी बच गई, लेकिन जल संसाधन मंत्रालय उनके पास नहीं रहेगा। वे अब सिर्फ पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय की मंत्री हैं। सूत्रों के मुताबिक, आखिरी समय तक संघ का दबाव उमा भारती का मंत्री पद बचाने में कारगर साबित हुआ।
इसी तरह विजय गोयल को खेल मंत्रालय से हटा दिया गया है। अब यह जिम्मा ओलंपिक पदक विजेता राज्यवर्धन राठौड़ को दिया गया है। गोयल के कार्यकाल में खेल मंत्रालय कई वजह से विवादों से घिरा रहा। खेल नीति को आगे बढ़ाने और खेल संघों के मामलों में भी गोयल कुछ खास नहीं कर पाए।
मोदी सरकार के चर्चित मंत्री महेश शर्मा का रुतबा भी कुछ कम हुआ है। उनके पास पर्यटन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार था। उन्हें अब पर्यावरण मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है। संस्कृति मंत्रालय उनके पास रहेगा। कैबिनेट मंत्री न बनाया जाना और पर्यटन मंत्रालय से हटाना उनके लिए झटका माना जाएगा।
कृषि और संसदीय मामलों के राज्यमंत्री एसएस अहलूवालिया से भी ये दायित्व वापस ले लिए गए हैं। उन्हें अब पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है। वैसे चर्चाएं कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह को हटाए जाने की भी थीं, लेकिन इस बार के फेरबदल में भी उनकी कुर्सी बच गई है।
जदयू और शिवसेना को मौका नहीं
इस कैबिनेट विस्तार में एनडीए के घटक दलों के बीच तकरार भी खुलकर सामने आ गई है। हाल ही में महागठबंधन को झटका देकर एनडीए में शामिल हुए नीतीश कुमार के जदयू और शिवसेना के किसी मंत्री को शपथ नहीं दिलाई गई है। इसे लेकर राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश पर आज खूब तंज कसे।
भाजपा से गुस्साई शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि उनकी पार्टी मंत्री पद के के लालची नहीं है। भाजपा ने अपने बहुमत का घमंड दिखाया है। शिवसेना की यह तल्खी कभी न कभी भाजपा को भारी पड़ेगी। मंत्रिमंडल विस्तार से नाराजगी के चलते शपथ ग्रहण समारोह में भी शिवसेना शामिल नहीं हुई थी।
जदयू के महासचिव केसी त्यागी का कहना है कि यह भाजपा का कैबिनेट विस्तार था, इसका एनडीए से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे कुछ लोग इसे नीतीश कुमार की मोदी कैबिनेट में ज्यादा पद पाने की प्रेशर पॉलिटिक्स भी मान रहे हैं। लेकिन एक बात साफ है कि एनडीए में फिलहाल सब कुछ ऑल इज वैल नहीं है।
मोदी मंत्रिमंडल में अब 75 मंत्री हैं, जिनमें 27 कैबिनेट मंत्री, 11 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 37 राज्यमंत्री हैं। नियमानुसार कुल 81 मंत्री बनाए जा सकते हैं। यानी अभी 6 और मंत्रियों की गुंजाइश है। लेकिन मंत्रिमंडल का फिर विस्तार हुआ तो "मिनिमम गवर्मेंट..." के नारे का क्या होगा!