सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को आईबी की रिपोर्ट से दूर क्यों होना चाहिए
“अगर आपकी न्यायपालिका में कमजोर अंतरात्मा से युक्त लोग बैठे हैं, जो राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों के अधीन होने जैसा व्यवहार करते हैं, तो सबसे पहले संविधान की सर्वोच्चता को ही क्षति पहुंचती है। इस शुरुआत के बाद संविधान को चोट पहुंचाने वाले दूसरे रास्ते खुलते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों को भरोसा हो जाता है कि उनके रास्ते में अब कोई रोड़ा नहीं है। इस तरह की परिस्थिति में निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि संवैधानिक अराजकता और कानूनी अव्यवस्था का रास्ता खुल जाएगा।”– न्यायमूर्ति एचआर खन्ना
क्या न्यायमूर्ति मुरलीधर का तबादला करने के लिए सरकार ने आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) रिपोर्ट का इस्तेमाल किया? क्या सरकार खुफिया एजेंसियों का उपयोग जजों को बदनाम करने के लिए या न्यायपालिका के खिलाफ ‘गंदी चाल’ के लिए कर रही है? बहरहाल, जवाब स्पष्ट है- हां...। 12 मार्च 2020 की संसद की बहस साफ तौर पर यह साबित करती है।
26 फरवरी की रात को दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मुरलीधर के ‘जल्दबाजी में तबादले’ के बारे में संसद में एक सवाल पूछा गया। न्यायमूर्ति मुरलीधर ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा में दिल्ली पुलिस की नाकामी पर सवाल उठाया था। इस पर सत्तारूढ़ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने लोकसभा में जवाब दिया, “मैं यह कहना चाहती हूं कि कुछ लोगों के बारे में आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। हर कोई समझ जाएगा कि किसका तबादला हुआ और किस कारण से हुआ।”
इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) हमारी आंतरिक खुफिया एजेंसी है और गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत सीधे काम करती है। बेशक एमएचए के बॉस गृह मंत्री हैं। आईबी निदेशक एक आईपीएस अधिकारी होया है जिसको कैबिनेट की नियुक्ति समिति द्वारा नियुक्त किया जाता है, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट कॉलेजियम द्वारा आईबी रिपोर्टों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। राज्य स्तर पर आईबी का नेतृत्व संयुक्त निदेशक या अतिरिक्त निदेशक करता है और राष्ट्रीय स्तर पर यह काम निदेशक का होता है।
हाल ही में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को एक विचित्र रिपोर्ट भेजी जिसमें कहा गया कि विचाराधीन वकील समलैंगिक है और अपने साथी के साथ रहता है, जो एक विदेशी नागरिक है। यह 'सुरक्षा' के लिए खतरा हो सकता है।
तो क्या आईबी के अनुसार गे या लेस्बियन होना एक सक्षम वकील को जज के रूप में नियुक्त किए जाने से अयोग्य साबित करता है? या सिर्फ इसलिए कि आप किसी विदेशी नागरिक के साथ रिश्ते में हैं या शादीशुदा हैं, तो क्या आपको न्यायिक नियुक्ति से वंचित किया जा सकता है? क्या जो पार्टनर विदेशी नागरिक है उससे राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम है?
पूर्व अटॉर्नी जनरल और प्रख्यात न्यायविद सोली सोराबजी भी आईबी रिपोर्टों की प्रमाणिकता पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि जो भी आईबी कहता है, 'उसे चुटकी भर नमक समझना चाहिए।' आईबी ने एक बार अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि जजशिप के लिए विचाराधीन व्यक्ति काफी शराब पीने वाला है। वह इतना पीता है कि उसे ‘पियक्कड़’ के नाम से जाना जाता है।
बाद में जब सोराबजी ने क्रॉस-चेक किया तो उन्होंने पाया कि इस वकील ने अपने जीवन में कभी भी शराब को छुआ ही नहीं था, लेकिन पियक्कड़ उनके दोस्तों द्वारा केवल मजाक में दिया गया मजेदार उपनाम था।
आईबी के पूर्व संयुक्त निदेशक दिवंगत एमके धर जिन्होंने तीन दशकों तक एजेंसी की सेवा की थी अपनी पुस्तक "ओपन सीक्रेट्स: इंडियाज इंटेलिजेंस अनवील्ड" में बताते हैं कि सरकार द्वारा आईबी का इस्तेमाल ‘डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट’ के रूप में कैसे किया जाता है। किताब कई खुलासे करती है, एक संगठन के तौर पर आईबी की अनैतिक और भ्रष्ट प्रथाओं को समझने के लिए इसे पढ़ना चाहिए।
11 जनवरी, 2009 को लिखे पत्र में न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन से कहा कि पंजाब पुलिस के सतर्कता ब्यूरो के तत्कालीन निदेशक सुमेध सैनी ने 2008 में हाईकोर्ट के नौ न्यायाधीशों के खिलाफ अवैध रूप से उनके फोन टैप करके सबूत गढ़े थे। न्यायमूर्ति ठाकुर के नौ पेज के पत्र में हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के फोन टैप करने के सैनी की मंशा पर सवाल उठाया गया था। संयोग से, जिन न्यायधीशों के फोन टैप किए गए थे उनमें से एक न्यायमूर्ति मेहताब सिंह गिल भी थे। उन्होंने हिरासत में हत्या के एक मामले में सैनी के खिलाफ सीबीआई जांच का निर्देश दिया था।
मई 2001 में आदर्श कुमार गोयल को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्त किया गया था। आदर्श कुमार गोयल की सिफारिशी फाइल के, ' रेपुटेशन / इंटीग्रिटी' कॉलम में आईबी की रिपोर्ट में लिखा था- "भ्रष्ट व्यक्ति"। राष्ट्रपति के आर नारायणन ने आईबी की इस प्रतिकूल रिपोर्ट के आधार पर गोयल के बारे में विचार किया और कानून मंत्रालय को फाइल लौटा दी।
दूसरी ओर तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली ने सिफारिश का बचाव किया और गोयल की इंटीग्रिटी को लेकर आईबी की ओर से लगाए कलंक को खारिज कर दिया। सच्चाई यह थी कि आदर्श कुमार गोयल एक ईमानदार व्यक्ति थे। उनके खिलाफ आईबी की रिपोर्ट एजेंसी के कुछ अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से प्रेरित थी। जबकि आज तक जस्टिस गोयल के हाउस बार में उनके आलोचकों ने भी उन्हें ईमानदार आदमी कहा है।
नवंबर, 2016 में शीर्ष अदालत के कॉलेजियम में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई शामिल थे। इस दौरान कॉलेजियम ने आईबी की एक रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और झारखंड हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए चार वकीलों में से तीन के नामों की सिफारिश की थी। इस दौरान कहा गया, "पेशेवर दक्षता के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो की टिप्पणियों के संबंध में ... हमारा विचार है कि पेशेवर क्षमता को उच्चतर न्यायपालिका के सदस्यों द्वारा सर्वोत्तम रूप से निर्धारित किया जा सकता है जिनके पास दैनिक आधार पर उनके प्रदर्शन का निरीक्षण करने का मौका होता है।"
कॉलेजियम ने आगे आईबी रिपोर्ट पर सवाल उठाया, “हमारे विचार में इंटेलिजेंस ब्यूरो द्वारा की गई विवेचना संबंधी पूछताछ के आधार पर किसी भी बेबुनियाद जानकारी का संज्ञान लेना उचित नहीं होगा।"
कानून की नजर में आईबी वैध नहीं है और इसकी कोई जवाबदेही भी नहीं है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत उन गिने-चुने देशों में से है, जहां खुफिया एजेंसियां किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हैं, विधायिका के प्रति भी नहीं। संयुक्त राज्य अमेरिका या यूनाइटेड किंगडम में खुफिया एजेंसियां विधायिका के प्रति जवाबदेह हैं। सीआईए और ब्रिटेन के एमआई5 और एमआई6 को संसदीय जांच का सामना करना पड़ता है। यह निगरानी की उचित प्रक्रिया और उचित प्रणाली को सुनिश्चित करता है। मौजूदा असाधारण स्थिति को एक असाधारण उपाय की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति मुरलीधर जैसे स्वतंत्र न्यायाधीशों को डराने के लिए इन दिनों सरकार द्वारा आईबी का दुरुपयोग चिंताजनक है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है। हमारी भव्य संस्था के दिग्गजों को न्यायपालिका की स्वतंत्रता के हित में एक तंत्र विकसित करना होगा। अन्यथा, सरकारें ईमानदार, निडर और राजनीतिक-व्यक्तिगत एजेंडे को चुनौती देने वाले न्यायाधीशों को स्थानांतरित करने के लिए आईबी का इस्तेमाल करना जारी रखेंगी।
न्यायमूर्ति एचआर खन्ना ने लिखा है, “संविधान में निहित अधिकारों को जीवित और सार्थक रखने के लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण और अपरिहार्य है। यदि आपके पास स्वतंत्र अदालतें नहीं हैं तो आप संविधान से उस हिस्से को निकाल दीजिए जिसमें मौलिक अधिकारियों की बात कही गई है। उन्होंने आगे लिखा, “हमें पीठ में ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जो सर्वोच्च निष्पक्षता के साथ संतुलन बना सकें, जो न्याय, पूर्ण न्याय, शुद्ध न्याय और निष्कलंकता को छोड़कर अन्य किसी भी बात से विचलित न होता हो, जिसे कोई चीज प्रभावित न कर सकती हो- न तो उन्मादी भीड़ और न ही सत्ता का विचार, जो दृढ़ दिल वाले व्यक्ति हैं, ऐसे व्यक्ति जिनकी न्याय के प्रति निष्ठा है और कुछ नहीं। कमजोर पात्र अच्छे न्यायाधीश नहीं हो सकते।” आज जहां अदालतें चुनौतीपूर्ण समय का सामना कर रही हैं उनके लिए यह महत्वपूर्ण स्मरण पत्र है।
(लेखक दिल्ली में मानवाधिकार वकील हैं। लेख में व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।)