लंदन में खालिस्तानी, भारत के लिए चिंता का सबब
लंदन में भारतीय उच्चायोग पर लहराते तिरंगे के अपमान के बाद पूरी दुनिया की नजर भारत में फिर से पनप रहे खालिस्तानी उग्रवाद के साथ साथ भारत-ब्रिटेन संबंधों पर आ टिकी है। एक उपद्रवी जो खुद को भारतीय नहीं मानता उस पर भारत में कार्रवाई नहीं हो इस मांग के साथ ब्रिटेन में बैठे उसके उपद्रवी समर्थक उच्चायोग तक पहुंच जाते हैं, लहराते भारतीय तिरंगे को उतारते हैं, तिरंगे के अपमान पर अट्टहास करते हैं और फिर अपना झंडा वहां टांग देते हैं। यह कोई प्रतीकात्मक विरोध नहीं है, यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है और निश्चित तौपर पर भारतीयता पर हमला है। इस घटना की चौतरफा निंदा तो हो रही है लेकिन क्या महज निंदा भर से या छोटी मोटी कार्रवाईयों से समस्या का समाधान होने वाला है? रविवार 19 मार्च की इस घटना के बाद दिल्ली में ब्रिटिश हाईकमीशन के दफ्तर के बाहर सिख समुदाय के लोग जमा हुए औऱ लंदन की घटना का विरोध जताया। फिर अगले दिन ब्रिटेन के भारतीय समुदाय ने हाई कमीशन और आसपास की सड़कों को तिरंगे से पाट दिया, भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाए, जय हो गाने की धुन पर नाचे और ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों को भी ताल से ताल मिलाते देखा गया।
लंदन के भारत भवन यानी उच्चायोग पर हुए इस हमले को भारत ने गंभीरता से लिया और ब्रिटेन को वियना संधि (27 जनवरी, 1980) की याद दिलाई जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि “किसी भी उच्चायोग या दूतावास के परिसर में घुसपैठ या हमले के ख़िलाफ़ सुरक्षा और शांति की ज़िम्मेदारी मेज़बान देश का विशेष कर्तव्य है।"
इस सख्ती का परिणाम ये रहा कि अगले दिन यानी 21 मार्च को दोबारा जब खालिस्तान समर्थकों का गुट भारतीय उच्चायोग पहुंचा तो वहां मुस्तैदी से मौजूद लंदन पुलिस ने उनको आगे नहीं आने दिया। हालांकि उप्रदवियों ने पुलिस पर पानी की बोतलें फेंकी, अंडे उछाले और भारत विरोधी नारे भी लगाए। इस घटना को विस्तार से देखें तो इसके कई पहलू हैं जो साफ साफ नजर आते हैं। एक तरफ जहां ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और ब्रिटेन के संबंधों में और बढ़ रहे सामंजस्य को कुछ भारत विरोधी उपद्रवी खराब करने का हर संभव प्रयास करते नजर आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ विदेश में बैठी भारत विरोधी ताकतें भारत की शांति को भंग करने की कोशिशों में जुटी है। जिसमें पड़ोसी देश की भी अहम भूमिका दिखती है। अब जबकि उच्चायोग से तिरंगा उतारने वाले अवतार सिंह खंडा को लंदन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है तो ये साफ हो गया है कि भारत में एक बार फिर से अलग खालिस्तान देश की मांग की आग अंदर ही अंदर सुलगाने की कोशिश हो रही है और पंजाब में पूर्ण बहुमत की लेकिन निहायत ही कमजोर और अनुभवहीन सरकार के हाथों से बात निकलती नजर आ रही है।
लंदन में उच्चायोग पर हमले के बाद भारत ने प्रतीकात्मक तरीके से ही दिल्ली में ब्रिटिश हाईकमीशन के बाहर से पुलिस बैरिकेडिंग हटाई जिसे मीडिया ने जैसे को तैसा का नाम दिया, हालांकि ना तो हाई कमीशन के किसी अधिकारी ने और ना ही किसी पुलिस अधिकारी ने इस मुद्दे पर स्पष्ट कुछ कहा लेकिन इस प्रतीक का ही शायद नतीजा निकला कि लंदन में भारतीय उच्चायोग के बाहर अब पुलिस चौकसी ऐसी कर दी गई है जिसके लिए लंदन की मेट्रोपोलिटन पुलिस दुनिया भर में विख्यात है। अब खंडा की गिरफ्तारी से इतना तो स्पष्ट हो गया है कि अमृतपाल सिंह दरअसल भारत विरोधी ताकतों का प्रशिक्षित नुमाइँदा है। अवतार सिंह खंडा के पिता कुलवंत सिंह खुकराना अस्सी के दशक में बनी खालिस्तान लिबरेशन फोर्स यानी केएलफ के आतंकी के तौर पर कुख्यात हैँ। ये ब्रिटेन में बतौर शरणार्थी आए और फिर वहीं से भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गए। अमृतपाल सिंह को इन्हीं लोगों ने दुबई में पनाह दी, जार्जिया में ट्रेनिंग दी और फिर सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद भारत में खालिस्तान की मांग को मजबूत करने के लिए जमाने का प्रयास करना शुरु कर दिया।
लंदन में पहले भी खालिस्तान समर्थकों के छिटपुट प्रदर्शन होते रहे हैं, ब्रिटेन के दूसरे हिस्सों में भी हुए हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि उच्चायोग पर हमला हो गया। लंदन की घटना के अगले दिन अमेरिका से ऐसी ही खबरें आईं जब वहां भी खालिस्तान समर्थक सैन फ्रांसिस्को के भारतीय कांस्यूलेट पर हंगामा कर रहे थे। दरअसल अब भारत की सरकार को इस मामले को दो अलग ऩजरिए से देखना होगा।
खालिस्तान समर्थक उग्रपंथियों से भारत में कैसे निपटा जाए और भारत के बाहर कैसे निपटा जाए। अगर सरकार उनसे भारत में ठीक से निपटने में कामयाब रही तो भारत के बाहर ये विरोधी तत्व खुद ब खुद कमजोर होते जाएंगे। जैसा कि कुछ साल पहले तक इनकी स्थिति थी लेकिन अगर वो भारत में उनसे निपटने में कमजोर साबित हुए तो पश्चिमी देश न सिर्फ इनके पनाहगार होंगे बल्कि इनकी गतिविधियों का केंद्र भी बन जाएँगे। भारत को कमजोर करने की वैश्विक साजिश को ठीक से समझने की जरूरत है। ब्रिटेन समेत तमाम पश्चिमी देश मानवाधिकार को लेकर इतने सजग हैं कि सिखों को अल्पसंख्यक मानते हैं इसलिए उनके साथ नरमी से पेश आते हैं। और ये उग्रपंथी इन्हीं नरमी का बेजा फायदा उठाते हैं। ब्रिटेन की वीभत्स घटनाओँ में से एक ग्रूमिंग स्कैंडल के मामले में यही स्थिति काफी स्पष्ट थी जब स्थानीय सरकारें पाकिस्तानी गिरोहों के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई करने के लिए अनिच्छुक थीं। उन लोगों को नस्लवाद के आरोप लगने का डर था। हालांकि बाद में सरकारों ने मामले की गंभीरता को समझा और फिर कड़ी कार्रवाई की, लेकिन इसमें ये भी गौर करने की बात थी ये मामला उनके अपने देश का था। ऐसे में ब्रिटेने या दूसरे यूरोपीय देश इन खालिस्तान समर्थक सिख उग्रपंथियों पर कितने सख्त होंगे, कहा नहीं जा सकता। साथ ही एक बात और है जो भारत के पक्ष में नहीं जाती और वो है ब्रिटेन और कनाडा के कई निर्वाचन क्षेत्रों में, संसद के किसी भी सदस्य के चुने जाने के लिए सिख और मुस्लिम वोट खासा मायना रखता है। ऐसे में अगर उन इलाकों के सिख खालिस्तान समर्थक हैं तो पाकिस्तानी मुस्लिम समुदाय उनको समर्थन देता है क्यूंकि दोनों भारत विरोधी गैंग के तौर पर इकट्ठा होते हैं और चुनाव परिणाम पर असर डालते हैं। साथ ही यहां की एक बड़ी समस्या ये भी है कि इन इलाकों के हिन्दू वोटर्स अपने वोट का इस्तेमाल भी ठीक से नहीं करते।
ऐसे में जरूरत है फर्जी नैरेटिव से निपटने की जो पिछले कुछ महीनों से अमृतपाल पंजाब में बैठकर फैला रहा था। गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह के नाम पर कुतर्क गढ़ रहा था, भारतीय मीडिया का इस्तेमाल कर रहा था और देश के गृहमंत्री तक साफ साफ शब्दों में धमका रहा था। भारत की सुविधाओँ का उपभोग करते हुए भारत में रहते हुए भारत विरोधी बातें वो मीडिया में कर रहा था और मीडिया अभिव्यक्ति की आजादी का हवाला देते हुए उसे बात रखने का मौका दे रही थी। होना ये चाहिए था कि अमृतपाल के फर्जी नैरेटिव के विरोध में तथ्यों के साथ ये बताना चाहिए कि भारत ही सिखों के लिए सबसे बेहतर जगह है और सिख भारत के लिए सबसे ज्यादा कुर्बानी देने वालों में शुमार हैं। सिख सबसे मेहनती और ईमानदार कौम है जिसे हर भारतीय ने अपने सिर आँखों पर बिठाया है हिन्दुओँ के साथ तो रोटी-बेटी का रिश्ता है। ऐसे में अगर चंद लोग अलगाव की बात करते हैं तो कहीं से जायज नहीं है।
अब चूंकि अमृतपाल भारत में ही भाग रहा है और पुलिस कई राज्यों में उसकी तलाश कर रही है। ऐसे में भारतीय एजेंसियां शायद ये तो समझ गई हैं कि जिस तरह से ब्रिटेन में उसकी रिहाई को लेकर प्रदर्शन हुए, निश्चित तौर पर इस अलगाववाद को पिछले कुछ सालों में यहां से उसे भरपूर खाद-पानी मिला है। अब जरूरत है कि इस अलगाववादियों के चेहरे बेनकाब करने की और ब्रिटेन को ये समझाने की, कि कल को ये आपके लिए भी नासूर बन सकते हैं। लिहाजा किसी भी देश की संप्रभुता के खिलाफ आवाज उठाने वालों का वैश्विक बहिष्कार होना चाहिए तभी दुनिया भर में शांति कायम रखने में मदद मिलेगी।