जंग के बगैर करें फौजी कार्रवाई
घुसपैठ रोकने के पुख्ता उपाय हम अभी तक नहीं कर पाए- यह हमारी विफलता है। हमारे बड़े देश की महान फौज इस मसले का हल नहीं ढूंढ़ पाई। हम चोट खाए जा रहे हैं। हम नहीं चेत रहे हैं। इसके लिए मैं देश के नेतृत्व को ज्यादातर दोषी पाता हूं। आर्मी और एयरफोर्स के कमांडर दोषी हैं जो पुख्ता योजना नहीं बना पा रहे हैं।
देश और नागरिकों की रक्षा करने की जिम्मेदारी सरकार पर है। मुख्य तौर पर यह जिम्मेदारी सरकार में बैठे जिन लोगों को उठानी चाहिए, वे सत्ता में आते ही चुनाव के समय किए हर वादे भूल जाते हैं। विदेश नीति हो या रक्षा के मामले- चुनाव में गर्मागर्म बातें की जाती हैं और फिर चुनाव के बाद वही ढाक के तीन पात। बाद में उड़ी या पठानकोट जैसा कांड हो जाने के बाद प्रधानमंत्री कहते हैं कि दोषियों को बगैर दंडित किए नहीं छोड़ेंगे।
सवाल उठता है कि दोषियों को सजा देने का रास्ता क्या हो? एक बदनाम देश को हम राजनयिक स्तर पर आखिर और कितना बदनाम कर सकते हैं। आप हर समस्या का हल कूटनीतिक तौर पर नहीं निकाल सकते। जरूरत इस बात की है कि जब वे हम पर आघात करें तो चोट उन्हें भी लगनी चाहिए। उनका भी खून बहना चाहिए। इसके लिए क्या लड़ाई ही एकमात्र रास्ता है? मेरा मानना है कि नहीं, लड़ाई ही एकमात्र रास्ता नहीं है। लड़ाई जरूरी नहीं है।
रास्ते की तलाश तो हमें संसद पर हमला, मुंबई हमला, पठानकोट हमला के समय ही करना चाहिए था। बातचीत के लिए हम अगले किसी आतंकी हमले का इंतजार क्यों करते हैं? उपाय सरकार को ढूंढऩा है कि किस प्रकार जंग के बगैर हम उन्हें जवाब दें। इसके लिए काबिलियत होनी चाहिए- राजनीतिक इच्छाशक्ति होनी चाहिए।
क्या यह कोवर्ट ऑपरेशंस (खुफिया कार्रवाई) का रास्ता हो सकता है? मेरा मानना है कि रास्ता कोवर्ट (खुफिया) तो हो ही, ओवर्ट (सामने आकर) भी हो। हम रक्षात्मक कार्रवाई करते रहते हैं। हमें लड़ाई किए बगैर लाइन ऑफ कंट्रोल पार करनी चाहिए। मैं आर-पार की कार्रवाई की बात हर्गिज नहीं कर रहा। लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि फौजी कार्रवाई होनी चाहिए। पाकिस्तान की सीमा पर हमने कभी इस तरह की कोशिश नहीं की।
यह सही है कि भारत और पाकिस्तान- दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। लेकिन वे जिस तरह की हरकतें कर रहे हैं, उसका जवाब देना भी जरूरी है। वह देश परमाणु बम फोड़ देगा- इस डर से हम रक्षात्मक कार्रवाई ही करते रहें- यह कहां तक उचित है? हमें 'परमाणु डर’ की 'रेड लाइन’ के नीचे जाकर कार्रवाई करनी होगी।
पड़ोसी देश जिन जगहों से आतंकियों को भेजता है- उन्हें वहीं जाकर रोकना होगा, खत्म करना होगा। मैं कुछ दिनों पहले इस्राइल से लौटा हूं। वे लोग जिस तरह से कार्रवाई करते हैं- उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। 'अटैक एट सोर्स (जड़ पर कुठाराघात) ही रास्ता हो सकता है। हमें सक्रिय रक्षापंक्ति तैयार करनी होगी। हमलावर रुख अख्तियार करना होगा। हमारे जवानों को हमलावर होना होगा- तभी बात बनेगी। अगर देश में फिदाइन आ रहे हैं तो जाहिर है कहीं न कहीं गड़बड़ है। तकनीक और रणनीति के साथ हमें चाक-चौबंद व्यवस्था करनी होगी- तभी बात बनेगी।
(दीपक रस्तोगी के साथ बातचीत पर आधारित)