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12 April 2019

दंतेवाड़ा में नक्सली हमलाः तटस्थ जांच की सख्त जरूरत

यह अत्यंत परेशान करने वाली बात है कि नक्सली और माओवादी छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा क्षेत्र में जब चाहें, निशाना बना रहे हैं। यह और ज्यादा गंभीर तथ्य है कि 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान से बमुश्किल 48 घंटे पहले नक्सलियों ने आइइडी का इस्तेमाल करके विस्फोट किया और स्थानीय भाजपा विधायक एवं मौजूदा लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार भीम मांडवी, उनके व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी और उनके साथ चल रहे चार अन्य हथियारबंद सुरक्षा कर्मियों को मार डाला। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि विधायक की सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर तैयार की गई बख्तरबंद कार टुकड़े-टुकड़े हो गई। हमलावरों ने हमले में इस हद तक निर्दयता दिखाई कि हमले में शिकार लोगों की मौत होने के बाद भी फायरिंग करते रहे और सुरक्षा कर्मियों के हथियार लेकर भाग गए। इस कायरतापूर्ण कृत्य से स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में अभी भी नक्सलियों का राज चलता है। दंतेवाड़ा बस्तर लोकसभा क्षेत्र में पड़ता है।

सुरक्षा एजेंसियां चुनौतियों से निपटने में विफल

महज एक सप्ताह पहले नक्सलियों के हमले में बीएसएफ के चार जवानों की शहादत और हाल की घटना ने यह स्पष्ट हो जाता है कि दीवारों पर स्पष्ट चेतावनियां अंकित होने के बावजूद सरकार की तमाम सुरक्षा एजेंसियां बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में विफल हैं। इस क्षेत्र में पिछले वर्षों के दौरान कई हमलों होने से इनकी आशंका लगातार बनी रहती है। खासतौर पर चुनावी सीजन में हमले होने पर आश्चर्य किया जाता है कि क्या चुनाव आयोग ने सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई निश्चित दिशानिर्देश जारी किए हैं? अगर हां, तो हमलों की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए गए? इसकी जानकारी नहीं है कि राज्य की मशीनरी समेत विभिन्न सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों ने हमलों को नाकाम करने के लिए खुद ही कोई तैयारी की है। नक्सलियों की ओर से वास्तविक खतरों से निपटने के लिए उनकी असाधारण प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। उम्मीद है कि सर्वाधिक खतरे से निपटा जा चुका है।

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पहले भी किए हैं घातक हमले

गौरतलब है कि 28 मई 2013 को छत्तीसढ़ के सुकमा स्थित दरभा घाटी में हुए नक्सलियों के हमले में वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ला और कांग्रेस के कई अन्य नेताओं समेत 27 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें भी आइईडी का इस्तेमाल हुआ था। प्रभावित क्षेत्र रेड कॉरीडोर का हिस्सा था। सर्वाधिक प्रभाव वाले रेड कॉरीडोर में माओवादियों की टेक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) के साथ टकराव होता रहता है जो अप्रैल से मानसून की शुरुआत तक चलता है। इस घटना से करीब तीन साल पहले छह अप्रैल 2010 को हुए एक अन्य हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शरीद हो गए थे। इसी क्षेत्र में हुए यह सबसे घातक नक्सली हमला था।

डीजीपी ने किया था आगाह

इन घटनाओ से इस क्षेत्र में नक्सलियों के हमलों का एक पैटर्न दिखाई देता है। बीएसएफ के गश्ती दल और विधायक पर हमलों से पुष्टि होती है कि नक्सली इस क्षेत्र में प्रभावी बने हुए हैं। विधायक पर हमले के मामले में कुछ सूत्रों से पता चला है कि छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक ने व्यक्तिगत रूप से विधायक को खतरों के प्रति आगाह किया था। उन्होंने खुफिया रिपोर्ट के बारे में उन्हें जानकारी दी थी कि घातक हमला हो सकता है। लेकिन संभवतः इस चेतावनी को नजरंदाज कर दिया गया। यह भी सुना गया कि इन लोगों ने जो रूट चुना, वह ठीक नहीं था। इस बात की भी संभावना है कि उन्होंने सलाह नहीं मानी और कुकोंटा और श्यामगिरी पहाड़ियों के बीच खतरों से भरे रूट को चुना।

बुलेटप्रूफ एसयूवी कैसे टुकड़े-टुकड़े हो गई

इस मामले में, विशेषज्ञों को इस तथ्य की भी जांच करनी चाहिए कि बुलेटप्रूफ एसयूवी विस्फोट में कैसे टुकड़े-टुकड़े हो गई। जब यह ज्ञात है कि रास्ते में यात्रियों के वाहनों पर विस्फोटकों से हमले होते रहते हैं तो फिर वाहनों की मजबूती सुनिश्चित क्यों नहीं की गई? इसी तरह विस्फोट और मौतों के संबंध में भी कई सवाल हैं जिनके जवाब तलाशने होंगे ताकि भविष्य में ऐसे हमलों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। खुफिया तंत्र और सुरक्षा में हुईं चूकों की समीक्षा करते समय जांचकर्ताओं को तटस्थ होकर जांच करनी चाहिए और राजनीति के परे हटकर इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इसके लिए सुनियोजित पेशेवर नजरिये की आवश्यकता है।

पूर्णकालिक सलाहकार समय की मांग

एक साल पहले तक, वामपंथी उग्रवादियों के मामलों के लिए एक पूर्णकालिक सलाहकार था। वह सीधे केंद्रीय गृह मंत्री को रिपोर्ट करता था। बिना देरी किए ऐसे पूर्णकालिक सलाहकार को नियुक्त किए जाने की आवश्यकता है ताकि नक्सली समस्या पर प्रभावी तरीके से कदम उठाए जा सकें।

(लेखक रिटायर्ड आइपीएस अधिकारी और मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार है, लेख में उनके निजी विचार हैं।

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TAGS: Naxalite attack, Dantewada, bastar, chhattisgarh, bheema mandawi, need of fair inquiry
OUTLOOK 12 April, 2019
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