प्रथम दृष्टि: किसकी वैक्सीन?
यह किसका टीका है भला? उस सरकार का, जिसके शासनकाल में इसका ईजाद हुआ या उस विपक्ष का, जिसकी लोकतंत्र में हुक्मरानों के हर फैसले को सियासी चश्मे से देखने की मजबूरी है? या आम जन का, जिसे निराशा, भय और संशय के माहौल में जीने के महीनों बाद उम्मीद की किरण नजर आ रही है, या फिर उन वैज्ञानिकों-चिकित्सकों का, जिन्होंने दिन-रात एक करके, घड़ी की सुइयों से होड़ करके वह कर दिखाया जिसे हम एक चमत्कारिक उपलब्धि के सिवा कुछ नहीं मान सकते?
यह वैक्सीन किसी वर्ग विशेष का है या नहीं, मानवता का तो बेशक ही है। पिछले एक साल में जिस तरह अति-संक्रामक कोरोनावायरस ने दुनिया भर में तबाही मचाई, लाखों लोगों की जिंदगियां लील ली, अर्थव्यवस्थाओं को नेस्तनाबूद किया और सशक्त से सशक्त राष्ट्रों को घुटने पर ला दिया, उसे काबू करना संपूर्ण विश्व समुदाय के लिए एक भारी चुनौती थी। चुनौती महज कोविड-19 से लड़ने के लिए कारगर टीके का ईजाद करना न था, चुनौती इसे कम से कम समय में उपलब्ध कराने की थी, ताकि अधिक से अधिक जिंदगियां बचाई जा सकें। आधुनिक काल में विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है। घातक बीमारियों से बचाव के लिए अनेक प्रभावी टीकों का ईजाद किया गया है, लेकिन इस बार परिस्थितियां बिलकुल अलग थीं। एक ऐसे अदृश्य शत्रु को साधने का साधन जल्द से जल्द खोजना था, जो हठात आ धमका था। जैसे-जैसे सुरसा की तरह उसका मुंह बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे पूरी दुनिया में मृतकों की संख्या में वृद्धि हो रही थी। इस स्थिति में कई ऐसे लोग काल के गाल में समा गए, जिन्हें समय रहते चिकित्सा नसीब नहीं हुई। बड़े-बड़े देशों के अस्पतालों में एक बेड भी खाली न बचा, जबकि बाहर अपनी बारी के इंतजार में मरीजों की लंबी कतार लगी रही। ऐसे अप्रत्याशित दवाब के बावजूद चिकित्सा जगत के सूरमाओं ने बीड़ा उठाया और वुहान में कोरोनावायरस के पहले मामले की पुष्टि के लगभग एक साल बाद ही वैक्सीन बनाने में कामयाब हुए। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए, कम होगी।
भारत के लिए यह दोगुना जश्न का समय होना चाहिए, क्योंकि देश में बनी एक नहीं, दो-दो वैक्सीन तैयार है। भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन और सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशिल्ड के प्रयोग को ड्रग नियामक की हरी झंडी मिल चुकी है। उम्मीद है, इसी महीने राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण शुरू भी हो जाएगा। दुर्भाग्यवश, इस अभियान के शुरू होने के पूर्व ही वैक्सीन विवादों के घेरे में है। आरोप लग रहे हैं कि कोवैक्सीन, जो पूर्णतः स्वदेशी वैक्सीन है, के आपात प्रयोग को जल्दबाजी में मंजूरी दी गई, क्योंकि इसके क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे और सबसे अहम चरण के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं। इस वैक्सीन पर राजनीति भी शुरू हो चुकी है। कभी इसे सत्तारूढ़ ‘भाजपा की वैक्सीन’ कहा जा रहा है, तो कभी इसके कारगर होने पर ही शंका जताई जा रही है। सबसे निराशाजनक पहलू तो यह है कि इस वैक्सीन के संबंध में कई भ्रामक दुष्प्रचार इसलिए किये जा रहे हैं, क्योंकि यह सौ फीसदी स्वदेशी है; इस तथ्य के बावजूद कि वैक्सीन बनाने वाले देशों में भारत की गिनती पिछले कुछ वर्षों से अग्रणी देशों में की जाती रही है।
किसी वैक्सीन के बारे में मिथ्या प्रचार कितना नुकसानदेह हो सकता है, यह हम पोलियो उन्मूलन अभियान के दौरान देख चुके हैं। पोलियो ड्रॉप्स के संबंध में कई तरह की भ्रांतियां फैलाई गईं, जिनका तथ्यों से कुछ लेना-देना नहीं था। इस कारण देश में पोलियो को समूल खत्म करने में कई वर्ष व्यर्थ हुए। आज सोशल मीडिया के दौर में मिथ्या प्रचार कोई दुष्कर कार्य नहीं, लेकिन मानव कल्याण से जुड़े किसी मामले में अफवाहें फैलाना अक्षम्य अपराध ही है। ऐसे कृत्य और भी निंदनीय हैं, क्योंकि यह मानवता के प्रति समर्पित चिकित्सा क्षेत्र के उन वैज्ञानिकों और हजारों सहकर्मियों की टीम के कठिन परिश्रम, निष्ठा और ईमानदारी का माखौल उड़ाने जैसा है। ये महामानव किसी दल विशेष या सरकार के लिए काम नहीं करते। यह कौम हमसे यह अपेक्षा तो रख ही सकता है कि इस टीके का राजनीतिकरण न हो, और न ही इसके कथित रूप से दुष्प्रभाव के बारे में अनर्गल अटकलें उस समय लगाई जाएं जब इसे देश भर में 135-140 करोड़ लोगों को उपलब्ध कराने के चुनौती हो। हां, सरकार, खासकर स्वास्थ्य मंत्रालय और वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों का यह दायित्व बनता है कि वह टीके से संबधित तमाम शंकाओं को यथाशीघ्र निर्मूल करें।
हाल ही में ब्रिटेन में पाए गए कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन, जिसे ज्यादा संक्रामक समझा जा रहा है, ने यह बता दिया है कि चुनौती अभी खत्म नहीं, लेकिन हमें आश्वस्त रहना चाहिए। इस वैक्सीन को अल्प समय में विकसित कर चिकित्सा क्षेत्र ने भी यह जता दिया है कि हमारे वैज्ञानिक और शोधकर्ता किसी भी चुनौती के लिए हर वक्त तैयार हैं। उनके पुरजोर हौसले और बुलंद इरादों को सिर्फ हमारे भरोसे का संबल चाहिए, सियासत की छींटाकशी नहीं।