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13 July 2018

इस नफरत से तो तौबा!

राजनीति और मार्केट दोनों एक-दूसरे के काफी करीब आ गए हैं। एक पक्ष को मार्केट खोने का डर है तो दूसरा मार्केट का विस्तार करते हुए दिखना चाहता है। वाट्सऐप की मालिक दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी ने देश के तमाम अखबारों में एक इश्तिहार देकर फर्जी खबरों (फेक न्यूज) या सूचनाओं से सावधान रहने और बचने के उपाय बताए हैं। इन फेक न्यूज और अफवाहों के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों में दो महीने के भीतर 20 से ज्यादा लोग हत्यारी भीड़ का शिकार हो गए। समाचार माध्यमों में तीखी प्रतिक्रिया और लोगों के बीच फैली दहशत के बाद सरकार ने वाट्सऐप की मालिक कंपनी को फेक न्यूज पर अंकुश लगाने को कहा। यह इश्तिहार उसी का नतीजा है लेकिन इसमें भी सोच-समझ कर सारा जिम्मा यूजर पर ही छोड़ दिया गया है। हालांकि, यह भी कहा गया है कि टेक कंपनियां, आम आदमी और सरकार मिलकर इस लड़ाई में साथ चलें तो फेक न्यूज की रोकथाम हो सकती है। बात सही है लेकिन इसमें करीब बीस करोड़ यूजर के मार्केट को खोने का डर ज्यादा है और बुराई से लड़ने की कोशिश कम।

असल में हत्यारी भीड़ के सबसे ज्यादा शिकार अल्पसंख्यक समुदाय, दलित और समाज में हाशिए पर रहने वाले लोग ही हुए हैं। इसलिए वहां से कोई मजबूत आवाज नहीं उठ रही है। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट ने जरूर इस पर राज्यों को निर्देश दिए और गाइडलाइन बनाने के मसले पर फैसला सुरक्षित रख लिया। लेकिन इस बीच दो बड़ी घटनाएं हुईं जो देश के आम आदमी को चौंकाती तो हैं ही, चिंतित भी करती हैं। केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने हजारीबाग के अपने लोकसभा क्षेत्र में उन आठ लोगों के गले में माला डालकर सम्मानित किया, जो एक मुस्लिम व्यक्ति की गोरक्षा के नाम पर भीड़ द्वारा हत्या के दोषी हैं और उन्हें फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। फिलहाल, वे हाइकोर्ट से मिली जमानत पर जेल से बाहर हैं।

यहां वाट्सऐप के बाद सरकार की भूमिका अहम है। दूसरे जयंत सिन्हा ऐसे शख्स हैं जिन्हें ग्लोबल इंडियन की श्रेणी में रखा जा सकता है। वे देश के प्रतिष्ठित टेक्नोलॉजी संस्थान आइआइटी और अमेरिका की पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी तथा दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिकी कॉलेज हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से पासआउट हैं। यही नहीं, वे मैकेंजी और ओमिदियार जैसी ग्लोबल कंपनियों में उच्च पदों पर रहे हैं। ऐसे सुलझे हुए दिखने वाले व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है कि वह वोटबैंक के खातिर इस स्तर तक चला जाए। वे इसकी सफाई भी दे रहे हैं लेकिन यह सच है कि वे गलत जगह खड़े थे। यही वजह है कि उनके पिता यशवंत सिन्हा ने उनके इस कृत्य की घोर निंदा की है, जो मौजूदा केंद्र सरकार के तीखे आलोचक और पिछली एनडीए सरकार में वित्त मंत्री और विदेश मंत्री के उच्च पदों पर रहे हैं।

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दूसरी ओर, उनसे एक कदम आगे बढ़कर केंद्रीय एमएसएमई राज्यमंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार की नवादा जिला जेल में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के लोगों से मुलाकात की। ये लोग वहां राज्य में रामनवमी के दौरान दंगों और सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने के आरोपों में बंद हैं। दिलचस्प यह है कि राज्य में भाजपा और जदयू की मिलीजुली सरकार है। फिर भी गिरिराज सिंह का बयान आता है कि वह मजबूर हैं और यहां सरकार हिंदुओं को दबा रही है।

एक ही पार्टी के दो केंद्रीय मंत्रियों के ये कदम खतरनाक संकेत हैं। अगर सरकार में बैठे व्यक्ति ऐसे कदम उठाते हैं तो यह लोकतांत्रिक देश की कानून-व्यवस्था के लिए चिंता का सबब है। इससे प्रतिकूल संदेश जाते हैं कि भीड़ द्वारा गोहत्या या दूसरी अफवाहों की वजह से निरीह लोगों की हत्या के बाद भी सम्मान पाने की गुंजाइश है। फिर, जिस तरह से महाराष्ट्र के धुले और पूर्वोत्तर के त्रिपुरा तथा असम में बच्चा चोरी की अफवाहों के चलते भीड़ ने लोगों की हत्या की, वह कहीं लोगों के कानून-व्यवस्था से उठते भरोसे का संकेत तो नहीं है!

आने वाले कुछ महीनों में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे और करीब नौ महीने बाद लोकसभा चुनाव। चुनावों में सोशल मीडिया का उपयोग तेजी से बढ़ा है। ऐसे में फेक न्यूज हमारे लोकतंत्र के लिए भी खतरा बन सकती है। वैसे, मैक्सिको सहित कई देशों में चुनावों के दौरान फेक न्यूज पर अंकुश लगाने के लिए वाट्सऐप ने काफी कारगर कदम उठाए थे। लेकिन भारत की आबादी और आकार को देखते हुए यह एक बड़ा जोखिम है। फिर जैसे सरकार के मंत्री गुनहगारों को सम्मानित कर रहे हैं, वह कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि सरकार की नाकामियां छिपाने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को हवा दी जा रही है। अगर ऐसा नहीं है तो प्रधानमंत्री को चुप्पी तोड़कर अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों को कड़ा संदेश देना चाहिए, क्योंकि सांप्रदायिकता, अफवाहें और फेक न्यूज जो वातावरण तैयार करेंगी, वह देश की बेहतर आर्थिक सेहत, स्वस्थ समाज और लोकतांत्रिक व्यवस्था सभी के लिए घातक है। 

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TAGS: Outlook Hindi, Editorial, JUL 16, 2018, Harvir Singh, संपादकीय, आउटलुक
OUTLOOK 13 July, 2018
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