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20 March 2021

प्रथम दृष्टिः टीका या लॉकडाउन?

File Photo

सबक लेने के लिए हमेशा इतिहास के पन्नों को पलटना ही जरूरी नहीं है। हम समकालीन घटनाओं से भी काफी कुछ सीख सकते हैं। कोविड-19 संक्रमण के मामलों में देश के कई हिस्सों, खासकर महाराष्ट्र और पंजाब, में अचानक आई उछाल के कारणों की त्वरित समीक्षा आवश्यक है, ताकि हम उन गलतियों को करने से बच सकें जो हमने जाने-अनजाने इस वैश्विक महामारी की शुरुआत में की थी। जब 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा की, तो उस समय कोरोनावायरस की भयावहता का अनुमान शायद किसी को न था, न तो सरकार को और न ही चिकित्सकों और वैज्ञानिकों को। लॉकडाउन को ही इस खतरनाक विषाणु के फैलने से तत्काल रोकने का एकमात्र उपाय समझा गया। समय पर लागू की गई तालाबंदी से हजारों जिंदगियां बच गईं, लेकिन इसका प्रतिकूल असर व्यापक हुआ। कल-कारखाने और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद हो गए, हजारों लोगों की आजीविका छिन गई और देश की आर्थिक स्थिति चरमरा उठी। इसी दौरान दिहाड़ी मजदूरी करने वाले श्रमिकों का बड़े शहरों से अपने-अपने गांव की ओर पलायन आजादी के बाद सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी के रूप में सामने आया। फिर भी, लॉकडाउन उस परिस्थिति में एक व्यावहारिक कदम था। जीवन रक्षा के प्रयासों में अगर अर्थव्यवस्था की समूल तिलांजलि भी देनी पड़े तो उसे मानवता के दृष्टिकोण से अनुचित नहीं कहा जा सकता। लेकिन सवाल यह है कि क्या अब इसकी पुनरावृति हो सकती है?

एक साल बाद देश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर वापस आ रही है। अधिकतर दफ्तर, कल-कारखाने और व्यापारिक प्रतिष्ठान खुल चुके हैं। शॉपिंग मॉल, थिएटर, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और हवाई अड्डे फिर गुलजार हो चुके हैं। बाजारों में रौनक बहाल हो चुकी है। और तो और, दो-दो प्रभावी वैक्सीन के ईजाद होने और देशव्यापी टीकाकरण का आगाज होने से लग रहा है कि हम कोरोनावायरस के खिलाफ जंग जीतने के करीब हैं। लेकिन क्या हम वाकई करीब हैं? कोविड-19 की दूसरी लहर चिंता का विषय बन चुकी है। निरंतर बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फिर से लॉकडाउन की आशंका जताई जा रही है। दरअसल, इस महीने के मध्य में देश में कोरोना के इतने नए मामले सामने आये जो पिछले वर्ष के अंतिम सप्ताह के बाद कभी नहीं आये थे।

आखिर इसका कारण क्या है? क्या भारत में भी कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन घर कर चुके हैं, जैसा ब्रिटेन समेत कई देशों में हुआ? या यह हमारी कोविड से बचाव करने वाले दिशानिर्देशों की अनदेखी करने का दुष्परिणाम है? संभव है, पिछले तीन महीने में कोविड के निरंतर घटते मामलों और वैक्सीन के आने से हम निश्चिंत हो गए। या फिर यह समझने लगे कि देश में ‘हर्ड इम्युनिटी’ आ चुकी है? इन सब पहलुओं की फौरन व्यापक समीक्षा की आवश्यकता है ताकि इस नई लहर को देश भर में फैलने से रोका जा सके और कहीं भी लॉकडाउन लगाने की नौबत न आये।   

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यह तो दिखता है कि हम कोविड से सुरक्षा के प्रयासों के प्रति लापरवाह हो गए। सब्जी बाजार हो या क्रिकेट स्टेडियम, सिनेमा हॉल हो या शादी समारोह, हममें अधिकतर लोगों ने मास्क लगाना या एक दूसरे से दो गज की दूरी बनाए रखना बंद कर दिया। जहां तक टीकाकरण का प्रश्न है, 16 मार्च की शाम तक, देश में कुल मिलाकर 3.29 करोड़ लोगों को ही टीका लगाया जा सका है, जिसमें दोनों खुराक लेने वालों की संख्या लगभग 58.67 लाख है। ये आंकड़े शुरुआती अपेक्षाओं से कम हैं। फिलहाल 60 वर्ष से ऊपर के नागरिक और 45 से 59 आयु के गंभीर रोगग्रस्त लोगों का टीकाकरण हो रहा है। देश के सभी लोगों के टीकाकरण में अभी महीनों का समय लगेगा, कई राज्यों में तो वैक्सीन के बर्बाद होने का खतरा अभी से ही मंडरा रहा है।

इसलिए हम तब तक अपने बचाव के लिए हर प्रयास करते रहें, जब तक हरेक को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन की ढाल नहीं मिलती है। यह भी आवश्यक है बिना किसी अफवाह का शिकार बने नियत समय पर अपनी और देश की खातिर जीवनरक्षक टीका लें। हमें नहीं भूलना चाहिए कि कोविड के कारण लाखों लोगों की मौत हो चुकी है और यह मातमी सिलसिला अभी जारी है। कोविड के नए मामलों से स्पष्ट है यह वैश्विक महामारी अभी भी हमारे इर्द-गिर्द मंडरा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और केंद्र सरकार ने कोरोना से बचाव के टीकों को पूर्णतः सुरक्षित करार दिया है। इसलिए हमें अपने आप को और अपने परिवार को सुरक्षित करके इस संक्रमण को फैलने से रोकने में अपना योगदान देने में विलंब नहीं करना चाहिए। दोबारा देशव्यापी लॉकडाउन लगे या नहीं, यह निर्णय इस बार सरकार को नहीं, हमें करना है। एक वर्ष के अनुभवों के आधार पर हमें यह समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिये कि हमारे लिए टीकाकरण सही विकल्प है या लॉकडाउन?

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TAGS: Pratham Drishti, Vaccine, Lockdown, Outlook Hindi Opinion, Giridhar Jha
OUTLOOK 20 March, 2021
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