नजरिया: हरफनमौला गायक, नेकदिल इंसान
मोहम्मद रफी साहब सुरों के जादूगर थे। वे अपनी आत्मा की पवित्रता को अपनी आवाज में उतार देने का हुनर जानते थे। मैं तकरीबन 33 साल तक विभिन्न लोगों के इंटरव्यू कर चुका हूं। उन लोगों में हिंदी सिनेमा जगत के निर्देशक, पटकथा लेखक, गायक, अभिनेता, गीतकार वगैरह शामिल हैं। मेरे लिए यह आश्चर्य की बात रही कि मैंने जिन लोगों से बात की, वे सभी मोहम्मद रफी साहब की शख्सियत के मुरीद थे। मुझे आज तक एक भी व्यक्ति नहीं मिला जिसने उनकी आलोचना की हो या उनकी किसी खामी का जिक्र किया हो। उनसे जो मिला उसने कहा कि वे हरफनमौला गायक के साथ नेकदिल इंसान थे।
मोहम्मद रफी साहब की गायकी की जो रेंज है, उसकी तुलना अन्य किसी गायक से नहीं की जा सकती। मैं मशहूर गायक केके का एक कथन साझा करना चाहूंगा। केके ने मुझे बताया कि फिल्म काइट्स का गीत “दिल क्यों ये मेरा शोर करे” रिकॉर्ड करते हुए उन्हें गीत में रफी साहब की वाइब्स महसूस हुईं। इसी तरह संगीतकार आदेश श्रीवास्तव ने मुझे एक बार बताया कि वे जब भी किसी गाने की धुन तैयार करते हैं, तो उनके दिल और दिमाग में मोहम्मद रफी और किशोर कुमार की गायकी रहती है।
रफी साहब के समकालीन गायक किशोर कुमार, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, सभी उनके प्रशंसक थे। सभी का मानना था कि रफी श्रेष्ठ गायक हैं। मुझे किशोर कुमार के पुत्र अमित कुमार ने बताया था कि किशोर कुमार के सामने कोई रफी साहब के बारे में कुछ अशोभनीय टिप्पणी करता तो वे फौरन उसे डांटने लगते थे। मैंने एक बार मन्ना डे से पूछा कि शास्त्रीय संगीत के बड़े जानकार होने के बावजूद आपने बहुत कम गीत क्यों गाए। मन्ना डे ने कहा, ‘‘अन्य गायकों को संगीतकार सिर्फ उनके विशेष अंदाज के लिए बुलाते थे। सिर्फ मुझे और मोहम्मद रफी को सभी तरह के गानों के लिए बुलाया जाता था। लेकिन रफी साहब बेहतर गायक थे इसलिए उनके हिस्से में ही अधिक गीत आए।’’ यह कहते हुए मन्ना डे की आवाज में रफी के लिए प्रेम और सम्मान महसूस हो रहा था।
एक रोचक किस्सा है। संगीतकार बप्पी लाहिड़ी किशोर कुमार के रिश्तेदार थे। उन्होंने कई सुपरहिट गाने किशोर कुमार के साथ बनाए। उनके साथ मोहम्मद रफी का एक दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है। फिल्म जख्मी के गीत “नथिंग इज इम्पॉसिबल” को किशोर कुमार, मोहम्मद रफी और बप्पी लाहिड़ी गाने वाले थे। मोहम्मद रफी और किशोर कुमार जैसे महान गायकों के साथ गाने में बप्पी दा को घबराहट हो रही थी। रफी साहब ने उनकी घबराहट भांप ली। उन्होंने कहा कि आज बप्पी, किशोर कुमार और उनके साथ गाने में घबरा रहे हैं लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब नए और युवा कलाकार बप्पी के साथ गाने में नर्वस होंगे। बप्पी लाहिड़ी कहते हैं कि वे रफी साहब की इस बात को वे आजीवन प्रेरणा मानते रहे।
रफी ने अपने करियर में कुछ बहुत शानदार गीत संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ रिकॉर्ड किए। फिल्म आराधना के रिलीज होने के बाद जब किशोर कुमार एकदम से उभरे, उस दौर में भी संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए रफी साहब गाते रहे। आरडी बर्मन, जिनकी जोड़ी किशोर कुमार के साथ सुपरहिट रही, वे भी रफी साहब के महत्व को समझते थे। धर्मेंद्र ने एक बार कहा था कि उनका बस चलता, तो वे सभी गाने रफी की आवाज में ही रिकॉर्ड करवाते। धर्मेंद्र ने जब अपने बेटे सनी देओल को फिल्म बेताब में लॉन्च किया तो गीत शब्बीर कुमार ने गाए। वजह यह थी कि शब्बीर कुमार रफी साहब की स्टाइल में गाते थे और धर्मेंद्र चाहते थे कि उनके बेटे की फिल्म में रफी साहब की स्टाइल के गीत हों। तब तक रफी साहब का निधन हो चुका था। कुछ साल पहले धर्मेंद्र ने रफी साहब का एक किस्सा सुनाया था। फिल्म शोला और शबनम के लिए रफी साहब ने जब गीत “जाने क्या ढूंढती रहती हैं” गाया, तो रिकॉर्डिंग के समय उन्हें तेज बुखार था। धर्मेंद्र कहते हैं कि उन्होंने इस घटना से जाना कि कला और काम के प्रति समर्पण किसे कहते हैं।
कई लोगों का मानना है कि फिल्म आराधना की रिलीज के बाद किशोर कुमार का दौर शुरू हो गया और तब मोहम्मद रफी को कम गाने मिले। यहां मैं एक बात बताना चाहूंगा जो बहुत कम लोग जानते हैं। शुरुआत में आराधना के सभी गीत मोहम्मद रफी साहब ही गाने वाले थे, लेकिन उन्हें किसी शो के सिलसिले में भारत से बाहर जाना पड़ा। फिल्म के निर्माता फिल्म जल्दी बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने तीन गाने किशोर कुमार की आवाज में रिकॉर्ड किए। आराधना सुपरहिट हुई, तो राजेश खन्ना और किशोर कुमार लोकप्रिय हो गए। एक बात जिससे अधिकतर लोग अनभिज्ञ हैं कि मोहम्मद रफी साहब आराधना की रिलीज के कुछ साल बाद हज यात्रा पर गए थे। हज यात्रा के दौरान उन्हें एक मौलवी ने कहा कि सच्चे मुसलमान के लिए तो फिल्मी गीत गाना जायज नहीं है। मोहम्मद रफी पर इसका गहरा असर हुआ। उन्होंने गाना कम कर दिया और वह अपने बड़े बेटे के पास लंदन जाकर रहने लगे। जब उनके बेटे को सारी बात पता चली तो उन्होंने रफी साहब से कहा कि कला कभी भी धर्म के खिलाफ नहीं हो सकती है। बच्चों के आग्रह पर रफी साहब ने फिर से गाना शुरू किया। मुझे यह बात उनके बेटे शाहिद रफी ने बताई थी।
फिल्म निर्देशक मनमोहन देसाई के भी प्रिय थे रफी। मनमोहन देसाई अपनी फिल्मों के ज्यादातर गाने रफी साहब से ही रिकॉर्ड कराए। उनकी फिल्म धरमवीर, अमर अकबर एंथनी, चाचा भतीजा में रफी साहब ने कई शानदार गीत गाए।
रफी साहब के निधन के बाद सभी को एक खालीपन महसूस होने लगा। संगीतकार भी उनकी कमी को शिद्दत से महसूस कर रहे थे। तब यह खोज शुरू हुई कि ऐसे गायकों को मौका दिया जाए जो रफी साहब के स्टाइल में गाते हों। तब मोहम्मद अजीज, अनवर, शब्बीर कुमार, उदित नारायण, सोनू निगम जैसे कलाकारों को अधिक अवसर मिलने शुरू हो गए। मैं इसे रफी साहब का जादू ही कहूंगा कि उनकी स्टाइल में गाने वाले मोहम्मद अजीज, शब्बीर कुमार, सोनू निगम ने शोहरत का आसमान छू लिया।
रफी साहब उन चुनिंदा कलाकारों में थे, जिन्होंने सभी के दिल में जगह बनाई। मैं रफी साहब से जुड़े दो प्रसंग सुनाना चाहूंगा। इससे पता चलेगा कि रफी साहब के अपने जूनियर कलाकारों से कैसे संबंध थे। बात फिल्म क्रांति से जुड़ी हुई है। मोहम्मद रफी साहब को गीत “चना जोर गरम” गाना था। रफी साहब के साथ इस गीत को किशोर कुमार, लता मंगेशकर और नितिन मुकेश गाने वाले थे। उस दौर में रफी बड़े गायक थे। वह चाहते तो अपनी लाइनें गाकर जा सकते थे, लेकिन इसके विपरीत उन्होंने तय किया कि वह पूरी रिकॉर्डिंग के दौरान मौजूद रहेंगे। नितिन मुकेश को गाने की अंतिम लाइनें रिकॉर्ड करनी थीं। रफी साहब अपनी लाइन गाने के बाद भी स्टूडियो में रुके थे। जब नितिन ने अपनी लाइनें रिकॉर्ड कर लीं, तब रफी साहब स्टूडियो से बाहर निकले। रफी साहब की प्रेरणा से नितिन मुकेश ने शत प्रतिशत दिया और गीत बढ़िया से रिकॉर्ड हुआ। इसी तरह गायिका कविता कृष्णमूर्ति को एक गीत मोहम्मद रफी के साथ गाना था। गीत में कविता कृष्णमूर्ति की सिर्फ एक लाइन थी। इस मामले में भी मोहम्मद रफी चाहते, तो अपनी लाइन गाकर जा सकते थे, लेकिन वे रुके रहे। इससे युवा गायिका कविता का मनोबल बढ़ा।
मोहम्मद रफी के गायन और जीवन के बारे में यही महसूस होता है कि समर्पण, प्यार, अनुशासन होता है, तभी कामयाबी मिलती है। तभी कोई गायक मोहम्मद रफी बनता है, जिसके जाने के कई दशक बाद भी उसकी दीवानगी बनी हुई है।
(फिल्म पत्रकार, समीक्षक। संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल पर लिखी उनकी किताब को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला है। मनीष पांडेय से बातचीत पर आधारित)