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12 April 2022

रूस-यूक्रेन वॉर: जंग खत्म करना नैतिक युद्ध हार चुके पुतिन की जिम्मेदारी!

48 घंटे में खत्म होने वाला युद्ध, 48 दिनों से जारी है। यूक्रेन ने रूस को ये बखूबी जता दिया है कि आज के दौर में किसी को कम आंकना किसी भी बड़ी ताकत के लिए भूल साबित हो सकती है। रूस और यूक्रेन की तुलना करें तो सैन्य बल या आर्थिक मजबूती दोनों में यूक्रेन कहीं भी रूस के सामने नहीं ठहरता है लेकिन पिछले 48 दिनों में उसने ऐसी जिजीविषा का परिचय दिया है कि रूसी सैनिक यूक्रेन की राजधानी कीव तक पर पूरी तरह कब्जा नहीं जमा पाए हैँ। इस वक्त पूरी दुनिया की नजर रूस और यूक्रेन पर लगी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की चर्चा में भी प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत से इस मसले का हल निकालने की ही बात की है। उधर रूस और यूक्रेन में से कोई न रुकने को तैयार है और न हीं पीछे हटने को। बेबस देश यूक्रेन के राष्ट्रपति की जिद ने अब युद्ध को इस मुहाने पर ला खड़ा किया है जहां रूस पर पूरी दुनिया ने कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं और लगभग अलग थलग कर दिया है। यूक्रेन की तबाही के हालात देखकर अब निस्संदेह ये कहा जा सकता है कि पुतिन युद्ध अपराधी भी हैँ। पुतिन ने पहले हर तरह के हथियारों से हमला कर यूक्रेन के कई खूबसूरत शहरों को नेस्तनाबूद कर दिया, फिर अँधाधुंध बमबारी में वहां के आमलोगों की जानें लीं। 50 लाख से ज्यादा लोगों ने अब तक देश छोड़ दिया है और उनका वहां से भागना बदस्तूर जारी है लेकिन इन सबसे आगे बढ़कर अब पुतिन की सेना ने बच्चों को हथियार बनाना शुरु किया है। अभी तक के युद्ध में सैकड़ों बच्चों की जानें जा चुकी हैं और अब ये सामने आया है कि वहां की सेना खिलौना बम के सहारे यूक्रेन के लोगों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रही है। यूक्रेन से कई वीडियो सामने आए हें जिसमें वहां बच्चों के खिलौने से बारूद और गोलियां बरामद हुई हैँ। रूसी सैनिकों की ये हरकतें निश्चित तौर पर उनकी हताशा के ही सबूत हैँ। यूक्रेन से 15 गुना ज्यादा रक्षा बजट वाली रूस की सेनाएं अगर इस स्तर पर पहुंच गई है तो ये साफ है कि पुतिन नैतिक युद्ध हार चुके हैँ, इस युद्ध के आकलन में पुतिन से भारी गलती हुई है और उसका परिणाम ये निकला है कि युद्ध में आर पार का परिणाम जल्दी निकलेगा ऐसा होता नहीं दिखता ।

जिन शहरों पर रूसी सेना ने आक्रमण किया है उसे पूरी तरह से तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, जिन गांवों पर कब्जा किया वहां बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। एक खुशहाल देश को अचानक डेढ़ महीने में इस हालत पर पहुंचा दिया जाए जहां हर तरफ मलबा ही मलबा हो और लाशों को उठाने वाला कोई न हो तो समझिए कि आक्रमण करने वाले का नैतिक बल कितना खोखला है और अगर उसके बाद भी सामनेवाला युद्ध के मैदान में डटा हो और भागने से बार बार इंकार कर रहा हो तो फिर यकीन करिए कि हमलावर नैतिक युद्ध हार चुका है। उधर यूनाइटेड नेशंस ने रूस को मानवाधिकार परिषद से निलंबित कर उसकी नैतिकता पर सवाल भी खड़े कर दिए हैं। अब रूस सिर्फ अपनी सनक की बदौलत सामने वाले को मटियामेट करने में जुटा है। लेकिन क्या ये वाकई इतना ही सरल है जैसा दिख रहा है, क्या यूक्रेन के लड़ाके सिर्फ अपनी ताकत और अपने बल पर पुतिन के आततायी रूसी फौज का मुकाबला कर रहे हैं तो इसका जवाब भी निश्चित तौर पर ना ही में मिलता है। एक तरफ युद्ध की शुरुआत से नेटो देश और यूरोपीय संघ जिस तरीके से बार बार ये बताते रहे कि वो सीधे युद्ध में न शामिल होंगे और न ही यूक्रेन को मदद करेंगे साथ ही वो ये भी बताते रहे कि उनका नैतिक समर्थन यूक्रेन की सरकार और लोगों के साथ है तो दूसरी तरफ की हकीकत ये है कि यूरोप के 30 से ज्यादा देशों ने यूक्रेन को हर संभव मदद की है। यूरोपीय यूनियन अब तक एक अरब यूरो और अमेरिका पौने दो अरब डॉलर की मदद अब तक यूक्रेन पहुंचा चुका है। इतना ही नहीं इन देशों ने यूक्रेन को रक्षात्मक सैन्य मदद आरंभ से देनी शुरु कर दी थी जो लगातार जारी है। अगर गौर से देखें तो सैनिक, टैंक और लड़ाकू विमान छोड़ कर यूक्रेन को हर संभव मदद मिल रही है। चाहे वो गोला-बारूद हो, कंधे पर रखकर मार करने वाली जेवलिन मिसाइलें हों, स्ट्रिंगर मिसाइलें हों या फिर ब्रिटिश पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम हो जिससे आसानी से कहीं भी मूव किया जा सकता है। इन हथियारों की बदौलत यूक्रेन लड़ाके रूस की सेना से लगातार लोहा ले रहे हैँ। पिछले तीन-चार दिनों में दो घटनाएं ऐसी हुई हैं जिसने रूस की चिंताएं बढ़ा दी हैं और युद्ध के अभी और लंबा खिंचने के संकते दिये हैँ।

नेटो के युद्ध में नहीं शामिल होने के ऐलान के बावजूद चेक गणराज्य ने यूक्रेन को टी-72 टैंक भेज दिए हैं और दूसरी तरफ ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने युद्ध के बीच यूक्रेन की राजधानी कीव का दौरा कर दिया और यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ कीव की सड़कों पर टहलते हुए दुनिया को साफ साफ संदेश दे दिया कि इस युद्द में वो यूक्रेन के साथ है और खुलकर साथ है।

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जाहिर सी बात है कि नेटो देशों में दूसरा सबसे मजबूत देश है ब्रिटेन और वहां के प्रधानमंत्री का युद्ध के बीच कीव की सड़कों पर टहलना अपने आप में बहुत कुछ कहता है। इसी बीच यूरोपियन यूनियन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेन ने यूक्रेन के बूचा शहर का दौरा किया जहां हुआ नरसंहार अभी दुनिया के लिए सबसे गंभीर मसला है। इस दौरे में उर्सुला वॉन ने स्पष्ट तौर पर इशारा किया कि यूक्रेन को अब यूरोपीय संघ का हिस्सा बनने में ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा जिसका अनुरोध जेलेंस्की करते रहे हैं और जिस आशंका की वजह मात्र से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है। अगर आने वाले कुछ हफ्तों में यूक्रेन यूरोपीय संघ का हिस्सा बनता है तो यकीन मानिए कि नेटो देशों का हिस्सा बनने में भी उसे ज्यादा समय नहीं लगेगा फिर ऐसी परिरस्थिति में रूस के लिए इस यु्द्ध में आगे की लड़ाई और मुश्किलों वाली होगी। ऐसे में ये वक्त आ गया है कि नरेंद्र मोदी या ऐसे दूसरे राष्ट्राध्यक्षों की बात पर गौर करते हुए पुतिन को बातचीत का रास्ता अख्तियार कर युद्ध से पीछे हटना चाहिए, नहीं तो ऐसा भी संभव है कि नैतिक युद्ध हार चुके पुतिन को जंग के मैदान में भी मुंह की खानी पड़े।

 

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TAGS: Russia Ukraine War, Ukraine, President of Russia Vladimir Putin, Ukrainian President Volodymyr Zelensky, Outlook Hindi, Anuranjan Jha
OUTLOOK 12 April, 2022
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