फिल्म: नाटू नाटू ... की जय हो!
मशहूर फिल्मकार एस.एस. राजामौली ने भले ही आरआरआर (2022) को तेलुगु फिल्म कहा हो, लेकिन आज पूरा देश इसके लोकप्रिय गीत, नाटू नाटू... की धुन पर थिरकता नजर आ रहा है। आखिरकार, इसने अभी-अभी सर्वश्रेष्ठ मूल गीत के लिए प्रतिष्ठित गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीता है। यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि नहीं है! वास्तव में, पूरे एशियाई सिनेमा को नाटू नाटू... (या उसके हिंदी संस्करण, नाचो नाचो!) की उपलब्धि पर जलसा आयोजित करना चाहिए क्योंकि यह दुर्लभ सम्मान अर्जित करने वाला महाद्वीप का यह इकलौता गीत है। इतिहास गवाह है कि पाश्चात्य देशों द्वारा प्रदान की गई किसी भी ऐसी मान्यता को भारतीय मनोरंजन उद्योग, विशेष रूप से बॉलीवुड द्वारा हर्ष मिश्रित आश्चर्य के साथ सर्वश्रेष्ठ मान्यता के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसलिए, अमेरिका के एक ऐसे पुरस्कार समारोह में, जिसे व्यापक रूप से ऑस्कर के बाद सबसे प्रतिष्ठित समझा जाता है, भारतीय सिनेमा को दिए गए कोई भी सम्मान के बाद उत्साह के साथ जलसा मनाना लाजमी लगता है।
अफसोस, देश में कुछ लोगों की इस पर भी भृकुटी तनी रही है, जो सोच रहे हैं कि एम.एम. कीरावानी के संगीतबद्ध किए और चंद्रबोस के लिखे गीत में ऐसा क्या खास है। उनका तर्क है कि ब्रिटिश फिल्मकार डैनी बॉयल की चर्चित फिल्म, (स्लमडॉग मिलेनियर/2008) में संगीतकार ए.आर.रहमान और गीतकार गुलजार के लोकप्रिय गीत, जय हो, जिसे अकादमी अवार्ड से नवाजा गया था, की तरह कर्णप्रिय भी नहीं है। कुछ तो इस बात को सिद्ध करने के लिए हिंदी सिनेमा के पुराने नगीनों को ढूंढने के लिए अतीत में चले गए हैं, जिन्हें समय की कसौटी पर देश में कालजयी समझा जाता है लेकिन जो पश्चिम के देशों का ध्यान आकृष्ट करने में विफल रहे थे।
उनके अनुसार, जब रफी का ‘मधुबन में राधिका नाचे’ (कोहिनूर /1960) और ‘दिल ढल जाए’ (गाइड/1965), लता का ‘लग जा गले’ (वो कौन थी/1964), किशोर का ‘चिंगारी कोई भड़के’ (अमर प्रेम/1972) और ‘मेरे नैना सावन भादो’ (महबूबा/1976) अटलांटिक महासागर के उस पार संगीत के किसी भी विद्वान ज्यूरी को प्रभावित न कर सकी, तो आरआरआर के इस गीत ने कैसे तहलका मचा दिया?
जो बात वे आसानी से भूल रहे हैं, वह शायद यह तथ्य है कि भारतीय और पश्चिमी सिनेमा या संगीत के बीच दशकों से चली आ रही खाई अब डिजिटल युग में समाप्त हो गई है। खासकर ओटीटी जैसे लोकतांत्रिक वैश्विक मंच के पदार्पण के बाद। अब पूर्व की तरह पाश्चात्य देशों द्वारा भारतीय सिनेमा, विशेष रूप से इसकी मुख्यधारा की फिल्मों के प्रति व्यवहार तिरस्कारपूर्ण रवैया नहीं दिखता है।
अगर विगत में सत्यजीत रे या कुछेक अन्य दिग्गज फिल्मकारों और संगीतज्ञों को यदा-कदा सम्मान मिलने को अपवाद समझा जाए, तो पाश्चत्य सिनेमा जगत में भारतीय सिनेमा विशेषकर बॉलीवुड की पहचान महज उसके गीत-संगीत-नृत्य के कारण होती रही है जिसे वहां के आलोचक बॉलीवुड का अनिवार्य हिस्सा समझकर हंसी और तिरस्कार से खारिज कर देते रहे हैं।
‘नाटू नाटू...’ की सफलता से लगता है मानो परिस्थितियां अब बदल गई हैं। भले ही यह गीत मूल रूप में तेलुगू में लिखा गया, लेकिन यह गाना उतना ही बॉलीवुड का प्रतिनिधित्व करता है, जितना कोई भी व्यावसायिक हिंदी सिनेमा का गीत। बाहुबली (2015) के महान दिग्दर्शक राजामौली की दृष्टि और रुचि के मुताबिक इसे स्क्रीन पर भव्य तरीके से फिल्माया भी गया है।
एनटीआर जूनियर और रामचरण तेज पर फिल्माया गया नाटू नाटू गाना
मुंबई के अधिकांश फिल्म निर्माता इस गीत को गोरेगांव की फिल्म सिटी में महल का एक सेट बनाकर या हैदराबाद के रामोजी स्टूडियो में फिल्माकर खुश होते। लेकिन राजामौली ने ‘नाटू नाटू...’ की शूटिंग यूक्रेन के राष्ट्रपति महल के सामने की। यह रूस से युद्ध शुरू होने के कुछ ही महीने पहले की बात है। जाहिर है, उनकी मेहनत परदे पर झलकती है, जिसने गोल्डन ग्लोब पुरस्कार की ज्यूरी को भी चमत्कृत कर दिया।
भले ही अभी भी दक्षिण कोरियाई, तुर्की या ईरानी सिनेमा से गुणवत्तापूर्ण फिल्मों के बनाने के मामले में बॉलीवुड कोसों पीछे है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक स्तर पर भारतीय सिनेमा और उसके संगीत को अब पहले से कहीं अधिक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इस पुरस्कार से देश को गौरवान्वित करने के लिए राजामौली की टीम से उनका श्रेय नहीं छीना जाना चाहिए। पिछले दो दशकों में भारत सिनेमा के व्यवसाय केंद्र के रूप में उभर रहा है, जिसके कारण विदेशों में भारतीय सिनेमा की पारंपरिक छवि बदल रही है।
अतीत में झांककर देखें तो नब्बे के दशक की शुरुआत से ही उदारीकरण के कारण न केवल पश्चिम में बल्कि चीन और जापान जैसे एशियाई देशों में भी भारतीय सिनेमा का बड़ा बाजार तैयार हुआ। तेजी से बढ़ते मध्य वर्ग के आप्रवासियों ने दूर देशों में अपना लोहा मनवाया और वहां पहुंच कर भारतीय सिनेमा की मांग वहां बढ़ाया। उनकी वजह से शाहरुख खान जैसे फिल्म स्टार सुदूर देशों में ‘बॉक्स ऑफिस के देवता’ समझे जाने लगे और उनकी फिल्मों का वहां व्यवसाय फिल्म की कुल बजट से अधिक होने लगा।
बाद में, पाश्चात्य देशों, विशेषकर हॉलीवुड को भारत में एक विशाल बाजार प्रतीक्षारत मिला। धीरे-धीरे हॉलीवुड भारत में भी बड़े पैमाने पर अपनी फिल्मों का विश्वव्यापी प्रदर्शन प्रीमियर के दिन ही करने लगा। उसी दिन फिल्में प्रदर्शित होने से उन्हें जबरदस्त मुनाफा मिलना शुरू हुआ। आज स्थिति यह है कि अपनी किसी भी नई फिल्म को रिलीज करते समय, भारतीय निर्माता किसी भी हॉलीवुड फिल्म के साथ टकराव करने से परहेज करता है।
विश्व सिनेमा व्यवसाय के लिए भारतीय बाजार में सिनेमाघरों और ओटीटी माध्यमों के निरंतर बढ़ते प्रभुत्व ने यह सुनिश्चित किया कि पाश्चात्य देशों के फिल्मकार भारत की उपेक्षा अब नहीं कर सकते हैं। यही बात भारतीय निर्माताओं पर भी वैश्विक बाजार के संबंध में समान रूप से लागू होती है।
यही कारण है कि आरआरआर जैसी ‘मसाला’ समझी जाने वाली फिल्में और ‘नाटू नाटू...’ जैसे गीत, जिन्हें पश्चिमी संवेदनाओं के लिए पहले ‘ओवर-द-टॉप’ के रूप में खारिज कर दिया जाता था, अब न केवल विदेशों के सिनेमाघरों में बल्कि गोल्डन ग्लोब्स जैसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में अपना सिक्का मजबूती से जमा रही हैं।
जहां तक इतिहास की बात है तो चेतन आनंद की नीचा नगर (1946) और मदर इंडिया (1957) से लेकर सलाम बॉम्बे (1988) और बैंडिट क्वीन (1994) तक, भारतीय फिल्म निर्माताओं द्वारा बनाई गई कुछ फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर आरआरआर और उसके गीतों को जिस तरह की सफलता आज मिली मिली है, वह भारत की मुख्यधारा की सिनेमा की पहुंच से दूर ही रही थी।
इसलिए आज ‘नाटू नाटू...’ की अप्रत्याशित सफलता में मीन मेख निकालने के बजाय उसके जोशीले बीट्स पर थिरकने का सबब होना चाहिए। बिलकुल वैसे ही जैसे परदे पर इसका फिल्मांकन किया गया है।
दुनिया भर में धूम मचाने वाले भारतीय फिल्म गीत
आवारा हूं (आवारा/1951)
निर्देशक राज कपूर की आवारा के गीत ‘आवारा हूं’ को वैश्विक स्तर पर सम्मान मिला। गीतकार शैलेन्द्र के लिखे इस गीत को शंकर-जयकिशन ने संगीतबद्ध किया और गायक मुकेश ने आवाज दी। इस गीत ने देश की सीमाएं पार करते हुए नया कीर्तिमान रचा। रूस, चीन, तुर्की, उज्बेकिस्तान और ग्रीस सहित 15 ऐसे देश हैं, जिन्होंने ‘आवारा हूं’ का अपनी-अपनी भाषाओं में अनुवाद कराया। ऐसी दीवानगी किसी और गीत को नहीं मिली।
मेरा दिल ये पुकारे आजा (नागिन/1954)
वर्ष 1954 में प्रदर्शित नागिन के गीत ‘मेरा दिल ये पुकारे आजा’ को आज कई दशकों बाद इंटरनेट युग में अचानक अप्रत्याशित लोकप्रियता मिली। आज हर इंस्टाग्राम रील और यूट्यूब शॉर्ट में यह गीत सुनाई दे रहा है। लता मंगेशकर का गया, राजेंद्र कृष्ण का लिखा और हेमंत कुमार के संगीत से सजा यह गीत आज की युवा पीढ़ी में खासा लोकप्रिय हो गया है।
मेरा जूता है जापानी (श्री 420/1955)
निर्देशक राज कपूर की श्री 420 के गीत ‘मेरा जूता है जापानी’ ने भी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। शैलेन्द्र का लिखा और शंकर जयकिशन के संगीत से सजा यह गीत सोवियत संघ में बहुत लोकप्रिय हुआ। रूस में गायक मुकेश की आवाज जब-जब गूंजी तो संपूर्ण भारतवर्ष ने गौरवान्वित महसूस किया।
जिमी जिमी जिमी आजा (डिस्को डांसर/1982)
निर्देशक बी. सुभाष की डिस्को डांसर के गीत ‘जिमी जिमी जिमी आजा आजा’ को चीन में जबरदस्त लोकप्रियता मिली। चीनी सरकार के प्रति विरोध जाहिर करने के लिए चीनी नागरिकों ने इस गीत का इस्तेमाल किया। अंजान का लिखा और बप्पी लहरी के संगीत से सजा यह गीत भारत और चीन के नागरिकों के दिलों में आज भी बसा हुआ है।
छम्मा छम्मा (चाइना गेट/1998)
निर्देशक राजकुमार संतोषी की फिल्म चाइना गेट के गीत ‘छम्मा छम्मा’ को दुनियाभर में बहुत पसंद किया गया। समीर के लिखे इस गीत को अनु मलिक ने संगीतबद्ध किया जिसे अलका याग्निक ने आवाज दी। हॉलीवुड फिल्म मौलां रूज़ (2001) में इस्तेमाल किया गया।
जय हो (स्लमडॉग मिलेनियर/2008)
ब्रिटिश निर्देशक डैनी बॉयल की स्लमडॉग मिलेनियर के गीत ‘जय हो’ को विश्व भर में लोकप्रियता मिली। गीतकार गुलजार के लिखे इस गीत को ए. आर रहमान ने संगीतबद्ध किया। इस गीत को साल 2009 में सर्वश्रेष्ठ मूल गीत के लिए अकादमी पुरस्कार दिया गया था।
छम्मक छल्लो (रा.वन/2011)
निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म रा.वन के गीत ‘छम्मक छल्लो’ को दुनियाभर में बहुत पसंद किया गया। शाहरुख खान की लोकप्रियता और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायक एकॉन ने इस गीत को कई देशों में पहुंचा दिया। विशाल-शेखर के संगीत से सजे इस गीत पर विश्व भर के लोग थिरकते नजर आए।