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28 May 2022

विमर्श: संवैधानिक लोकतंत्र है या...

“दमनकारी कानूनों और पुलिस का सहारा लेकर विरोध को दबाना प्रजातंत्र के सिद्धांतों के विपरीत”

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह मुश्किल घड़ी है क्योंकि चुनावी बहुमत लगातार ऐसी राजनीतिक शक्तियों को सत्ता में ला रहा है जिनके लिए लोकतंत्र का कर्मकांड यानी समय पर राज्य विधानसभाओं और संसद के चुनाव होना ही महत्वपूर्ण है; लोकतांत्रिक भावना और मूल्यों के प्रति उनमें न्यूनतम आस्था और प्रतिबद्धता भी नहीं है। इसका मूल कारण यह है कि उन्हें भारत के संविधान के प्रति निष्ठावान रहने की शपथ मजबूरी में लेनी पड़ती है, क्योंकि वर्तमान व्यवस्था में उसके बिना सत्ता में आना संभव नहीं। लेकिन उनकी दिली ख्वाहिश भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलने की है। इसके लिए वे समय-समय पर संविधान की समीक्षा की कसरत करती और करवाती रहती हैं। राजसत्ता का इस्तेमाल करके विरोधियों को कुचल डालना इन राजनीतिक शक्तियों का स्वभाव है क्योंकि उनका नैसर्गिक रुझान तानाशाही-समर्थक और लोकतंत्र-विरोधी है।

आजकल एक नए राजनीतिक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाने लगा है और आठ साल में स्थिति यह हो गई है कि लगता है मानो उच्च न्यायालय तक इस सिद्धांत का जाप करने लगा है। इस सिद्धांत के अनुसार सत्ताधीशों की आलोचना करना जनादेश का अपमान करना है। पुलिस इसका सहारा लेकर सत्तारूढ़ पार्टी के आलोचकों को बिना किसी हिचक के आतंकवादनिरोधक कानूनों और राजद्रोह संबंधी कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल करके गिरफ्तार करती है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के राजद्रोह संबंधी फैसलों और निर्देशों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया जाता है लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से यह पूछा गया कि काला धन लाने और सबके खातों में 15-15 लाख रुपए जमा होने के वादे का क्या हुआ, तो उन्होंने कहा कि चुनाव प्रचार में तो ऐसे जुमले बोले ही जाते हैं। लेकिन जब यही ‘जुमला’ शब्द उमर खालिद अपने भाषण में इस्तेमाल करते हैं तो दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ इस पर आपत्ति करके इसे अस्वीकार्य मानती है। सरकार की आलोचना को कानून और व्यवस्था भंग करने वाला बताकर पुलिस आलोचना करने वाले को गिरफ्तार कर लेती है। सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया की हालत यह है कि दुनिया के 180 देशों में प्रेस की आजादी की दृष्टि से भारत का स्थान 150वां है, जबकि उसका छोटा-सा पड़ोसी देश नेपाल 76वें स्थान पर है।

धर्मनिरपेक्ष और संवैधानिक लोकतंत्र को पूर्व केंद्रीय मंत्री ही उसे लेख लिखकर ‘धार्मिक लोकतंत्र’ बता रहे हैं। जयंत सिन्हा ने एक लेख लिखकर प्राचीन परंपराओं और ग्रंथों का हवाला देते हुए भारत को ‘धार्मिक लोकतंत्र’ बताया है। इस ‘धार्मिक’ शब्द का अर्थ क्या है? जिस राजनीतिक विचारधारा के केंद्र में भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का संकल्प हो, उसकी सरकार के पूर्व मंत्री का ‘धार्मिक’ से आशय स्पष्ट रूप से हिंदू है। विचित्र स्थिति है कि जिस संविधान की रक्षा करने की शपथ लेकर लोग मंत्री बने, आज वे उसी में आमूल-चूल परिवर्तन करना चाहते हैं।

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पिछले दिनों हुई घटनाओं से एक और खतरे की घंटी बजती सुनाई दे रही है। राज्यों को जीएसटी में उनका हिस्सा देने की बात हो या अन्य बातें, धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो चला है कि केंद्र राज्यों को अपना मातहत मानकर उनके साथ उसी तरह का बर्ताव कर रहा है। अब एक नई परंपरा डाली जा रही है कि किसी भी आधार पर एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में जाकर उन लोगों को गिरफ्तार करने लगी है जो उसके राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधी हैं। गिरफ्तार होने वालों में गुजरात के दलित नेता और विधायक जिग्नेश मेवाणी भी शामिल हैं। राजनीतिक बदले के इस खतरनाक खेल में गैर-भाजपा पार्टियां भी शामिल हो गई हैं। पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने दिल्ली भाजपा प्रवक्ता तेजिंदर सिंह बग्गा को पुलिस भेज कर गिरफ्तार कराया। पंजाब और दिल्ली के बीच भाजपा-शासित हरियाणा है। उसकी पुलिस ने पंजाब पुलिस को रोक लिया। लेकिन राज्यों की पुलिस के बीच टकराव की स्थिति तो पैदा हो ही गई है। क्या यह देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अशुभ संकेत नहीं है? क्या इससे देश के संघीय ढांचे पर आंच नहीं आती?

पुलिस को राजनीतिक पार्टियां प्राइवेट सेना की तरह इस्तेमाल करने लगी हैं। प्रशासन और पुलिस सत्तारूढ़ दल के हाथ में हथियार बन कर रह गए हैं। यह स्थिति पिछले चार दशकों में धीरे-धीरे विकसित होकर बनी है। इस प्रक्रिया में लगभग सभी दल शामिल रहे हैं लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद इस प्रक्रिया में अभूतपूर्व तेजी आई है। क्या एक राज्य की पुलिस दूसरे राज्य की पुलिस के साथ मुठभेड़ किया करेगी? क्या यह देश की एकता को विखंडित करने वाली प्रक्रिया नहीं है?

भारत किसी एक धार्मिक समुदाय या किसी एक राजनीतिक दल की जायदाद नहीं है। वह इसमें रहने वाले सभी नागरिकों का है और ‘सर्वधर्म समभाव’ इसकी धर्मनिरपेक्षता के लिए क़ुतुबनुमा की तरह रहा है। इसी तरह अहिंसक विरोध और उसकी अभिव्यक्ति लोकतंत्र की मूल आस्थाओं में एक है। दमनकारी कानूनों और पुलिस-मिलिटरी का सहारा लेकर विरोध को दबाना अंतत: तानाशाही के ओर ले जाता है। हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश इसकी गवाही देते हैं। अब भी समय है जब नागरिक और राजनीतिक वर्ग जाग कर इस स्थिति को और पनपने से रोक सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और टिप्पणीकार हैं। विचार निजी हैं)

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TAGS: Tejinder Pal singh Bagga, Bhartiya Janta Party, Aam Aadmi Party, Punjab Police, Delhi Police, Haryana Police, Arvind Kejriwal
OUTLOOK 28 May, 2022
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